(राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल) 8 जनवरी.सरकार ने विद्वेष फैलाने वाले समूह की मास्टर माइंड महिला व एक इंजीनियरिंग के छात्र को गिरफ्तार कर कहने को सख्त संदेश भी दिया है, लेकिन इससे समाज में जो कटुता व विद्वेष फैला है, उसकी क्षतिपूर्ति हो जायेगी ? यह इतनी आसान नहीं है. साइबर दुनिया जहां तरक्की की राह दिखाती है, वहीं अपराधियों के घातक मंसूबों को अंजाम देने का साधन बन गई है. साइबर अपराधियों के खिलाफ समय रहते सख्त कार्रवाई न होने से ऐसे तत्वों के हौसले बुलंद होते हैं. उन्हें लगता है कि वर्ग विशेष की मौन सहमति उन्हें प्राप्त है. ऐसे हमले समुदाय या लिंग विशेष पर न होकर पूरी सामाजिकता के ताने-बाने को क्षतिग्रस्त करते हैं.
‘बुल्ली बाई’ एप का मामला इसी कड़ी का विस्तार है, जिसमें सोशल मीडिया पर सक्रिय संप्रदाय विशेष की महिलाओं की प्रतिष्ठा व गरिमा को ठेस पहुंचाने की कुत्सित कोशिश की गई. इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी शीघ्र कार्रवाई के लिये पुलिस को कहा था, देर से सही कुछ तो हुआ. इस विवादित एप पर संप्रदाय विशेष की महिलाओं के चित्र अपलोड करके उनके बारे में अनुचित व अश्लील बातें लिखी गई थीं.
इससे पहले गत वर्ष जुलाई में ऐसे ही विवादित एप का मामला संप्रदाय विशेष की महिलाओं को निशाने पर लेने के आरोपों के बीच सामने आया था. लेकिन दिल्ली व यूपी में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से उससे मिलते-जुलते नये एप का मामला प्रकाश में आ गया. समय रहते कार्रवाई न होने से साइबर अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं.
बुल्ली बाई एप पर लोगों को मुसलमान औरतों की खरीदारी के लिए आमंत्रित किया गया. बाद में वह हिंदू-मुसलमान, दोनों धर्मों की औरतों के लिए था. एप को बनाने वाले धर्म विशेष की उन औरतों से बहुत नाराज थे बदला लेने का उसने आसान तरीका निकाला कि औरतों की ऑनलाइन नीलामी करवा दी जाए. काश! उसे बडे़-बूढ़ों की कही यह बात याद रहती कि औरतें सबके घर में होती हैं, इसलिए अगर अपने घर की औरतों का सम्मान चाहिए, तो दूसरे के घरों की औरतों का सम्मान करें.
आईएस, बोकोहराम की इस बात पर आलोचना होती है कि वे खुलेआम लड़कियों की नीलामी करते हैं, हमने उनसे क्या यही सबक सीखा? क्यों भला? बचने के लिए यह कहना कि किसी ने इस एप पर कोई नीलामी नहीं की है, यह तो मात्र मनोरंजन के लिए था. औरतों की नीलामी करके, उनका सरेआम अपमान करके आपका कौन सा मनोरंजन हो रहा था? तकनीक ने क्या आपको यही सिखाया है? सुना तो यह जाता था कि तकनीक दिमाग के बंद दरवाजे खोलती है, मगर यहां तो दरवाजे बंद ही नहीं हुए, गर्त में जा गिरे. आखिर इन नौजवानों को, जिन्हें देखने के लिए पूरी दुनिया पड़ी है, अपना करियर बनाना था, जीवन में आगे बढ़ना था, माता-पिता ने इनके लिए न जाने कितने सपने देखे होंगे, वे इस जाल में कैसे जा फंसे? किसने इनको यह सब करने को उकसाया? हमारे घरों में तो यह सब नहीं सिखाया जाता. फिर 18 साल की एक लड़की ने, जो इस दौर की लड़की है, उसने यह कैसे सीख लिया? इस लड़की के बारे में कहा जा रहा है कि हाल ही में इसके माता-पिता का निधन हुआ है. तो क्या अपने दुख को दूर करने का यही तरीका था कि लड़की होते हुए भी औरतों की नीलामी के बारे में सोचा जाए?
आज हमारे समाज में नफरत का इतना बोलबाला हो गया है कि एक-दूसरे को बचाने की जगह हम इसका हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं? पुरानी कहावत है, जिससे हम नफरत करते हैं, वैसे ही बन जाना चाहते हैं. आप आईएस, बोकोहराम से नफरत करके वैसे ही बन गए. जिन सैकड़ों मुसलमान औरतों के फोटो उनके सोशल मीडिया अकाउंट से लेकर अपलोड किए गए, उन्हें तो इस बारे में मालूम तक नहीं था कि उनके फोटो कैसे वायरल हो रहे हैं. यत्र नार्यस्तु पूज्यंते सिखाने वाले समाज को यह क्या हुआ? ऐसा तो यह था नहीं.