युवतियों की शादी की उम्र पर सुप्रीम कोर्ट ने झाड़ा पल्ला 22 फरवरी 2023
एडवोकेट अश्वनी उपाध्याय की युवतियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने की जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश डी.व्हाय चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंड पीठ ने यह कह कर निपटा दिया कि कानून बनाने और उसमें सुधार का काम संसद का है. यह हमारा काम नहीं है इसलिये इस काम को उसे ही करने दिया जाए.
उपाध्याय चाहते थे कि कानून मेें युवाओं की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है. वहीं युवतियों की 18 साल. इन्हें समान कर दिया जाए ताकि संविधान में किसी पर भेदभाव नहीं करने के मूल अधिकारों सहित अन्यअधिकारों की रक्षा हो सके. हालांकि इस बारे में संसद में भी विचार हो चुकाहै और एक कमेटी इस बारे में सकारात्मक सिफारिशें कर चुकी है पर राजनीति में वोटबैंक का चक्कर इसकी राह में बाधा बना हुआ है. इसी को लेकर जनहित याचिका लेकर दिल्ली हाईकोर्ट गये वहां से उसे सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करवा लाये थे. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की इस हाईकोर्ट को वापस कर दें. पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे नहीं माना और इसका निपटारा कर दिया.
उल्लेखनीय है कि शादी की उम्र को लेकर विभिन्न धर्मो और समुदायोंक कानूनों के चलते काफी गलफत है और शादियां 13 साल से लेकर किसी भी उम्र में होती रहती. इससे देश की आधी आबादी के शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक आजादी आदि के लिये के लिये जरूरी समझा जा रहा है. पर वोटबैंक राजनीति 13 साल में शादियों पर अड़ी है. इसका शिकार कम पढ़े लिखे गरीब लोग हो रहे हैं. सरकारी योजनाओं का सामूहिक लाभ उनके जीवन का आधार बना हुआ है. वहीं ज्यादातर मामलों में यह 16 से ज्यादा 25 तक चली गई है. 13 साल में शादी हो जाए तो 21 साल की उम्र तक तो महिला तीन चार बच्चों की मां बन जाती है. वहीं 21 वाले मामलों में एक या दो पर ही संख्या रूक जाती है. फिर एक दो बच्चे वाले शिक्षा स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करते है. और दो चार पांच बच्चे वाले इस और ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझते. बस सब उपरवाले की मेहरबानी पर चलता है. इससे जनसांख्यिकी में सामाजिक असंतुलन आता है. ऐसे आंकड़े आते हैं जिनकी दम पर औसत निकाल कर निहित स्वार्थी परिवार नियोजन तक का विरोध करने से बाज नहीं आते हैं.
- ओमप्रकाश गौड़, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल, मो. 9926453700
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