दिल्ली में कसा केजरीवाल पर केन्द्र सरकार का फंदा (8 अगस्त) दिल्ली में आखिर केजरीवाल की अराजकता पसंद (नॉन कफर्मिस्ट) गवर्मेंट के राष्ट्रीय राजधानी के तौर पर दिल्ली के गौरवपूर्ण स्थान को क्षति पहुंचाने की कुचेष्टाओं पर अंकुश लगाने का हथियार ताजा केन्दीय सेवा अधिनियम के माध्यम से मिल गया है. अब केजरीवाल वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के तबादले नहीं कर सकेंगे. कनिष्ठ स्तर के अधिकारियों के तबादले भी एक आयोग के माध्यम से हो सकेंगे. उन पर भी उपराज्यपाल की सहमति जरूरी होगी.
जो तबादला संबंधी आयोग है उसके तीन सदस्य होंगे. वे होंगे केजरीवाल, मुख्यसचिव और गृह सचिव. विवाद की में बहुमत का फैसला मान्य होगा. यहां अफसरों का बहुमत है. उन्हें केजरीवाल कैसे संभालते हैं यह देखने योग्य रहेगा. याद रहे यहां भी उपराज्यपाल की सहमति जरूरी रखी गई है.
विडम्बना यह रही कि लोकसभा हो या राज्य सभा बहस में यह भूला दिया गया कि दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है. यह पूर्ण राज्य नहीं है. इसको लेकर केन्द्र कोई भी कानून बना सकता है इसका उल्लेख संविधान में भी है. उसके बाद भी पूर्ण राज्य के समान बहस चली और केन्द्र के हस्तक्षेप को गैर जरूरी और असंवेधानिक तथा केन्द्र का राज्य के मामलों में हस्तक्षेप बताकर इसे देश के फेडरल स्ट्रक्चर के खिलाफ बताया गया.
यह भी भूला दिया गया कि अन्य राज्यों के समान दिल्ली का कोई आईएएस केडर नहीं है. यहां केन्द्रीय पूल के आईएएस अफसरों को ही तैनात किया जाता है.
उसी प्रकार यहां कोई राज्य सेवा आयोग या राज्य सरकार के राजपत्रित अधिकारियों का भी केडर नहीं है. यहां केन्द्रीय पूल के अधिकारियों की पद स्थापना होती है.
ऐसे में यहां के आईएएस या राजपत्रित अधिकारियों की पद स्थापना गोवा, अंदमान निकोबार से लेकर असम, मिजोरम तक कहीं भी की जा सकती है. ऐसी स्थिति में कौन अफसर केजरीवाल के झांसे में आकर अपनी गोपनीय रिपोर्ट को दागदार बना कर अपना केरियर खराब करना चाहेगा.
यहीं केजरीवाल की परेशानी का बड़ा कारण है. याद रहे दिल्ली आईएएस अफसरो की पदस्थापना दस पन्द्रह साल के लिये ही होती है बाद में उन्हें अन्य उन राज्यों में जाना होता है, जिनका आईएएस स्तर के अधिकारियों का कोई राज्य का कोटा नहीं होता है.
फिर सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ में दिल्ली सरकार और केन्द्रीय अफसरों की सेवा शर्तों को लेकर मामला विचाराधीन है उसका संबंध इस अधिनियम से नही है. न्यायालय संसद को काम करने यानि कानून बनाने से नहीं रोक सकता यह बात भी सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश और वर्तमान मनोनीत राज्य सभा सदस्य ने अच्छी तरह से समझा दिया.
यह उनका राज्य सभा में पहला संबोधन था. इसे देख समझ में आ गया कि मोदीजी उन्हें क्यों मनोनीत कर राज्य सभा में लाए हैं.
फिलहाल दिल्ली केन्द्रीय सेवा अधिनियम लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो गया है. जल्दी ही इस पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर देंगे. फिर यह कानून बन जाएगा.
पर मुझे लगता नहीं है कि केजरीवाल और केन्द्र सरकार की रस्साकसी खत्म हो गई है. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया जाना तय सा है. वहां अदालत इस पर स्थगन देती है या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा. अदालत इस को कैसे लेती है यह भी देखना होगा उसी के बाद रस्साकसी पर अस्थाई और थोड़ी लगाम की उम्मीद की जा सकती है.