नई दिल्ली, 15 दिसंबर 2021. सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन के 2011 की जनगणना में सामने आए आंकड़े सार्वजनिक नहीं होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में केंद्र की दलील को स्वीकार कर लिया है. केंद्र ने कहा था कि 2011 में ओबीसी की संख्या जानने के लिए जातिगत जनगणना नहीं हुई थी. परिवारों का पिछड़ापन जानने के लिए सर्वे हुआ था. जातिगत जनगणना के लिहाज से ये आंकड़े त्रुटिपूर्ण है. इस्तेमाल करने लायक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर महाराष्ट्र सरकार ने याचिका दाखिल की थी. राज्य सरकार ने स्थानीय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने के लिए यह आंकड़ा सार्वजनिक करने की मांग की थी. लेकिन कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है. एक अहम बात यह भी है कि कोर्ट ने केंद्र के जिस हलफनामे को स्वीकार किया है, उसमें 2022 में भी जातीय जनगणना न करने की बात कही गई है. केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने कोर्ट में दाखिल लिखित जवाब में कहा था कि पिछड़ी जातियों की गणना कर पाना व्यावहारिक नहीं होगा. केंद्र ने बताया था कि 2011 में जो सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस किया गया था, उसे ओबीसी की गणना नहीं कहा जा सकता.