बेशक ’’रोम’’ कहें, लेकिन ‘‘ओंम्’’ को तो बख्श दीजिये

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2021-06-24 01:27:01


बेशक ’’रोम’’ कहें, लेकिन ‘‘ओंम्’’ को तो बख्श दीजिये

बेशक ’’रोम’’ कहें, लेकिन ‘‘ओंम्’’ को तो बख्श दीजिये

- प्रकाश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल

इस खीझ का कोई इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं रहा होगा. विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की धूम है. इस प्राचीन भारतीय ज्ञान का सारे विश्व ने लोहा माना है. यही वजह है कि यूनाइटेड नेशंस ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मान्यता दी है. ग्लोबली मिली इस सफलता का सीधा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है. यही वजह है कि इस दिन को लेकर कांग्रेस की खिसियाहट सामने आ गयी है. इस दल के प्रवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि योग के दौरान ‘‘ओंम्’’ का उच्चारण करने से कोई ताकत नहीं मिलती है.

डॉ. सिंघवी पेशे से वकील हैं. विचारधारा से कांग्रेसी. प्रतिबद्धता के हिसाब से गांधी-नेहरू परिवार को समर्पित. विवाद के लिहाज से वह शख्स, जिनका एक स्त्री शरीर की एनोटॉमी को परखता वीडियो खासा वायरल हुआ था. तो तमाम लिहाज से चर्चित व्यक्तित्व के वह धनी हैं. लेकिन सिंघवी की आज की बात उनकी वैचारिक निर्धनता को दर्शाती है. ‘‘ओंम्’’ से शायद वह किसी जिस्मानी ताकत की उम्मीद लगाए बैठे थे. हो सकता है यह उनकी उम्र का तकाजा हो. उनके वयस के कई लोग शरीर से ‘‘विशिष्ट श्रेणी की खोयी ताकत’’ फिर से पाने के लिए यहां से वहां फिरते हुए दिख जाते हैं. तो ऐसे में बाकी मन या मस्तिष्क की ताकत वाले तत्व बेमानी लगने लगते हैं.

  खैर, डॉ. सिंघवी को यह समझना चाहिए कि ‘‘ओंम्’’ मानसिक ताकत देता है. उससे मिलने वाली वैचारिक और आत्मिक ऊर्जा को विज्ञान ने भी स्वीकारा है. अब देश का दुर्भाग्य रहा कि आजादी के बाद भी केंद्र सरकारों के स्तर से शिक्षा के मामले में एकांगी विचारधारा को ही आगे बढ़ाने का काम किया गया. इस वन वे ट्रैफिक से बच्चों को घूंघट को कुप्रथा बताया गया और कभी भी बुरका जैसी लादी गयी विवशता की बुराई नहीं गिनाई गयी. मुगल आक्रांताओं को भी महान बताकर कोर्स की किताबों में उनकी पूजा की गयी तथा महाराणा प्रताप के तमाम शौर्य को ‘‘घास की रोटी’’ से तौलकर उसकी अहमियत खत्म कर दी गयी. दीपावली पर लोगों द्वारा जुआ खेलने की बुराई को इस पर्व से जुड़े निबंधों में साधिकार जगह मिली, किन्तु ईद पर बकरों की कुर्बानी वाली पंक्तियां कहीं जगह ही नहीं पा सकीं. आजादी के बाद के करीब साठ साल तक यह सब चला और अब जो चल रहा है, उसे इसी सबका एक्सटेंशन कह सकते हैं. 

आखिर ऐसा कौन सा आप महान अविष्कार कर रहे थे कि आप ध्यान को निर्बलता से जोड़ने पर आमादा हो गए ? क्या आपको यह बेचैनी सताने लगी कि यदि पूरे विश्व में योग की ही तरह ‘‘ओंम्’’ भी गूँज गया तो कहीं आप और आपके वैचारिक पुरखों के सारे किये-कराये पर पानी न फिर जाए? मालिनी अवस्थी जी का एक साक्षात्कार सोशल मीडिया पर वायरल है. इसमें वह बता रही हैं कि दूरदर्शन ने उनके के कार्यक्रम पर इसलिए ऐतराज जताया था, कि उसमें अयोध्या और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की महिमा का बखान किया गया था. यह उस समय का वाकया है, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. ऐसे में आज वाले घटनाक्रम के बाद कहीं न कहीं यह लगने लगा है कि राम, अयोध्या और अब ध्यान ये सभी किसी खास एजेंडे के तहत निशाने पर लाये गए या लगातार लाये जा रहे हैं.

कहीं कोई मांग या शोर नहीं उठा कि योग के साथ ‘‘ओंम्’’ का उच्चारण किया जाना अनिवार्य है. किसी ने नहीं कहा कि योग करने वाले व्यक्ति को अपने हिन्दू से अलग वाले धर्म के किसी शब्द का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है. योग स्वस्थ जीवन की एक शैली है. वह धर्म नहीं, बल्कि सेहतमंद मन और देह का मार्ग है. लेकिन क्योंकि आपको तुष्टिकरण करना है. अपने वोट बैंक को साधने तथा आकाओं को खुश करने के लिए किसी भी तरह से मोदी का विरोध करना है, इसलिए आपने ‘‘ओंम्’’ को मुद्दा बना दिया. सोचिये इस बेवजह के विवाद का क्या असर होगा. दुनिया के जो देश आज योग को अपना चुके हैं, वे यही पाएंगे कि जिस देश के ज्ञान को उन्होंने माना, उस देश में, उसी ज्ञान से जुड़े औचित्यहीन सवाल उठाये जा रहे हैं.

सिंघवी जी, इस भारतीय परंपरा में शब्द नहीं , भावों का महत्व है। ये वो पुण्य भूमि है, जिसमें ‘‘मरा-मरा’’ कहने वाला भी अंततः रामचरित मानस जैसे महान जीवन दर्शन की रचना कर गए. क्योंकि ऐसा करने वाले के भाव अंत में एक विश्वास वाले प्रेरणा पुंज से एकाकार होकर विध्वंस से सृजन तक वाली शक्ल में बदल गए। आप बेशक ‘‘ओंम्’’ मत बोलिये, लेकिन इसे बोलने वालों को लांछित करने की कोशिश तो न करें. आप स्वतंत्र हैं कि ‘‘ओंम्’’की बजाय ‘‘रोम’’ का मंत्रोच्चार करें, किन्तु कृपया राम राज्य की अवधारणा वाले देश में रोम राज्य की फितरत को लादने का प्रयास न करें. आपको अपनी आस्था मुबारक और बाकियों की आस्था को कृपया बख्श दीजिये. मोदी पर खीझ उतारने के शायद आपको कुछ और मौके मिल जाएंगे, मगर ऐसा करने के फेर में अपनी तमीज से खुद ही खिलवाड़ न करें.


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