खतरा - देश दुनिया में भूखों की आबादी बढ़ेगी
- राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
अगर हम अभी नहीं संभले तो, तापमान वृद्धि के कारण साल 2030 तक चावल, गेंहू, मक्का और ज्वार की उत्पादकता में 6 से 10 प्रतिशत तक की कमी आ जाएगी और यह आंकड़ा भारत के सन्दर्भ में कुछ ज्यादा बड़ा रहेगा. पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के सन्दर्भ में प्रति व्यक्ति प्रत्येक दिन 7322 किलो जूल ऊर्जा प्राप्त करता है और इसमें से 66 प्रतिशत से अधिक गेंहू, चावल, मोटे अनाज और पाम आयल से प्राप्त होता है.
देश के बिहार स्थित बोरलॉग इंस्टिट्यूट फॉर साउथ एशिया के रिसर्च फार्म द्वारा किये गए एक अनुसंधान के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान, अनियमित बारिश और पानी की कमी के कारण भविष्य में धान की पैदावार कम होगी. इस अध्ययन में कुछ सुझाव भी दिए गए हैं, जिनपर अमल कर पैदावार को बढ़ाया भी जा सकता है. यह अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी आज की तुलना में 2 अरब अधिक होगी और 60 प्रतिशत से अधिक खाद्यान्न की जरूरत पड़ेगीस चावल दुनिया में बड़ी आबादी का मुख्य भोजन है और धान के उत्पादन की शुरुआत पारंपरिक तौर पर दुनिया के उन क्षेत्रों में शुरू की गई थी, जहां सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्र में पानी आसानी से उपलब्ध थास धान की पैदावार से लेकर चावल निकालने तक की प्रक्रिया में पानी की बहुत जरूरत होती है. अनुमान है कि एक किलो चावल के उत्पादन से लेकर बाजार तक पहुंचने में 4000 लीटर पानी की जरूरत होती है.
इस अध्ययन के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान धान की फसल तैयार होने की अवधि लगातार घट रही है, जिससे इसकी पैदावार गिर रही है. जलवायु परिवर्तन से तापमान, बारिश और वायु में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की सांद्रता प्रभावित होती है और यही सभी कारक पैदावार को भी प्रभावित करते हैं. परंपरागत तौर पर धान के रोपे को जिस खेत में लगाया जाता है, उसमें कम से कम 6 इंच गहरा पानी इकट्ठा किया जाता है. यह पानी गर्मी और हवा के साथ ही वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में मिल जाता है, जिससे भारी मात्रा में पानी की बर्बादी होती है. पानी बचाने के लिए किसानों को रोपे के स्थान पर धान की बीज वाली किस्मों का पैदावार बढ़ाना चाहिए, जिससे खेतों में पानी की खपत कम होगी. यदि, परंपरागत तरीके से ही खेती करनी है, तब खेतों में खड़े पानी के ऊपर कृषि अपशिष्ट का छिडकाव कर देना चाहिए, जिससे पानी का वाष्पीकरण कम होगा. कृषि अपशिष्ट पानी के कारण जल्दी विखंडित होगा और खेतों में कार्बनिक खाद की प्रचुरता होगी. इन तरीकों से उपज के कुल नुकसान में से 60 प्रतिशत नुकसान की भरपाई की जा सकती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान से चावल बनाने की प्रक्रिया के दौरान लगभग 30 प्रतिशत उपज बर्बाद हो जाती है, यदि इस बर्बादी को रोक दिया जाए तो चावल का उत्पादन स्वतः 30 प्रतिशत बढ़ जाएगा.
एक अन्य अध्ययन के अनुसार यदि भूजल के संसाधन खत्म हो गए और जिसकी पूरी संभावना भी है, तब सिचाई के अभाव में देश में सर्दियों की फसलों के औसत उत्पादकता में 20 प्रतिशत की कमी हो जाएगी. इस समस्या से सबसे अधिक प्रभावित उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के क्षेत्र होंगे, जहां उत्पादकता 68 प्रतिशत तक कम हो जाएगी. यह कमी तब होगी, जब भूजल खत्म हो जाएगा और सिंचाई के लिए नहरों का पानी भी नहीं उपलब्ध रहेगा. भूजल खत्म हो जाने के बाद यदि नहरों का पानी आंशिक तौर पर भी उपलब्ध कराया जाएगा तब भी कृषि उत्पादकता में औसतन 7 प्रतिशत की कमी हो जाएगी और सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में यह कमी 24 प्रतिशत तक हो जाएगी. भूजल का पूरा विकल्प नहरें नहीं हो सकतीं हैं. नहरों में पानी नदियों से आता है, जिनमें पानी की मात्रा मौसम पर निर्भर करती है और पिछले कुछ वर्षों से देश की लगभग हरेक नदी में पानी का बहाव कम होता जा रहा है.
नहरों के साथ पानी के असमान वितरण की समस्या भी है. नहरों के पास के खेतों में जब सिंचाई की जाती है, तब पर्याप्त पानी उपलब्ध रहता है, लेकिन नहरों से खेतों की दूरी जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, किसानों को पानी की कमी का सामना करना पड़ता हैप् नहरें हरेक जगह पहुंच भी नहीं सकती हैं, इसीलिए भूजल का उपयोग बढ़ता गया था, जो हरेक जगह उपलब्ध है.
सब जानते हैं कि बढ़ते तापमान का असर सबसे अधिक परम्परागत खेती पर पड़ता है और सबसे कम आधुनिक खेती पर, पर असर हरेक प्रकार की खेती पर होता है. सितम्बर 2018 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक पश्चिमी अफ्रीका के देशों में अनाज की उत्पादकता में 2.9 प्रतिशत और भारत में 2.6 प्रतिशत तक की कमी होगी, जबकि कनाडा और रूस में इनमें क्रमशः 2.5 और 0.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी. इस रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक दुनिया की आबादी 10 अरब तक पहुंच जाएगी और दुनिया में फसलों की पैदावार कम होने से भूखे लोगों की आबादी भी बढ़ेगी.