अब मिजोरम मुख्यमंत्री टकराव की राह पर
आजाद भारत को अशांत पूर्वोत्तर विरासम में मिला था. उसे जैसे तैसे शांत करने की कोशिशें आज भी जारी हैं. पूर्ववर्ती केन्द्र सरकार और कांग्रेस ने राजनीतिक हित साधने के लिये समस्याओं को समग्रता के साथ नहीं देखा और बस अस्थाई प्रयास किये और कुछ को समय के साथ स्थाई कर दिया तो कुछ समय के साथ परंपरा जैसे स्थाई हो गये.
मिजोरम की समस्या भी ऐसी ही है. मिजोरम कभी असम के एक जिला लूसिया हिल्स था जिसे मिजो जनजाति के साथ शांति की खातिर सशस्त्र संघर्ष में लगे एक समूह के साथ एक एमओयू के बाद 1972 में केन्द्र शासित राज्य बनाया और 1987 में एक समझौते के तहत पूर्ण राज्य बना दिया गया. उसकी 40 सदस्यों की विधानसभा है और उसका एक सांसद है.
1986 के एक एमओयू के तहत संविधान की धारा 371 में आर्टिकल जी को जोड़ा गया जिसमें मिजोरम को स्पेशल स्टेटस दिया गया. साथ ही कहा गया कि मिजोरम की जनजातियों के रीति रिवाज, परंपरा, जमीन संबंधी मामलों, सिविल और ्िक्रमनल जस्टिस मामलों में संबंधित जातियों, उनकी काउंसिल और राज्य की सहमति के बगैर कोई कानून नहीं बनाया जा सकेगा. भारतीय संविधन के तहत भारतीय संसद इन मामलों में कोई कानून नहीं बना सकेगी. ऐसा यहां की क्षेत्रीय अस्मिता की रक्षा के नाम पर किया गया. यहां जो छोटे बड़े समूह हैं, उनके छोटे बड़े राजा और सरदार हैं उनको शांत रखने के लिये इस धारा को जोड़ा गया.
मिजोरम की 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार के साथ लगती है. मिजोरम में मिजो और चिन आदिवासी जनजाति का बाहुल्य है जो ईसाई धर्म को मानते हैं. चिन जाति के लोग बड़ी संख्या में म्यांमार में सीमावर्ती इलाकों में रहते हैं इसलिये भारत का म्यांमार से एक समझौता है कि चिन जनजाति के लोग दिन में कितनी भी बार एक दूसरे के देश में आ जो सकेंगे. पर उन्हंें उसी दिन अपने अपने देश में वापस लौटना भी पड़ेगा. उल्लेखनीय है कि 1935 तक म्यांमार जिसे तब बर्मा कहा जाता था भारत का ही हिस्सा था. अंग्रेज जाते जाते बर्मा को भी आजादी देकर देश का एक विभाजन आजादी के पहले ही कर गये थे. तब से लेकर अब तक म्यांमार के साथ भारत का नागरिकता संबंधी कोई समझौता नहीं है. .
सत्तर साल में वहां सिर्फ एक गैर कांग्रेसी सरकार बनी. बाकी समय कांग्र्रेस की सरकारें ही रही. एक गैरकांग्रेसी जो सरकार थी वह थी नेशनल मिजो पार्टी की.. 1918 से वहां इसी मिजो नेशनल पार्टी की सरकार है और उसके मुख्यमंत्री हैं जोरम थंगा. उनकी पार्टी के 27 विधायक हैं. यहां से एक सांसद हैं जो जोरमथंगा की पार्टी का ही है और वे केन्द्र में एनडीए सरकार को सशर्त समर्थन दे रहे हैं.
अब जबसे म्यांमार में सैन्य शासन के बाद अशांति आई है तब से जिस प्रकार बांग्ला देश के रास्ते रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार छोड़ा उसी प्रकार भारत की शांति और विकास देख चिन जाति के आदिवासियों ने भारत में आना तेज कर दिया. वैसे भी काफी समय से चिन आदिवासी भारत में आने के बाद वापस न जाकर यहीं बसने लगे थे. म्यांमार में अशांति के बाद केन्द्र सरकार ने असम रायफल्स को भारत-म्यांमार सीमा सील करने का आदेश दिया ताकि कोई वहां से भारत में घुसपैठ न कर सके. साथ ही जो अवैध तरीके से भारत में आकर चिन जाति के लोग बस गये थे उसे लेकर भी सुगबुगाहट शुरू की गई. इससे सर्तक होकर मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने केन्द्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि चिन जनजाति के लोगों को अवैध घुसपैठिया न मान कर शरणार्थियों का दर्जा दिया जाए. पर केन्द्र सरकार ने इसके लिये इंकार कर दिया तो जोरमथंगा बगावती आवाज में बात करने लगे. वे इस बारे में म्यांमार सरकार से बातचीत करने की बात भी कह रहे हैं जो असंवैधानिक है. कोई भी रा,ज्य सरकार ऐसा नही कर सकती है. विदेशी संबंध मामलों पर केन्द्र का एकाधिकार है.
भारत सरकार ने यह भी कहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कंवेशन पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है इसलिये संयूक्त राष्ट्र शरणार्थी आयोग के कायदे कानूनों को भी नहीं मानता है. इसलिये भी वह चिन आदिवासियों को शरणार्थी का दर्जा नहीं दे सकता है.