चौथी पारी का एक साल - फ्रंट फुट पर खेलते शिवराज...

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2021-03-23 01:24:43


चौथी पारी का एक साल - फ्रंट फुट पर खेलते शिवराज...

चौथी पारी का एक साल - फ्रंट फुट पर खेलते शिवराज...
- राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
तेईस मार्च 2020 को मध्यप्रदेश के चैथी दफा मुख्यमंत्री बन रिकार्ड बना चुके शिवराज सिंह चैहान पहले दिन से आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं. सरकार और भाजपा ने मंगलवार तेईस मार्च 21 को चैथी शिव सरकार के पूरे हो रहे पहले साल का उत्सव मनाना आरम्भ कर दिया है. मुर्दों में जान फूंकने में सिद्धस्त शिवराज सिंह ने खाली खजाने के बाद भी सरकार के फर्ज निभाने की काबिल ए तारीफ कोशिशें की हैं. टीम कैप्टन के नाते उन्होंने जहां भी संगठन और सरकार कमजोर दिखी वहां बेटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग से लेकर मैनेजरी भी की है. कह सकते हैं कि हरफनमौला की भूमिका में रहे शिवराज नगरीय निकाय के चुनावों से लेकर विधानसभा और लोकसभा में भीड़ लाने, वोट जुटाने और रूठे नेता-कार्यकर्ताओं को मनाने वाले लीडर के रूप में खुद को स्थापित करने में कामयाब रहे. लेकिन कमलनाथ से छीनी अबकी सरकार में वे प्रतिपक्ष से ज्यादा अपनी सरकार और संगठन से मिलने वाली मुश्किलों से रफ्तार नही पकड़ पा रहे हैं. इसके पीछे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और उनके बीच तालमेल में कमी बड़ी वजह मानी जा रही है. विरोध और अंतर्कलह के बाबजूद वे पहले से ज्यादा बेफिक्र और जिंदादिल नजर आ रहे हैं.
 कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद मार्च 2021 में जब शिवराज सिंह चैहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तब सरकार चलाना बहुत कठिन था. मतलब पॉलिटिक्स की पिच खराब थी, सियासी बादल इस तरह छाए थे कि असन्तोष के ओले-बारिश कब हो जाए पता नही. कांग्रेस में उपेक्षा और अपमान का विष पी कर भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया को साधना हर किसी के बूते की बात नही थी. कमलनाथ को धूलधूसरित करने के बाद का सिंधिया का रथ जमीन से सवा फुट ऊपर चल रहा था. सिंधिया समर्थकों की जस की तस ताजपोशी और उसके भाजपा के असन्तोष का शमन कर उप चुनाव में सबको को जिता कर लाना कठिन काम था. कमलनाथ दोबारा सत्तासीन होने के लिए खम ठोंक रहे थे. खैर तूफान से कश्ती खींच कर बाहर लाई जा चुकी है. मुख्यमंत्री कई बार कह चुके हैं चैथी बार सीएम बनने का सपने में भी नही सोचा था. अब खुल कर काम बिना किसी की चिंता के जनहित में कठोर निर्णय करेंगे. कुल मिलाकर गण को सुविधा देंगे और तंत्र को कसेंगे. कोरोना महामारी के बीच राज्य का खजाना खाली है फिर भी तंगी का अहसास कम ही होने दिया.
सिंधिया शिविर के मंत्रियों के साथ खुद सिंधिया को सम्हालना बहुत आसान काम नहीं है. दरअसल सिंधिया की कार्यशैली त्वरित निर्णय की रही है. वे जब किसी मंत्री को फोन पर भी काम बताते हैं तो उस तुरन्त अमल के साथ आदेश की भी वाट्सएप या ई मेल पर लगती है. ऐसा करना भाजपा के मंत्रियों की आदत में पहले कभी रहा नही. सो उन्हें महाराज की कार्यशैली कम सुहाती है. सिंधिया की पसंद के मंत्री भी हों, अफसर भी हों साथ में सरकार में वे जो भी काम बताएं वह भी तुरन्त हो. मतलब जितनी तव्वजो सीएम को लगभग उतना ही महत्व सिंधिया को. ये सब ऐसा ही जैसे ‘‘आग का दरिया है और डूब कर जाना है’’..।    
शिव-विष्णु पर निशाने
भाजपा में चाहे अनचाहे गुटबाजी शुरू हो गई है. संगठन में टीम वीडी शर्मा के बाद एक समूह सरकार में बदलाव की चर्चा कर रहा है. इसके पीछे दिल्ली के नेताओं की भी सहमति बताई जाती है. कुछ नेता संकेत के रूप में इसके पीछे संघ परिवार की मर्जी बताने में लगे हैं. शिवराज सिंह से स्नेह रखने वाले भैया जी जोशी के बाद दत्तात्रेय होसबले का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सर कार्यवाह (महासचिव) बनना भी शिवराज विरोधियों के लिए मजबूत करेगा. लेकिन सब जानते हैं कि सीएम शिवराज अपनी सहजता, सौम्यता और विनम्रता के चलते अपने विरोधी का भी दिल जीत लेते हैं. देखना होगा अबकी बार वे कितना सफल हो पाते हैं.
कमजोर संगठन और टीम मैनेजर
मप्र भाजपा अब तक के युवा साथ ही अपरिपक्व नेताओं के साथ काम कर रही है. संगठन में जिन नेताओं का काम मुख्यालय में रह कर जनता और मीडिया में पार्टी का पक्ष रखना चाहिए वे खुद जननेता बन विधानसभावार  राजनीति कर रहे हैं. नेता बनाने वाले खुद नेता बन चुनाव लड़ने के चक्कर में संगठन और सत्ता का इस्तेमाल कर रहे है. इस तरह की प्रवृत्ति जिन्हें रोकना चाहिए वे आंखें बंद किए समर्थन की मुद्रा में हैं. कल को पार्टी इससे दिक्कत में पड़ेगी.
मीडिया के मंच पर सरकार की पिटाई
प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित एक नेशनल न्यूज चैनल केे मंच पर शिवराज सरकार की ही पिटाई हो गई. चैथे कार्यकाल के पहली सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने रेत खनन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर खूब खिंचाई की. उन्होंने आरोपों के साथ यह भी चुनोती दी कि सरकार चाहे तो उनके विरुद्ध अदालत भी जा सकती है. वे इसके लिए तैयार हैं. एक तरह से मंच सरकार का और शौहरत लूट ले गए दिग्विजयसिंह. इसी तरह इस आयोजन में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा को दिग्विजय सिंह-कमलनाथ की तरह अकेले मंच देने के बजाए पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव के साथ डिवेट में बैठा दिया. यहां भी आरोप और तर्क में होमवर्क करके आए यादव भारी पड़ गए. पूरे मामले में मीडिया को लेकर भाजपा नेताओं और उनके मैनेजरों की कमजोरी सामने आई. नए अध्यक्ष की सरलता और इससे उपजी गलाकाट गुटबाजी के कारण पार्टी अब तक मुख्य प्रवक्ता और प्रवक्ताओं की भी घोषणा नही कर पाई है. ऐसे ही छोटे-बड़े कार्यक्रमों में सत्ता व संगठन को नुकसान उठाने पड़ेंगे.
साभार -नया इंडिया, भोपाल

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