‘‘थियेटर आज भी सार्थक और प्रगतिशील है’’

Category : इंटरटेंनमेंट | Sub Category : सभी Posted on 2021-03-21 06:02:05


‘‘थियेटर आज भी सार्थक और प्रगतिशील है’’

‘‘थियेटर आज भी सार्थक और प्रगतिशील है’’
- ‘वल्र्ड थियेटर डे’ के मौके पर थियेटर से टेलीविजन तक का सफर तय करने वाले एण्ड टीवी के कलाकारों ने कही यह बात
विलियम शेक्सपियर का एक कथन है, ”पूरी दुनिया एक रंगमंच है और हर स्त्री और पुरुष इसके कलाकार. अपने तय समय में वह अंदर आते हैं और तय समय में मंच छोड़ देते हैं. एक व्यक्ति एक वक्त में बहुत सारे किरदार निभाता है, जिसे सात अवस्थाओं में बांटा गया है. ”वल्र्ड थियेटर डे” के मौके पर थियेटर से टेलीविजन का सफर तय करने वाले एण्डटीवी के कुछ कलाकारों ने इस बारे में बात की. उन्होंने थिएटर के प्रति अपनी मोहब्बत और कुछ भूली बिसरी यादें हमारे साथ साझा कीं. उन कलाकारों में ‘भाबीजी घर पर हैं’ के विभूति नारायण मिश्रा (आसिफ शेख) और मनमोहन तिवारी (रोहिताश्व गौर), ‘हप्पू की उलटन पलटन’ के दरोगा हप्पू सिंह (योगेश त्रिपाठी), राजेश सिंह (कामना पाठक) और कटोरी अम्मा (हिमानी शिवपुरी) शामिल हैं. आसिफ शेख उर्फ विभूति नारायण मिश्रा कहते हैं, यह दिन उन लोगों के लिये जश्न का दिन है जो कला के इस रूप का महत्व समझते हैं. थियेटर समाज से जुड़े मुद्दों, बातों को आगे ले जाने में मदद करता है. इसमें सामाजिक बदलाव लाने की ताकत है. थियेटर एक सांस्कृतिक घटना है, जोकि समाज को अपना अक्स आईने में देखने के लिये मजबूर करता है. इस कला के साथ मेरा अनुभव कमाल का रहा है. भले ही मुझे इस बात पर गर्व हो कि मैंने फिल्मों और टेलीविजन दोनों में काम किया है, लेकिन मेरी जान थियेटर में ही बसती है.’’ रोहिताश्व गौड़ उर्फ मनमोहन तिवारी कहते हैं, ‘‘थियेटर  वो जगह है जहां मैं पैदा हुआ. यह मेरे लिये घर जैसा है और इसके साथ हमेशा ही मेरा एक भावनात्मक जुड़ाव रहेगा. एक छोटे शहर से होने के कारण हम स्कूल में नाटकों में हिस्सा लिया करते थे. यह सबसे भावपूर्ण माध्यम है और कोई भी अपनी बात बेझिझक कह सकता है. मुझे इसके अंदर की शक्ति महसूस हुई और मुझे एकदम ही इससे प्यार हो गया. ‘वल्र्ड थियेटर डे‘ के मौके पर थियेटर को यहां तक लाने के लिये मैं पूरी इंडस्ट्री को बधाई देना चाहूंगा.‘‘ योगेश त्रिपाठी उर्फ हप्पू सिंह कहते हैं, ‘‘मेरे सफर की शुरुआत लखनऊ के थियेटर से हुई थी. थियेटर के दिग्गजों से मिली सीख की वजह से इस इंडस्ट्री के प्रति मेरे मन में आदर और बढ़ गया. पहले प्रस्तुत किये जाने वाले नाटक काफी पारंपरिक स्टाइल के होते थे और उस दौर में वह सिर्फ काॅमेडी, रोमांस या फिर सस्पेन्स तक ही सीमित था. आज इस जोनर में काफी बदलाव आ गया है. अब ड्रामा, रोमांस-काॅमेडी और समसामयिक मुद्दे दिखाये जाने लगे हैं. मैं हमेशा ही थियेटर का आभारी रहूंगा, क्योंकि इसकी वजह से मुझे टेलीविजन इंडस्ट्री में अपना पहला रोल मिला और आज जो कुछ हूं इसी की बदौलत हूं.’’ कामना पाठक उर्फ राजेश सिंह कहती हैं, ‘‘वल्र्ड थियेटर डे’ के मौके पर आज मेरी कई पुरानी यादें ताजा हो गयीं. एक बार मैं अपने डायलाॅग की कुछ लाइनें भूल गयी थी, लेकिन मैंने हिन्दी की जगह उर्दू का इस्तेमाल किया. जब नाटक खत्म हुआ पूरी टीम जोर-जोर से हंसने लगी. सौरभ शुक्ला और मनोज जोशी जैसे मंझे हुए कलाकारों के साथ मंच साझा करने से लेकर एमएस सतायु साहब के साथ काम करने तक, वे मेरे जिंदगी के सुनहरे दिन थे. मैं सही मायने में खुद को खुशकिस्मत मानती हूं. एक माध्यम के रूप में थियेटर में काफी बदलाव आया है. पहले ज्यादातर भारतीय नाटक और मायथोलाॅजी हुआ करती थी, लेकिन आज एक से बढ़कर एक बेहतरीन प्रस्तुतियां होती हैं.’’ हिमानी शिवपुरी उर्फ कटोरी अम्मा कहती हैं, ‘‘थियेटर कला का सबसे पुराना स्वरूप है और मेरे दिल के बेहद करीब है. सुरेखा सीकरी और उत्तरा बोरकर जैसी अद्भुत हस्तियों के साथ अपने करियर के शुरुआती दिन बिताना, एक शानदार अनुभव रहा है. मुझे आज भी याद है जब मैंने एक छोटे से गांव में ‘ओथेलो’ का एक किरदार डेस्डेमोना निभाया था. हम थोड़ा डरे हुए थे कि दर्शक शेक्सपियर को समझ पायेंगे कि नहीं. लेकिन हमें यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि गांववालों ने अंत तक पूरा नाटक शंाति से देखा. उन्होंने बीच-बीच में तालियां भी बजायीं, जहां बजानी चाहिये थी. इससे मुझे अहसास हुआ कि हम भारत के सुदूर गांवों में रहने वाले लोगों को कितना गलत समझते हैं. थियेटर हमेशा ही प्रगतिशील है.’’

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