नई बसाहट बसाने से पहले सोचे जरुर
- राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
जब भी हम आर्थिक विकास के साथ-साथ पुराने शहरों के विस्तार और नये शहर बसाने की जरूरत पर विचार करते हैं, शहर के आसपास बसे गाँव की कृषि योग्य और खाली पड़ी भूमि नजर आती है. कुछ साल में वहां शहर जैसा कुछ बसने लगता है और प्रदूषण, गंदगी और भीड़ उसका अंग बनने लगता है. अब तो शहरीकरण की इस अंधाधुंध प्रक्रिया पर भी नये सिरे से सोचा जाना बहुत जरूरी हो गया है.
वर्ष 20011 की जनगणनाको आधार मानें तो, हमारे देश की आबादी का 31 प्रतिशत हिस्सा शहरों में बसता है. यह आंकड़ा 2030 में 40 प्रतिशत और 2050 में 50 प्रतिशत से ज्यादा हो सकता है. हाल ही में वित्त आयोग ने केंद्र सरकार को आठ नये शहर बसाने के लिए आठ हजार करोड़ रुपये का अनुदान दिया है. आदर्श शहरीकरण का उदाहरण प्रस्तुत करने का यह एक शानदार अवसर है. यही पर हमें गाँव और उन्नत गाँव पर विचार करने शुरू कर देना चाहिए. अगर अभी ठीक से विचार हुआ तो ये परियोजनाएं राष्ट्रीय विकास की प्रक्रिया को नयी गति दे सकती हैं.
नये बसने वाली इन बसाहटों को प्रदूषणमुक्त बनाने के साथ इनमें संसाधनों के समुचित उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है. इस प्रयास में शहरीकरण के अच्छे और खराब अनुभवों का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए. बीते कुछ सालों में सरकार ने शहरों की बेहतरी के लिए बहुत कुछ किया है पर नई बसाहटों का समग्र विकास पीछे रह गया है. जैसे राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के तहत 2026 तक 2.68 करोड़ शहरी परिवारों तक पेयजल पहुंचाने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है बहुत मंद गति से चल रहा है. शहरों में साफ हवा के साथ साफ पानी की समस्या बेहद गंभीर है. स्वच्छ ऊर्जा पर जोर देकर सरकार प्रदूषण और कचरे की बढ़ती चुनौतियों से निजात पाने की कोशिश में हमको फौरन लग जाना चाहिए. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 22 भारत में हैं. अभी देश में केवल 13 ऐसे शहर हैं, जहां स्वच्छ ऊर्जा के लिए लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं या इस संबंध में नीतियां तय की गयी हैं. क्या कहें सरकारी गति है ?
इन 13 शहरों में 6.76 करोड़ लोग बसते हैं, यह संख्या शहरी आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा है. इससे साफ है कि शहरों के सुधार की दिशा में देश को लंबी यात्रा करनी है. बेहतर शहरीकरण के लिए यह जरूरी है कि उपनगरों के विस्तार और नये शहरों के निर्माण की प्रक्रिया में सरकार, किसानों, भवन निर्माताओं व खरीदारों के बीच भरोसा बढ़े. इससे जमीन लेने, गुणवत्ता बढ़ाने और परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने में मदद मिलने के साथ लोग बसने के लिए भी उत्साहित होंगे.
एक तरफ शहर में आवास की कमी है, तो दूसरी तरफ विभिन्न कारणों से तैयार आवास खाली पड़े हैं. आवास परियोजनाओं का समय पर पूरा नहीं होना भी पुरानी समस्या है. गंदगी और प्रदूषण तथा पानी की कमी का सबसे बड़ा कारण यह है कि शहर बनाने या विस्तार करने में योजनाओं को ठीक से या तो तैयार नहीं किया जाता है या फिर उन पर ठीक से अमल नहीं किया जाता है. बस गाँव की जमीन पर सबकी नजर है.
छोटे शहरों संरचना, उनके अधिकार और उन्हें उयुक्त संसाधन पर समुचित विचार करने की आवश्यकता बहुत समय से महसूस की जा रही है, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हुए हैं. भारत बनाने के लिए बेहतर शहरीकरण जरूरी है तो उसकी आधारभूत शर्त है छोटा शहर और पूर्ण शहर और इसे प्राथमिकता देने की जरूरत है.