मप्र कांग्रेस न सड़क पर संघर्ष न सदन में दिखी संजीदा
- राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि मेरी दोस्ती शिवराज सिंह चैहान से तो क्या पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी है. हालांकि ये बात लोकाचार में कही गई लगती है. लेकिन सच ये है कि सड़क और सदन में भी सत्ता के साथ विपक्ष का दोस्ताना व्यवहार सड़क पर आई कांग्रेस को खाए जा रहा है. कभी कमलनाथ से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि वे जनता के मुद्दे पर सड़क पर उतर जाएंगे. इस पर कमलनाथ जी ने कहा था कि सिंधिया को किसने रोका है सड़क पर उतरने से. नतीजा यह हुआ कि सिंधिया बागी हुए और कमलनाथ और कांग्रेस सड़क पर आ गई. इसके बाद संघर्ष करने बजाए अब कांग्रेस सदन में भाजपा की बी टीम बनती दिख रही है. पूरे मामले में लगता है कि कांग्रेस वर्तमान हालात में भाजपा के लिए बहुत मुफीद साबित हो रही है. नगरीय निकाय के चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस की तैयारी नजर में नही आती. टिकट वितरण का काम कांग्रेस ने जिला स्तर पर छोड़ दिया तो शायद नतीजे बेहतर आ जाएं. प्रदेश नेतृत्व के पास जानकारों की कमी है. फिलहाल प्रदेश कांग्रेस को ब्लाक स्तर तक जानने वाले दिग्विजय सिंह के बिना काम करना पड़ रहा है. अभी उनके पास पुंडुचेरी और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव का जिम्मा हाईकमान ने सौंपा है. कांग्रेस न्यूसेंस वाली टीम से गुडविल कमाने के कठिन और जोखिम भरे काम मे जुटी दिख रही है.
मप्र विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है लेकिन सरकार को सदन में मुद्दों पर घेरने के बजाए विपक्ष बहिर्गमन की रणनीति को आक्रमकता मानने में लगा है. मजबूत और सक्रिय विपक्ष हमेशा सरकार की जिम्मेदारी तय कराने की कोशिश करता है. सदन की चर्चा संजीदा हो इसके लिए बाकायदा शेडो केबिनेट बनाई जाती है. मंत्री रहे विधायकों को उनसे सम्बंधित विभाग के मुद्दे सदन में उठाने का काम सौंपा जाता है. उनकी मदद के लिए अन्य विधायक अलग अलग एंगिल से चर्चा को आगे बढाकर सरकार को जनहित के मसले पर कार्रवाई करने के विवश करते हैं. अब तक सदन में कांग्रेस मजबूत और आक्रमक विपक्ष की भूमिका अदा करती दिख रही है. सदन में कांग्रेस नेतृत्व में जुझारूपन की कमी अखर रही है. कांग्रेस के भीतर एक बात हंसी मजाक में कही जाने लगी है कि हम लोग सरकार के मिलजुलकर प्रदेश की प्रगति के लिए काम कर रहे हैं. बाहर से पृथक हैं मगर अंदर से मिले हुए हैं. सड़क पर किसान आंदोलन के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ मुद्दे की गम्भीरता को देखते हुए जरूरत के हिसाब से सक्रिय नही है. इस तुलना में दिग्विजय सिंह ज्यादा मेहनत कर रहे हैं. किसान आंदोलन को प्रभावी बनाने के लिए वे गांव में खाट चैपाल करने में जुटे हुए हैं. इस काम में उन्होंने पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को भी सक्रिय किया है.
खंडवा पर कई नाम आए सामने
भाजपा के खण्डवा सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नन्दकुमार सिंह चैहान के हाल में निधन के बाद कांग्रेस में अरुण यादव का नाम टिकट के लिए सामने आ रहा है. दिग्विजयसिंह का उनके लिए समर्थन भी तय माना जा रहा है. भाजपा में पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस का नाम भी सुर्खियों में है. लेकिन कुछ आसमानी सुल्तानी नही हुआ तो नन्दू भैया के पुत्र को पार्टी मैदान में उतार सकती है. निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेर भी अपनी पत्नी के लिए टिकट की दावेदारी कर सकते हैं. फिलहाल तो भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा अपनी टीम के साथ प्रदेश का दौरा कर रहे हैं. इस तुलना में कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ फील्ड में कही नजर नही आते. ऐसे कांग्रेस को भाजपा की बी टीम मानने की चर्चा भी कांग्रेस में खूब जोरों पर है.
साभार - नया इंडिया, भोपाल