बजट “आत्म निर्भर” की जगह “आत्म अवलोकी” हो शिवराज जी
- राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है. वैसे मध्यप्रदेश सरकार अभी कर्ज लेकर काम चला रही है. सरकार पर दो लाख आठ हजार करोड़ का कर्ज है. प्रदेश की अर्थव्यवस्था पहले ही बदहाली के दौर से गुजर रही है. कोरोना व लॉकडाउन ने प्रदेश की विकास दर को बुरी तरह प्रभावित किया है. बजट की तैयारियों में लगे सरकार के वित्त विभाग ने सभी विभागों को निर्देश दिए हैं कि विभागों के रोजाना खर्च में कटौती की जाए. ऐसी योजनाओं पर कम से कम बजट दिया जाए, जो या तो भविष्य में बंद की जानी हैं या जनता को नापसंद है. वित्त विभाग ने ये निर्देश सभी विभागों को बजट प्रस्ताव भेजने के के पहले ही दे दिए थे. इसका असर खास तौर पर विभागों के रोजाना के खर्च और योजनाओं पर स्पष्ट दिख रहा है. इस बजट में सरकार “आत्म अवलोकन” भी करे.
परिवहन, सुरक्षा, साफ-सफाई और सत्कार जैसे कुछ विभागों को खर्च पर पांच प्रतिशत से ज्यादा बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव ना भेजने के निर्देश वित्त विभाग ने दिए थे. कर्मचारी वर्ग की मांगों को लेकर भी वित्त विभाग ने सभी विभागों को यह भी निर्देश दिया है कि कर्मचारी वर्ग की जो मांगे हैं उनके प्रस्ताव ऐसे बनाये जाए कि शासन पर अतिरिक्त वित्तीय भार ना आए. जहाँ तक संभव हो आगामी वित्तीय वर्ष में कर्मचारी वर्ग की मांगों को आर्थिक और अनार्थिक में विभाजित कर दिया जाए.
बजट तैयार करने के पूर्व दिए गये निर्देशों में साफ कहा गया है कि आगामी बजट में योजनाओं के की आवंटन मांग या तो पिछले वित्तीय वर्ष के अनुसार रखी जाएं या योजनाओं की भविष्य की स्थिति का आकलन कर अगर योजना बंद होने की स्थिति में है, तो बजट में कटौती की जाए. मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा का कहना है कि आप सबको पता है कि कोरोना काल में पूरा विश्व प्रभावित हुआ है. देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है. इसीलिए प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. इन परिस्थितियों में भी सरकार ने बेहतर तरीके से काम किया.
मध्यप्रदेश सहित भाजपा की सारी सरकारें राम राज्य को अपना आदर्श मानती है, परंतु बजट के मामले में उनका दृष्टिकोण इतर होता है. राम राज्य के बजट की व्याख्या रामचरितमानस में कुछ इस प्रकार की गई है.
“मणि मानिक महंगे किये, सहजे तृण, जल नाज. तुलसी ऐसो राज, है राम गरीब नवाज.
भाजपा नीत केंद्र की राजग सरकार तो इस पैमाने पर खरी नहीं उतरी, अब शिवराज सरकार की बारी है. कहने को मध्यप्रदेश सरकार के वित्त मंत्री अभी तो “कर विहीन” बजट की बात कर रहे हैं, आगे क्या होगा यह तो बजट की किताब बताएगी.
राम राज्य में कर कैसे लगाये जाते थे, यह भी भाजपा सरकार को राम चरितमानस से सीखना चाहिए. रामचरितमानस कहती है -
“बरसत हरसत सब लखें, ‘कर’ सत लखे न कोय. तुलसी प्रजा सुभाग से, भूप भानु सा होय.’’
कर कष्टदायक न हो सूर्य जैसे जल से वाष्प लेता है, राज्य को कर ऐसे लेना चाहिए, मध्यप्रदेश में तो अभी कर के कारण पेट्रोल डीजल देश में सबसे महंगे है.
सरकार का दावा है आगामी बजट आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश पर फोकस होगा. बीते दिनों सरकार ने इस बात के संकेत भी दिए थे. और कहा था प्रदेश के बजट में आमजनता, उद्योगपतियों व विशेषज्ञों से राय ली जाएगी. इन रायों और रायचन्दों का क्या हश्र हुआ ? पता चलेगा, वैसे एक राय यह भी है बजट “आत्म अवलोकी” तो होना ही चाहिए.