सर्द मौसम में अलाव बन गई हैं मुलाकातें...
- राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
सर्द हवाओं के बीच इन दिनों मध्यप्रदेश के दो दिग्गज नेताओं की भेंट वार्ताएं गर्माहट पैदा कर रही हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के मध्य मुलाकातों का सिलसिला सियासतदांओ के अलावों पर हाथ सेंकने के साथ ख्याली पुलाव पकाने का जरिया भी बन रहा है. भोपाल में शिकार और लजीज गोश्त के लिए खरगोश का कबाब भी खाने- खिलाने का शौक पाले हुए हैं. लिहाजा जाड़े के दिनों में राजनीति के जानकार शिवराज और कमलनाथ की मुलाकात के अलाव पर सियासत को उलट पलट कर सेंकने में लगे हैं. इसकी गुनगुनी आंच में जो पक रहा है उसमें कांग्रेस- भाजपा नफा नुकसान पर चर्चा ज्यादा है. किसान आंदोलन से लेकर महंगाई के दौर में संघर्ष के बजाए कमल - शिव की दोस्ती के क्या मायने हैं..? भाजपा के लिए यह शुभ लगती है तो कांग्रेस में सदन से लेकर सड़क तक के संघर्ष की धार को बोथरा करती दिखती है.
किसान आंदोलन के बीच प्रदेश में बजट सत्र आने वाला है. कांग्रेस, किसान आंदोलन के साथ खड़ी है. हालत यह है की आंदोलन किसानों से ज्यादा कांग्रेस के लिए जीवन मरण का प्रश्न बना हुआ है. ऐसे में प्रति लीटर शतक को छूता पेट्रोल और कुकिंग गैस सिलेंडर का सवा सात सौ रुपए उछल जाना कांग्रेस के लिए सड़क पर उतरने के बजाए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान से दोस्ती करना कांग्रेस में सवाल खड़े करता है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की हालत कमजोर हो रही है. किसान आंदोलन को लेकर प्रदर्शन में कमलनाथ भोपाल के बजाए जिले स्तरीय नेता की भांति छिंदवाड़ा में नजर आए. वे भोपाल में होते तो शायद आंदोलन ज्यादा प्रभावी होता. भोपाल में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने प्रदर्शनकारियों के साथ गिरफ्तारी दी. यहीं से शुरू होते हैं अलावों पर सियासत के सवाल.
जब विपक्ष में आई कांग्रेस को सदन से लेकर सड़क तक मोर्चा खोलना है उसके सबसे बड़े नेता कमलनाथ संघर्ष के स्थान पर सुविधा की राजनीति करते दिख रहे है. इसे भाजपा में शिवराज सिंह की सफलता और कांग्रेस में कमलनाथ की विफलता के रूप में देखा जा रहा है. सुधीजनों को याद होगा कि पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने पर विपक्षी नेता के रूप में भाजपा ने शिवराजसिंह की अगुवाई में साइकिल व बैल गाड़ी के साथ प्रदर्शन किया था. लेकिन इन्हीं मुद्दों पर कमलनाथ और कांग्रेस गायब है. लेकिन प्रेसनोट और प्रेस वार्ता के जरिए कमलनाथ कहते हैं कि वे सूबे कि सियासत से रुखसत होने वाले नही हैं. साथ ही यह बयान भी आता है कि अब कमलनाथ कार्यकर्ताओं के लिए भी उपलब्ध रहेंगे. मुख्यमंत्री रहते विधायक - मंत्री से मुलाकत से बचने वाले नेता के कुछ इस तरह के सन्देश बताते हैं कि अभी भी हालात ठीक नही हैं.
किसी एक पद से विदा होना पड़ेगा ...
कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति कहती है कि कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष में से किसी एक पद से विदा होना पड़ेगा. हालांकि यह सब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही सम्भव लगता है. कांग्रेस के जमीनी नेताओं की रे है कि अध्यक्ष के लिए जुझारू नेता की आवश्यकता है जो दिनरात मेहनत कर कार्यकर्ता और जनता के लिए खून- पसीना बहाने का माद्दा रखता हो. कम से कम कमलनाथ इस मामले में अब तक फिट नही बैठते. सन 2018 के पहले भी भाजपा सरकार के खिलाफ मैदान में कमलनाथ नही थे. उस समय पीसीसी चीफ अरुण यादव, अजय सिंह राहुल और जीतू पटवारी ने प्रदेश में परिवर्तन यात्राएं निकाली थी. चुनाव के दौरान दिग्विजय सिंह ने कार्यकर्ताओं में गुटबाजी खत्म करने के लिए पंगत में संगत कार्यक्रम किया था. इसके पहले उनकी नर्मदा परिक्रमा ने भी कांग्रेस को सक्रिय करने में अहम भूमिका अदा की थी. तब कमलनाथ सीन में नही थे. अब भी वे सड़क पर संघर्ष किए बिना सदन और संगठन के शीर्ष पर बने रहना चाहते हैं. सड़क पर वे बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शिव सरकार को घेरने में सफल नही हो सके हैं. देखना हैं बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर क्या करते हैं. लेकिन अब तक का उनका रोल उत्साहित कम निराश ज्यादा करता है. कांग्रेस नेतृत्व की हालत पर एक कहावत खूब फिट बैठती है - मेहनत करे मुर्गा और अंडा खाए फकीर ......
- नया इंडिया भोपाल