केन्द्र सरकार को रुलाने वाले किसान नेता अब सुप्रीम कोर्ट के दाव पर रोंयेंगे

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2021-01-13 06:38:31


केन्द्र सरकार को रुलाने वाले किसान नेता अब सुप्रीम कोर्ट के दाव पर रोंयेंगे

कृषि सुधार कानूनों पर बदनीयती से किसान आंदोलन चला रहे नेता अब सुप्रीम कोर्ट के दाव पर खूब रोएंगे. डरी सहमी सरकार पुचकार पुचकार कर पूछ रही थी, बेजा मांगे तक पूरी कर रही थी, चिरोरी कर पूछ रही थी और क्या चाहिये? वे बिगड़ेल बच्चे की तरह  कहते तीनों कृषि कानून हटाओ. बार बार पूछने पर कभी मौन साध लेते तो कभी कार्ड बोर्ड बताते तो कभी अपनी बात कहते और हां या ना में जवाब मांगते. खूब नाटक किये.
अब कसमा रहे हैं. कह रहे हैं हम तो सरकार से बात करेंगे. हम सुप्रीम कोर्ट गये ही नहीं तो उसकी कमेटी की बात क्यों सुनें? तो क्या पहले काले कुत्ते ने काट लिया था जो सरकार से बात ही नहीं कर रहे थे और ठुनक ठुनक कर कह रहे थे कोई बात नहीं पहले तीनों कानून वापस लो?
अब हो सकता है कि सरकार कहे कि तीनों कानून तो सब जूडिशियस हो चुके हैं. अदालत के हाथ में हैं हम उन पर बात नहीं कर सकते कोई और बात करो. वे अन्य बातों पर बात कर सकते हैं. ऐसी ही अन्य मांगों में से दो को वे मनवा भी चुके हैं  जबकि यह कदापि उचित नहीं था फिर भी सरकार ने मन मारकर मंजूरी दे दी. हो सकता है अब केन्द्र सरकार कह दे कि मांगे तो मान लेंगे पर पर लागू तभी करेंगे जब किसान घर वापसी की हमारी मांग को पूरा कर दें. तब आंदोलनकारी क्या जवाब देंगे?
अब चलिये संदर्भ के लिये ही सही उन दो मांगों पर भी बात कर लें जो गलत होने के बाद भी मान ली गई. पहली मांग थी पराली संबंधी कानून से किसानों को छूट. दिल्ली की हवा को प्रदूषित कर दम घोटने वाली हवा में बदलने के लिये ये बंधन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर बनाए गये थे, प्रदूषण में किसानों की भूमिका गंभीर थी इसलिये किसानों की पराली को लेकर कठोर नियम बनाए गये. लेकिन सरकार को उन नियमों में किसानों को ही छूट दी गई. हो सकता है ग्रीन ट्रिब्यूनल की डांट सरकार को सुननी पड़े.
इसी प्रकार की समस्या बिजली को लेकर थी. कर्ज माफी से ज्यादा लालचाने वाला चुनावी फ्री बिजली रहा  है. सस्ती बिजली भी ऐसा ही चुनावी लालच है. उससे आगे बढ़कर पंजाब में फ्री बिजली का नारा चल रहा है. बिजली कानून बना कर केन्द्र सरकार ने यह प्रावधान दिया कि पचास पैसे यूनिट से कम दर पर राज्य बिजली सप्लाई नहीं करवा सकेंगे. राज्य सरकारें जो भी छूटें देंगी उसकी भरपाई राज्य सरकारों को बिजली वितरण कंपनी को करनी होगी. यानि फ्री बिजली पर रोक. बिजली उत्पादन बढाने के लिये केन्द्र सरकार ने बिजली उत्पादन   को बढ़ाने के लिये निजी कंपनियों को इंसेंटिव दिये गये. सही दाम पर बिजली सप्लाई हो इसके लिये बिजली नियामक आयोग बनाया.
इस सख्ती के बाद भी राज्य सरकारों ने बिजली वितरण कंपनियों का दिवाला पीटने के लिये रास्ता निकाल लिया. बिजली सस्ती देने को मजबूर किया और रियायत की राशि देने में टालमटोल शुरू कर दी. इससे बिजली वितरण कंपनियों का दिवाला पीटने लगा.
केन्द्र सरकार ने इसी से बचने को बिजली कानून में संशोधन  कर यह प्रावधान करने की कोशिश की कि किसान या रियायत पाने वाले पहले बिजली का पूरा बिल भरे और बाद में राज्य सरकार किसानों और दूसरे उपभोक्ताओं के बैंक खातों में सबसीडी की रकम डाले. एक दम रसोई गैस की तरह.
राज्य सरकारों ने किसानों को भड़काया. इसका ज्यादा असर पंजाब में पड़ा जहां फ्री बिजली दी जा रही थी. वहां किसान पहले बिल कैसे भरते और सबसीडी पाने के लिये राज्य सरकार की कृपा का  अंतहीन इंतजार करते. संशोधन का प्रावधान अभी ड्राफ्ट ही था उसी की आंदोलनकारी किसानों ने भ्रूण हत्य करने को केन्द्र सरकार को मजबूर कर दिया. जो पूरी तरह से गलत था.

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