पंजाब-हरियाणा के भविष्य से खिलवाड़ कब तक

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2020-12-20 23:21:20


पंजाब-हरियाणा के भविष्य से खिलवाड़ कब तक

पंजाब-हरियाणा के भविष्य से खिलवाड़ कब तक
किसान आंदोलन में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग सबसे ज्यादा हैं. यहां का 90 फीसदी धान और गेंहूं एमएसपी पर खरीद लिया जाता है. इसकी क्वालिटी ऐसी नहीं होती है कि निजी क्षेत्र इसको अपने प्राॅडक्ट के लिये खरीद सके. यहां अन्य फसलें, सब्जी, फल का उत्पादन काफी कम  है. इस मामले में यहां प्रयोग और नवाचार भी न के बराबर होते हैं. जबकि देश के अन्य हिस्सों में इससे ठीक अलग स्थिति है.
कृषि में इस ठहराव का दुष्प्र्रभाव यह है कि पंजाब और हरियाणा में कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं. इसका  कारण यहां रसायनिक खाद, उर्वरक और कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग है. फसलों के पलटे न जाने से जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है. वहीं जमीन का बंजर होने का सिलसिल तेज होता जा रहा है. जमीन के अंदर का पानी पंपों से ज्यादा निकालने के कारण भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है. जानकारों का मानना है कि यही स्थिति रही तो पंजाब दस साल बाद बूंद बूंद पानी को तरस जाएगा. पराली की समस्या सबसे  ज्यादा गंभीर है. उसे जलाने के कारण दिल्ली की हवा इतनी जहरीली हो जाती है कि वहां रहना दूभर होता जा रहा है. बीमार लोगों, वृद्धजनों, बच्चों की हालत तो खासतौर पर खराब है.  चूंकि पराली जलाने का ऐसा विषाक्त प्रभाव पंजाब और हरियाणा पर नहीं पड़ता इसलिये वहां की सरकारें भी इस दिखा में खर्च करने की जहमत नहीं उठाती. इन क्षेत्रों की जनता को पता है कि वोटबैंक की लालची सरकारें न मंडी व्यवस्था को खत्म होने देगी न सरकारी खरीद कम हो सकती है और न पराली पर कोई कठोर कार्यवाही राज्य सरकारें होने देंगी. किसान वोट बैंक के लिये देशभर में फैला विपक्ष तो अन्नदाता के वोटबैंक के चलते उनके साथ है ही.
इस समस्या का एकमात्र समाधान कृषि में नवाचार है. फसलों में परिवर्तन, कम पानी वाली फसलों पर जोर. पर जब कम मेहनत में गेंहूं और धान ही उनको उनके पैमाने पर संतोष जनक लाभ सरकारी खरीद के कारण दे रहे हैं तो वे खतरा मोल क्यों लें. यही कारण है कि किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली को सील करने का आंदोलन पूरे जोर शोर से चल रहा है.
बात अनाज उत्पादन की नहीं आड़तियों की कमाई की भी है जिससे पूरी राजनीति बेजा फायदा उठाती है. उसका आर्थिक सहयोग  अटूट है. क्योंकि आड़तियों को पता है कि कृषि कानून उन्हीं को खत्म करने के लिये लाए जा रहे  हैं.
कांट्रेक्ट फार्मिंग का विरोध पंजाब के मध्यम और बड़े किसान जम कर कर रहे हैं. उनके दबाव में छोटे किसान बड़ी संख्या में दिल्ली सीमा पर डटे हैं. आंदोलनकारियों में 70 फीसदी ये छोटे किसान ही हैं. बाकी बड़े किसान हैं जो रोटेशन में आते जाते रहते हैं. कृषि कानून इन छोटे किसानों के पक्ष में ही ज्यादा हैं. फिर भी ये वहां ज्यादा क्यों हैं? कारण यह है कि इन किसानों के लिये स्वयं खेती करना फायदे का सौदा नहीं है. इसलिये मध्यम और बड़े किसान इनकी जमीन को अधबटाई  या किराये पर ले लेते हैं. फिर इन्हीं किसानों को मजदूरी पर भी रख लेते हैं. नतीजन छोटे किसान को किराये और अधबटाई से तो आय हो ही जाती है. मजदूरी भी अलग से मिल जाती है. इससे उनकी जिंदगी जैसे तैसे चल जाती है.
अब मध्यम और बड़े किसानों का दर्द यह है कि छोटे किसान कांट्रेक्ट फार्मिंग में चले गये तो उनकी इंनकम मारी जाएगी. वहीं छोटे किसानों को अपेक्षाकृत ज्यादा लाभ मिलेगा तो ये छोटे किसान उनकी पकड़ से बाहर निकल जाएंगे.
पंजाब के भविष्य और छोटे किसानों की भलाई के लिये जरूरी है कि कृषि कानून लागू हों. लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि किसान आंदोलन का आने वाले समय में क्या होगा.

Contact:
Editor
ओमप्रकाश गौड़ (वरिष्ठ पत्रकार)
Mobile: +91 9926453700
Whatsapp: +91 7999619895
Email:gaur.omprakash@gmail.com
प्रकाशन
Latest Videos
जम्मू कश्मीर में भाजपा की वापसी

बातचीत अभी बाकी है कांग्रेस और प्रशांत किशोर की, अभी इंटरवल है, फिल्म अभी बाकी है.

Search
Recent News
Leave a Comment: