- सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी के लिये किसान नेताओं पर दबाव बना रहे हैं आंदोलन को हाईजैक करने वाले
किसान आंदोलन को हाईजैक करने वालों को सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप पसंद नहीं आया. जिन किसान संगठनों को सुप्रीम कोर्ट के नोटिस की सूचना देने की कोशिश व्हाट्सएप के माध्यम से याचिताकर्ता ने की उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया,. न अपनी तरफ से सुप्रीम कोर्ट से संपर्क किया. दूसरे दिन की सुनवाई लंबे अवकाश के चलते 6 जनवरी तक के लिये स्थगित कर दी. साथ ही कहा कि जरूरत होने पर अवकाशकालीन जज की अदालत में सरकार औ आंदोलनकारी जा सकते हैं. इसकी आशंका पहले दिन से ही स्वयं सुप्रीम कोर्ट को शायद थी इसीलिये उसने आंदोलनकारियों पर जुर्माना लगाने से यह कह कर इंकार कर दिया कि मुंबई हाईकोर्ट ने शिवसेना पर एक आंदोलन के संदर्भ में जुर्माना लगाया था वह आज तक नहीं भरा गया है. लिहाजा इससे बचा जाना ही ठीक है.
दूसरे दिन भी अदालत ने केवल आंदोलनकारियों और जनता के अधिकारों पर ही ज्यादा जोर दिया. यहां तक कि समिति बनाने की दिशा में कोई पहल नहीं की न सरकार को कोई निर्देश दिया कि वह क्या करे. शांतिपूर्ण आंदोलन को मूल अधिकर माना. जनता की परेशानी को देखते हुए आवाजाही को भी उनका अधिकार बताया. रास्ता किसानों ने रोका है या पुलिस ने इस पर भी कोई बात नहीं की. यानि सरकार भी आजाद है और सरकार भी.
अब कम से कम एक सप्ताह तक आंदोलनकारी अपने आंदोलन को विस्तार देने, सीमाओं को सील किये रहने के लिये करीब करीब आजाद हैं. आंदोलन को हाईजैक करने वालों ने पहले तीनों कानून वापस लेने की जिद पर बने रहने के साथ सुप्रीम कोर्ट से हर तरह की दूरी बनाये रखने के निर्देश भी शायद दिये हैं. ऐसे में इस बात की काफी संभावना है कि आंदोलनकारी बाद में भी सुप्रीम कोर्ट के बुलावे तक को अनदेखा करने के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट और सरकार की ताकत को चुनौती देने की कोशिश करें.
वहीं सरकार ने भी ठान लिया है कि वह तीनों कानूनों को वापस नहीं लेगी. और जब तक आंदोलनकारी तीनों कानूनों को वापस लेने की जिद नहीं छोड़ देते वह बातचीत के लिये पहल नहीं करेगी. साथ ही भाजपा भी पूरी ताकत से तीनों कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. किसान सम्मेलन, विभिन्न आधारों पर किसानों को एकत्रित करने, कृषि कानूनों से लााभान्वित होने वालों के समाचार प्रचारित करवाने की कोशिश की जाए. भाजपा के नेता भाजपा शासित राज्यों में तो दिन रात एक करेंगे ही, हो सकता है गैर भाजपा शासित राज्यों में भी किसान सम्मेलन और रैलियों का रास्ता अपनाने की कोशिश करें. साथ ही देश में जो 621 रजिस्टर्ड किसान संगठन हैं उनमें से 580 को वे कानूनों के पक्ष में ले आये हैं उन्हें भी सक्रिय कर किसानों को बाहर निकालें और प्रति आंदोलन की भूमिका तैयार करे.
किसान आंदोलन में साम्यवादी, नक्सलवादी, उग्रवादी, खालिस्तानी तत्वों की अनचाही घुसपैठ से आंदोलन को छिटपुट बदनामी का सामना पहले से ही करना पड़ रहा था. आंदोलन के विस्तार की आड़ में राजनीतिक दलों के खुले प्रवेश से हिंसा की संभावना बढ़ गई है क्योंकि राजनीतिक आंदोलनों में अराजक और असामजिक और गुंडा तत्वों की घुसपैठ आम बात है.
जब राजनीतिक कार्यक्रमों से हिंसा होगी तो पुलिस कार्यवाही भी होगी जिससे हिंसा को बढ़ावा ही मिलेगा. इससे किसान आंदोलन में बिखराव आएगा.
वहीं भाजपा के कार्यकर्ता भी जब ज्यादा सक्रिय होंगे तो किसान आंदोलनकारियों और भाजपाई कार्यकर्ताओं का आमना सामना रोकने और टकराव होने की प्रबल संभावना बनी रहेगी. यह कहीं कहीं हिंसक रूप भी ले सकती है.
आनेवाला एक सप्ताह गंभीर चुनौतियों से भरा रहेगा. देखना यह है कि 6 जनवरी तक क्या होता है.