बिहार में अडाणी क्यों नहीं गये अपने गोदाम बनाने, व्यापारी और कारपोरेट्स क्यों नहीं गये बिहार में खरीद के लिये, या रिलायंस फ्रेश क्यों नहीं गया वहां स्टोर खोलने और खरीद करने, अमूल का ही सही क्यों नहीं गया ध्यान बिहार के पशु पालकों की ओर दूध खरीदने. समझ लीजिये इसके लिये राजनीतिक नेतृत्व जिम्मेदार है. लालू जी ने गरीबों को बाबू साहबों के आगे खड़ा कर यादव और मुसलमान गठबंधन की दम पर 15 साल राज किया. बलशाली यादवों की ज्यादतियों ने अपराधियों को जमीन उपलब्ध कराई तो वह जंगलराज में बदल गया. लालटेन को लाइट में बदलने की लालूजी ने कभी नहीं सोची. इसकी पराकाष्ठा पर विरोध की आवाज उभरी और जंगलराज की समाप्ति और सुशासन का नारा लेकर नीतीश कुमार सरकार में आये. उन्होंने कानून व्यवस्था को सुधारा, सुरक्षा दी और सड़कें दी. यादव वोटबैंक की टक्क्र में अतिपिछड़ा वर्ग का वोट बैंक बनाया. शराबबंदी और सुरक्षा की दम पर महिला वोट बैंक खड़ा किया. भाजपा ने मध्यम वर्ग और उंची जातियों का टेका लगाया. इसकी दम पर 15 साल राज किया. छोटा भाई के नाते सुशील मोदी ने कुछ नया नही किया न पार्टी को करने दिया. बस भाजपा की सत्ता में भागीदारी बनी रहे इसके लिये नीतीशकुमार की छाया बने रहे. मोदी जी ने केन्द्र की दम पर कई बड़े प्रोजेक्ट पूरे कराए. पर न नीतीश कुमार और न सुशील मोदी कभी बायब्रेंट बिहार या बिहार इंवेस्टमेंट मीट की राह चले न विदेशों में बिहार में इंवेस्टमेंट के लिये रोड शो किये जबकि सारे देश के मुख्यमंत्री यह सब कर रहे थे. यही कारण रहा कि चैथी टर्म में नीतीश तो पिटे ही सुशील मोदी भी आउट हो गये. अब भाजपा बड़ा भाई है. उम्मीद की जानी चाहिये कि मोदी सरकार और भाजपा बिहार सरकार दबाव डाल कर बिहार की जरूरत का धान और अनाज बिहार से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर एफसीआई से खरीद करवाएगी. दालों, फल, सब्जियों के लिये कांट्रेक्ट फार्मिंग पर जोर देगी. बायब्रेंट बिहार की राह पर नीतीशकुमार भी चलेंगे.