ये भी जानिए कोरोना वैक्सीन लगवाने से पहले

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2020-11-26 22:48:42


ये भी जानिए कोरोना वैक्सीन लगवाने से पहले

ये भी जानिए कोरोना वैक्सीन लगवाने से पहले
राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल
जल्दी ही कोरोना वैक्सीन का बाजार गर्म होने वाला है. इसलिए ये जानना जरूरी है इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? जल्द ही दुनिया के 750  करोड़ लोगों को वैक्सीन दिए जाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू हो सकता है. इन तमाम वैक्सीन की सफलता की दर को लेकर जो दावे सामने आये हैं, अत्यधिक भ्रमित करने वाले हैं. फाइजर का दावा है कि उसकी वैक्सीन 95 प्रतिशत तक प्रभावशाली है. मॉडर्ना 94.5 प्रतिशत रूस की स्पूतनिक 95 प्रतिशत, ऑक्सफोर्ड और आस्त्रजेनेका की वैक्सीन 90  प्रतिशत और भारत में बन रही कोवाक्सीन के ६०  प्रतिशत तक सफल होने का दावा किया जा रहा है.
दुनिया भर के वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना वायरस को जड़ से समाप्त कर दिया जाए. लेकिन ये कैसे और कब होगा इस बारे में अभी पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि, आम तौर पर एक वैक्सीन को तैयार करने में 5  से 10  वर्ष लग जाते हैंद्य पोलियो की वैक्सीन तैयार होने में 47  वर्ष ,चिकन पॉक्स के खिलाफ वैक्सीन बनाने में 42  वर्ष और इबोला की वैक्सीन तैयार करने में 43  वर्ष लग गए थे. एड्स जिसके संक्रमण का पहला मामला वर्ष 1959  में आया था आज 61 वर्ष बीत जाने के बाद भी इसका इलाज नहीं ढूंढा जा सका है. लेकिन ये अकेली ऐसी वैक्सीन है जिसे 10 महीने में तैयार करने का दावा किया जा रहा  है.
वैक्सीन कैसे तैयार होती है और उसका परिक्षण कैसे होता है. यह जानना जरूरी है. परिक्षण के दौरान लोगों को दो समूहों में बांटा जाता है और इनमें से आधों को वैक्सीन दी जाती है और आधे लोगों को कोई वैक्सीन नहीं दी जाती. दावा किया गया है कि फाइजर के परीक्षण में जो लोग शामिल थे, इनमें से 170 लोगों को कोराना का संक्रमण हुआ. लेकिन इनमें से भी 162  लोगों को कोई वैक्सीन नहीं दी गई थी, जबकि 8 लोगों को वैक्सीन लगी थी. इस आधार पर इस वैक्सीन के 95  प्रतिशत तक सफल होने की बात कही गई है. ठीक इसी प्रकार अन्य दावे किये गये हैं.
आम तौर पर ट्रायल में जो लोग शामिल होते हैं वो स्वस्थ होते हैं यानी उन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं होती. लेकिन जब ये वैक्सीन दुनिया के करोड़ों लोगों को दी जाएगी, तो इसके असली असर के बारे में पता चलेगा. द लैंसेट मेडिकल जर्नल के अनुसार दुनिया के 95  प्रतिशत लोगों को पहले से कोई न कोई बीमारी है, इसलिए जब दुनियाभर के लोगों को ये वैक्सीन दी जाएगी तब जाकर ये पता चल पाएगा कि ये वैक्सीन अलग-अलग लोगों पर और अलग-अलग परिस्थितियों में कितने प्रतिशत कारगर हैं.
अब बात कीमत की. फाइजर की वैक्सीन की एक डोज करीब 1400  रुपये में उपलब्ध होगा. मॉडर्ना की वैक्सीन सबसे ज्यादा महंगी होगी जिसकी कीमत 4  हजार रुपये प्रति डोज आंकी जा रही है. जबकि भारत में बन रही कोवैक्सीन के लिए ये कीमत सिर्फ 100 रुपये तक मानी जा रही है. दुनियाभर के देशों ने खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अमेरिका ने सबसे ज्यादा संख्या में ऑर्डर दिए हैं. दूसरे नंबर पर यूरोप के देश हैं और तीसरे नंबर पर भारत है. इसके बावजूद सभी देश अगले एक वर्ष में सिर्फ 25  प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीन दे पाएंगे. पहले चरण में ये वेक्सीन स्वास्थ्य कर्मियों को मिलेगी, दूसरे चरण में सोशल वर्कर्स को, तीसरे चरण में 65  वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों और चैथे चरण में आम जनता को ये वैक्सीन देने की बात जोरों पर है. वैसे भारत पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा वैक्सीन्स निर्माता है इसलिए हो सकता है कि भारत के लोगों को ये वैक्सीन मिलने में इतनी समस्या न आए. वैक्सीन बाजार में  भारत में हर साल करीब 300 करोड़ की विभिन्न वैक्सीन बनती हैं. इनमें से 100  करोड़ की वैक्सीन्स का निर्यात किया जाता है.
आम तौर पर किसी को किसी भी रोग की वैक्सीन तब नहीं लगाई जाती जब उसे संक्रमण हो जाता है. वैक्सीन इसलिए लगाई जाती है, ताकि स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमण न हो. इसलिए ये वेक्सिन लगने के बाद लोगों में कोविड-19 जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं. जैसे तेज बुखार आना, मांसपेशियों में दर्द, ध्यान में कमी, और सिर दर्द की शिकायत हो सकती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इस वायरस को पहचानकर उससे लड़ने लगती है और यहीं से वायरस के खिलाफ इम्युनिटी तैयार होती है. इसके बाद वैक्सीन्स की दूसरी डोज लोगों को दी जाएगी लेकिन इसके दुष्प्रभाव पहले से कम होंगे.
 वैसे अभी दुनिया में इस समय 112  से ज्यादा ऐसी संक्रामक बीमारियां मौजूद हैं जो वायरस, बैक्टीरिया या पैरासाइट की वजह से फैलती है और हर साल इनसे करीब 1  करोड़ 70  लाख लोगों की मौत होती है. लेकिन पिछले 200  वर्षों में इनमें से सिर्फ एक ही बीमारी को पूरी तरह से जड़ से मिटाया जा सका है और वो है चेचक  (स्मॉल पॉक्स). ये सफलता वर्ष 1980  में मिली थी. इसके अलावा इंसानों को होने वाली ऐसी कोई संक्रामक बीमारी नहीं है जिसे जड़ से खत्म करने का दावा किया गया हो.

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