कोरोना से बचाव का पहला पायदान सही जानकारी
- राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल
देश में कोरोना वायरस के संक्रमितों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. कुछ राज्यों में तो कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की. इनमें गंभीर स्थिति वाले दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल भी थे. प्रधानमंत्री ने समीक्षा बैठक में विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा, कुछ लोग कोरोना वैक्सीन के आने का वक्त पूछ रहे हैं. वैक्सीन को लेकर राजनीति कर रहे हैं. वैक्सीन आने का समय हम तय नहीं कर सकते. ये वैज्ञानिकों के हाथ में है. पीएम मोदी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब वैक्सीन को लेकर विपक्ष सरकार पर लगातार हमलावर है. टेस्ट की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. जैसे इस सप्ताह हांगकांग ने एक बार फिर भारतीयों के वहां आने पर पाबंदी लगा दी। यह मामला भी टेस्ट की विश्वसनीयता से जुडा है. ऐसे में सरकार को सही जानकारी देने की सुचारू व्यवस्था करना चाहिए.
देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना के तेजी से बढ़ते हुए मामलों और मौत के आंकड़ों के साथ संक्रमण दर यानि पॉजिटिविटी रेट भी चिंता का विषय बनी हुई है. नवंबर के महीने में अब तक पॉजिटिविटी रेट लगातार 10 प्रतिशत से ऊपर बना हुआ है, और 2 बार तो पॉजिटिविटी रेट 15 प्रतिशत के पार भी जा चुका है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है कि अगर साप्ताहिक बेसिस पर बात करें तो 3 से 4 प्रतिशत का फर्क आया है.
ब्लूमबर्ग में इस सप्ताह आई एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे यहां संदेहास्पद टेस्टिंग के कारण ही शायद कोरोना संक्रमितों की संख्या इतनी कम नजर आती है. भारत में आधे के करीब टेस्ट तो रैपिड ऐंटीजन टेस्ट हैं. यह टेस्ट तेजी से हो सकते हैं लेकिन इनका रिजल्ट अकसर गलत निगेटिव दिखाता है. यानी टेस्ट कराने वाले हर चार में से एक आदमी निश्चित रूप से पॉजिटिव है.
देश में मध्य अगस्त तक हुए कुल टेस्ट में से सिर्फ 25 प्रतिशत ही रैपिड एंटीजन टेस्ट थे लेकिन अब यह बढ़कर 50 प्रतिशत हो गए हैं. बिहार जैसे राज्यों में तो 90 प्रतिशत टेस्ट इसी विधि से हो रहे हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आखिर भारत में कोरोना केसों की संख्या कम क्यों है. अमेरिका और यूके जैसे दूसरे देशों में बड़ी संख्या में संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं क्योंकि वहां आरटी-पीसीआर टेस्ट किए जा रहे हैं. इसमें समय लगता है लेकिन इनके नतीजे भरोसे लायक होते हैं।
इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में टेस्टिंग की संख्या भी असमान है. जिस दिन ब्लूमबर्ग ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की उसी दिन बिहार में चुनाव ख्तम हुए थे यानी मतदान पूरा हुआ था. बिहार में चुनाव के दौरान सिर्फ 600 नए मामले सामने आए जबकि उसी दिन दिल्ली में 7000 केस पता चले.
इस रिपोर्ट में कई विशेषज्ञों से बात की गई थी जिन्होंने भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या को लेकर संदेह जताया, जो हैरानी का विषय है. दरअसल सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर हमारे यहां कोई मानक प्रक्रिया है ही नहीं. कोरोना काल में यात्रा करने वाले लोगों को तो यह बात एकदम स्पष्ट समझ में आ गई. हम पर पाबंदी लगाकर जैसा हांगकांग ने संदेश दिया, वही बात बाकी दुनिया को भी समझ में आ गई है कि टेस्ट में कहीं गडबडी है. हांगकांग ने एक बार फिर भारतीयों के वहां आने पर पाबंदी लगा दी. वहां पहुंचे कुछ भारतीयों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद यह पाबांदी लगाई गई. अगस्त से अब तक यह पांचवीं बार है जब हांगकांग ने ऐसी पाबंदी लगाई है.
यात्रियों को कोरोना टेस्ट कराने और निगेटिव आने के बाद ही विमान यात्रा की इजाजत है. हमारे यहां शायद इस नियम को किसी किस्म की सख्ती के लागू नहीं किया जा रहा है. जो यात्री हांगकांग पहुंचे उन सबके पास इस बात का सर्टिफिकेट था कि वे निगेटिव हैं, लेकिन दोबारा जांच में यह गलत साबित हुआ. सरकार को अगली कोई कार्रवाई पहले समग्र पहलू पर ध्यान देना चाहिए. सही जानकारी ही तो बचाव का पहला पायदान रह गया है. सरकार द्वारा नागरिकों को सही जानकरी देने की सुचारू प्रणाली विकसित करना चाहिए.