मामाजी की प्रेरणा बने विश्व कल्याण का
आरएसस के सहसरकार्यवाह सुरेश सोनी का प्रख्यात पत्रकार मामाजी माणिकचन्द्र वाजपेयी के व्यक्तित्व पर केन्द्रित विशेषांक ‘माणिक जैसे मामाजी’ के विमोचन समारोह में संबोधन
डॉ. मयंक चतुर्वेदी. वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल
भोपाल, मामा जी जिस धारा में विकसित हुए, उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परंपरा में व्यक्ति का व्यक्तित्व इस नाते से जानकारी बहुत कम हो पाती है, क्योंकि इस धारा में यही कहा गया है कि सामने जो कुछ है वह राष्ट्र और समाज का है इसलिए जो कुछ यश गान करना है राष्ट्र और समाज का ही करना है, फिर भी मामा जी को आज हम याद कर रहे हैं वह इसलिए कि उन्होंने पत्रकारिता में जो कुछ किया वह अद्वितीय है.
भारतीय सनातन आदर्श को अभिव्यक्त करने वाले वह व्यक्ति रहे हैं, व्यक्ति एक संज्ञा है लेकिन यह संज्ञा अपने आदर्श के कारण विशेषण बन जाती है, जैसे एक प्रतिज्ञा-संकल्प है. भीष्म ने उसे ऐसा जिया की प्रतिज्ञा और भीष्म में कोई अंतर नहीं रहा. यहां संज्ञा और विशेषण एक हो गए, जिसे हम भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से याद करते हैं. उनकी प्रतिज्ञा ऐसी बलवान थी कि आज भीष्म एक विशेषण बन गया है, कोई कहता है कि भीष्म प्रतिज्ञा की है. वैसे ही आज माणिकचन्द्र वाजपेयी यह नाम एक विशेषण बन गया है. जैसे कोई कहता है राष्ट्र समर्पित जीवन तो मामाजी जैसा जीवन याद आता है. यानी कि मानिकचंद बाजपेई मामाजी का जीवन भी राष्ट्र समर्पित इस प्रकार से रहा कि वह और राष्ट्र उनका पूरा जीवन, उनका संपूर्ण चित्त एक हो गए थे. उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने शनिवार, 7 नवंबर को स्घ्वदेश के समूह संपादक रहे व वरिष्घ्ठ प्रचारक मामा माणिकचंद वाजपेयी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहीं.
विश्व संवाद केंद्र मध्यप्रदेश द्वारा मध्यप्रदेश के मनस्वी पत्रकार स्व. माणिकचन्द्र वाजपेयी ‘मामाजी’ के जन्मशताब्दी वर्ष पर प्रकाशित विशेषांक ‘माणिक जैसे मामाजी’ का विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया गया था. कोरोना सम्बंधित गाइडलाइन्स का पालन करते हुए आयोजित किये गए इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी मुख्य वक्ता एवं स्वदेश के पूर्व संपादक जयकिशन शर्मा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे.
श्री सोनी ने कहा कि सामान्यतः मनुष्य दिग् -दिगंतर अपना यश प्राप्त करना चाहता है, उसी तरह से व्यवहार भी करने का प्रयत्न करता है. लेकिन जो समर्पित लोग रहते हैं भारत में हों या बाहर हों, वह एक समान ही सोचते हैं. अलेक्जेंडर पोप नाम के एक कवि ने बहुत अच्छी एक कविता लिखी है, जिसका मूल यही है कि मैं जीयूं तो कैसे जीयूं और मरुं तो कैसे मरूं, वह कहता है मरुं तो चुपचाप चला जाऊं किसी को पता नहीं चले. पश्चिम में मरता है आदमी तो प्रतीक में पत्घ्थर रहता है, जो बताता है कि फलां-फलां आदमी है, लेकिन वह कहता है कि यह पत्थर भी ना बताए कि मैं कहां हूं. चिंतन में, व्यवहार में, इस कविता में जो भाव आए हैं, वह मामाजी में शत प्रतिशत उतरे थे.
उन्होंने कहा कि फिर भी विचार-भावनाएं अमूर्त होती है, वह किसी माध्यम से व्यक्त होती हैं. यह किसी ना किसी व्यक्ति के माध्यम से मूर्त रूप लेती हैं, इस नाते हम जब मामाजी के संदर्भ में विचार करते हैं तो देखते हैं कि भारत की जो सनातन परंपरा और जीवन मूल्य व धारणाएं हैं, उन व्यवहारों को अपने जीवन में एक आदर्श के रूप में धारण करनेवाले एक व्यक्ति वे रहे. मामाजी जैसे समर्पित लोग कभी यश की अपेक्षा नहीं करते, वह अदृश्य रहकर अपना कार्य करते रहते हैं. मामाजी के रहते उन्होंने ऐसा कभी विचार नहीं किया कि वह असाधारण व्यक्ति हैं. उन्होंने तो बस जो हमारी सनातन परंपरा के मूल्य हैं, उन्हें अपने जीवन में उतारा, यही कारण है कि जो उनके पास आया उनसे प्रभावित होता गया.
श्री सोनी ने बताया कि मामाजी ऐसे दूरदर्शी संपादक थे जिन्होंने 26 जून को आपातकाल लगने के 2 दिन पहले ही आपातकाल के बारे में सचेत कर दिया था. उन्होंने संपादकीय में लिख दिया था कि ऐसी काली रात आने वाली है जब संवैधानिक अधिकार छीन लिए जायेंगे और लोगों के मुंह बंद कर दिए जायेंगे. मामाजी की लेखनी में यह गहराई इसलिए थी, क्योंकि उनका जीवन समाज के प्रवाह के साथ एकरूप था.
उन्होंने कहा कि आज हमारे सामने अवधारणाओं का संकट खड़ा हुआ है, पश्चिम का विचार या विभेदीकरण का दृष्टिकोण बलवान होता दिखाई देता है. इससे हम सभी को सचेत रहने और जागृत होने की जरूरत है. मामाजी ने भी अपने समय में ऐसे सभी विषयों पर प्रमुखता से लिखा, यदि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिराजी ने भी कुछ गलत बोला है तो उस पर भी प्रमुखता से लिखा और इसी प्रकार जब जनता सरकार के समय आडवानीजी सूचना प्रसारण मंत्री बने तब उनको लेकर भी स्पष्टता के साथ अपनी लेखनी चलाई.
श्री सोनी ने कहा कि आज एक नई चर्चा शुरू हुई है, आज से 700 वर्ष पूर्व गौड़ राजा कुछ लिखने के पहले श्री गणेशाय नमः, जय श्री राम लिखकर अपना लेखन आरंभ करते थे, लेकिन आज समाज में एक नई विभेदीकरण की अवधारणा बनाने का प्रयास हो रहा है, एक नया विमर्श खड़ा करने की कोशिश हो रही है, जिससे कि हम सभी को सावधान रहने की आवश्यकता है, इससे हमें अपने देश को बचाने की जरूरत है. समझना होगा कि भारत के हित में क्या है और क्या नहीं. भारत में आदिकाल से ही हर व्यक्ति के जीवन का मूल यही रहा है कि वह दूसरों के हित में कितना कुछ कर सकता है. यह बहुत समय पूर्व की बात नहीं, भारत के जीवन में मनुष्य सुबह उठकर आखरी समय तक ऐसा अपना जीवन जीता था कि वह दूसरे के लिए अधिकतम काम आए, कुल मिलाकर दूसरे के लिए जीना यही भारतीय जीवन मूल्य है और जीवन पद्धति भी.
उन्होंने कहा कि आज हम पर पश्चिम का प्रभाव दिखता है, लेकिन कोरोना ने हमको बहुत कुछ दुबारा सोचने पर विवश किया है. गूगल भी इस बात को मानता है कि अगर सबसे ज्यादा कोई शब्द इस समय में सर्च हुआ है तो वह आध्यात्म है. वास्तव में यही भारत का अधिष्ठान है और उसका जीवन मूल्य. इसी को सही मायनों में मामाजी ने जिया है और हम सभी को भी जीने की आवश्घ्यकता है. वास्तव में हमको दुनिया में इसी आध्यात्मिक जीवन मूल्घ्य को प्रमुखता से पहुंचाने की जरूरत है. भारत का विचार, भारत का समाज विश्व के कल्याण के लिए है. मामाजी की प्रेरणा इसका निमित्त बने, यही मैं कामना करता हूं.
इस दौरान स्वदेश के पूर्व संपादक जयकिशन शर्मा ने कहा कि मेरा मानना है मामाजी का जन्म, उनका पत्रकारिता में आना यह सब पूर्व निर्धारित था. इसका निर्धारण सृष्टि ने किया था, मामाजी एक वृहद् लक्ष्य की पूर्ति के लिए आये थे. उन्होंने बताया कि मामाजी का जीवन अत्यंत सामान्य था और वह स्वदेश के प्रधान संपादक होते हुए भी साइकिल में घुमा करते थे, पुराना कुरता पहनते थे. अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार एक चैकीदार ने उनके कपडे देखकर उन्हें कार्यालय के अन्दर जाने से रोक दिया था, लेकिन मामाजी मुस्कुराते रहे, यह उनकी सरलता थी.
एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार एक बड़े नेता की कुछ अश्लील तस्वीरें लीक हो गईं. उन तस्वीरों के कारण उसे इस्तीफा देना पड़ा, संयोग से तस्वीर की कुछ प्रतियाँ स्वदेश के एक रिपोर्टर के हाथ लग गईं. इस तस्वीर के छपने से अखबार की चर्चा भी होती और नाम भी लेकिन मामाजी ने उन तस्वीरों को छापने से साफ मना कर दिया. उन्होंने कहा कि हमारा अखबार परिवारों में भी पढ़ा जाता है, हम इन तरीकों से अपना प्रचार नहीं चाहते. इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार लाजपात आहूजा ने किया.
साभार - हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी