दिल्ली एमसीडी मेयर चुनाव में नजर आ सकता है ‘‘जादू‘‘ 18 फरवरी 2023
आपने जादू देखा हो तो देखा होगा कि जादूगर बक्से में लड़के को लिटाकर बंद करता है और जब खोलता है तो उसमें से लड़की निकलती है. कभी कभी कबूतर भी निकलते हैं. ऐसा कुछ दिल्ली एमसीडी चुनाव में भी संभव है. कहने को अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को अच्छा खासा बहुमत है फिर भी हो सकता है कि आप का मेयर न बन कर भाजपा या किसी और का बन जाए.
यह इसलिये कहना पड़ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के 17 फरवरी को जारी आदेश पर मेयर का चुनाव होना है. 24 घंटे में बैठककी अधिसूचना जारी होनी है और 72 घंटे में बैठक बुलाकर गुप्त मतदान प्रणाली से मेयर का चुनाव करवा लेना है. यही नहीं डिप्टी मेयर, व कमेटियों के सदस्यों के चुनाव भी उसी के साथ साथ निपटाने हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक इसमें उप राज्यपाल द्वारा मनोनीत पार्षद यानि एल्डरमैन वोट नहीं डाल पाएंगे. बाकी के निर्वाचित पार्षद और विधायक प्रतिनिधि, लोकसभा और राज्यसभा के सांसद प्रतिनिधि वोट डालेंगे. चुनाव गुप्त मतदान पद्धति से होगा.
एमसीडी में भाजपा के 104 और आप के 134 पार्षद हैं. दो निर्दलीय पार्षदों में से एक भाजपा में शामिल होने के कारण भाजपा की संख्या 105 हो गई है. छह लोकसभा सांसद प्रतिनिधि हैं. आप के 134 निर्वाचित प्रतिनिधि और बाकी उसकी पार्टी के एक सांसद प्रतिनिधि हैं. इसे देखते हुए लगता तो यही है कि 250 पार्षद वाली एमसीडी में सभी को मिलाकर सदस्य संख्या 272 हो जाती है. वैसे दिखता यही है कि एमसीडी में बहुमत आप के साथ है.
लेकिन डर यही है कि मजबूत संगठन और कार्यकर्ता केडर के बगैर चल रही आप की कोई खास विचारधारा भी नहीं है. नतीजन उसे डर है कि कहीं आपरेशन लोट्स चलाने में उस्ताद भाजपा कहीं गुप्त मतदान का लाभ उसके कुछ पार्षदों के वोट डलवाकर अपना मेयर नहीं चुनवा लें. क्यों कि दिल्ली नगरनिगम में दलबदल कानून लागू नहीं होता है.
इसीलिये हंगाम मचा हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने मेयर का चुनाव करवाने के लिये महापौर पद की दावेदार शैली ओबेराॅय ने याचिका दायर की थी. क्योंकि बार बार बैठकें बुलाने के बाद भी हंगामे के चलते मेयर का चुनाव नहीं हो पा रहा था.
कानून के जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ण राज्य वाली विधानसभाओं के लिये लागू होने वाले संविधान के अनुच्छेद 234 के तहत फैसला लिया है जिसमें मनोनीत विधायकों व सांसदों को मतदान का अधिकार नहीं होता है. जबकि दिल्ली विधानसभा का गठन संविधान केे अनुच्छेद 239 एए के तहत हुआ है. यहां दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है पूर्ण राज्य नहीं. हालांकि शैली ओबेराय की ही पहले लगाई गई एक याचिका के बाद अदालतों ने निर्देश दिया था कि मनोनीत पार्षदों को भी मतदान का हक है. वे महापौर को छोड़कर जोनल कमेटियों में मतदान करते थे. चूकिं पहले एल्डरमैन का मनोनयर काफी समय बाद खूब खींचतान के बाद होता था. इसलिये पहली बैठक तो दूर की बात है आगे की कई बैठकों में भी एल्डरमैन नहीं होते थे.
लेकिन इस बार उपराज्यपाल ने चुनाव परिणाम आने के बाद ही एल्डरमैन नियुक्त कर दिये इसलिये पहली बैठक में ही एल्डरमैन पहुंच गये और पहले शपथ कौन ले इस पर से ही विवाद शुरू हो गया जिसके चलते पहली बैठक में शपथ नहीं हो पाई और एल्डरमैन पहले शपथ लें या निर्वाचित पार्षद इस पर हंगामा हो गया. पीठासीन अधिकारी ने पहले एल्डरमैन की शपथ की व्यवस्था द दी तो ऐसा हंगामा मचा की कोई काम नहीं हो पाया. दूसरी बैठक में शपथ हो पाई. व्यवस्था के मुताबिम पहले एल्डरमैन ने ही शपथ ली. उसके बाद मेयर के चुनाव सहित बाकी कोई काम नहीं हो पाये. क्योंकि हंगाम मचगया था. तीसरी बैठक भी बिना कामकाज के हंगामें के कारण खत्म हो गई उसी के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था.
- ओमप्रकाश गौड़, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल मोबाइल - 9926453700