अब पूर्व न्यायाधीश नजीर को लेकर क्यों मचा है बवाल 14 फरवरी 2023

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2023-02-14 00:55:29


अब पूर्व न्यायाधीश नजीर को लेकर क्यों मचा है बवाल 14 फरवरी  2023

अब पूर्व न्यायाधीश नजीर को लेकर क्यों मचा है बवाल 14 फरवरी  2023
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर को आन्ध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाने को लेकर बवाल मचाया जा रहा है. इससे पहले सुप्रीम  कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश श्री रंजन गोगई को राज्यसभा में मनोनीत करने पर  भी इसी प्रकार का हंगामा खड़ा किया गया था. दोनों बार कहा जा रहा है कि ये दोनों  सुप्रीम कोर्ट के राममंदिर मामलों से जुड़े रहे हैं. इन्होंने  राममंदिर के पक्ष में फैसलों में फैसले के पक्ष में निर्णय दिये थे इसका इन्हें  राज्यपाल का पद  देकर  पुरस्कार दिया जा रहा है. हालांकि अयोघ्या में राममंदिर का फैसला सुनाने वाली पांच सदस्यीय खंडपीठ में वर्तमान प्रधान  न्यायाधीश व्हाई. व्ही. चन्द्रचूड़ के अलावा तीन अन्य न्यायाधीश भी थे. राममंििदर का फैसला सर्वसम्मत  था. श्री नजीर ने तो सेवानिवृत्ति के अपने संबोधन में कहा भी था कि मैं अलग फैसला सुनाकर  अपने समुदाय का सबसे बड़ा हीरो बन सकता था पर मैंने ऐसा न  कर न्याय का पक्ष लिया. उनके रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट बैंच मेें कोई मुस्लिम न्यायाधीश नहीं बचा है.
श्री  नजीर संविधान में दी गई राज्यपाल पद की सारी योग्यताएं पूरी  करते हैं. संविधान के  अनुच्छेद  157  में योग्यता की चर्चा  है  तो 158 में  कुछ  शर्ते   पूरी  करने को कहा  गया है इन  दोनों  कसौटियों पर  श्री  नजीर खरे उतरते हैं.  अनुच्छेद कहता  है कि राज्यपाल  पद के  लिये  के लियें सुझाये  गये व्यक्ति को भारत  का नागरिक होना   चाहिये और उसकी  उम्र 35 साल से ज्यादा  होना चाहिये. इसी  प्रकार यह  शर्त भी रखी गई है  कि सुझाया गया  व्यक्ति  किसी  भी लाभ के  पद पर नहीं हो, राज्यों  में विधानमंडलों के  और  संसद के  किसी भी सदन का सदस्य  न हो.  ये दोनों  शर्ते भी श्री  नजीर  पूरी करते  हैं. इसके बाद   भी हंगामा?   
सवाल  तो  यही है ना  कि हंगामा क्यों? इससे पहले भी तो सुप्रीम  कोर्ट  के  पूर्व न्यायाधीश   राज्यपाल बनाए  गये  हैं. 1997 में फातिमा  बी को तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया  गया था और 2014 में  पी. सदाशिव को केरल  का  राज्यपाल बनाया था.
मजेदार बात यह  है   कि  जब बात  सुप्रीम  कोर्ट की आती है तो मोदी विरोधी  तेजी  से हरकतें  करने लगते हैं.  तमिलनाडु  की एडवोकट एल. सी. विक्टोरिया को  काॅलेजियम ने तमिलनाडु में  मद्रास हाईकोर्ट में न्यायाधीश बनाने के लिये  चुना  तो हंगामा होने लगा  क्योंकि  उन्होंने एडवोकेट होते हुए  तमिलनाडु  में भाजपा महिला मोर्चे  के संयोंजक का  पद  संभाला था और  कई  कथित आपत्तिजनक  बयान दिये थे जिन्हें विरोध  का आधार  बनाकर  एक अधिवक्ता  ने मद्रास  हाईकोर्ट  में याचिका   दायर  की थी. उसमें विक्टोरिया  की नियुक्ति को रद्द करने की मांग  की गई थी जबकि  उनकी नियुक्ति की अधिसूचना तक  जारी हो चुकी  थी. उधर  चैन्नई  में राजभवन  में विक्टोरिया के शपथग्रहण  की तैयारी चल रही थी वहीं सुप्रीम कोर्ट में इस नियुक्ति को निरस्त करने  की अपील पर  सुुनवाई  चल रही  थी.  तीन  सदस्यीय खंडपीठ  ने अपने फैसले में कहा कि काॅलेजियम ने विक्टोरिया की योग्यता  की   योग्यता  पर विचार  कर  सिफारिश   की है और  केन्द्र सरकार  की सहमति के बाद  राष्ट्रपति इस  बारे में   अधिसूचना   जारी कर  चुके हैं. उन्होंने  कहा कि अपील में नियुक्ति की  उपयुक्तता  पर सवाल उठाया  गया है जो काॅलेजियम की  के  चयन का आधार ही नहीं था. आधार योग्यता था  और उस पर   विक्टोरिया खरी उतरती है. किसी की राजनीतिक  विचारधारा सुप्रीम  कोर्ट में न्यायाधीश बनने में रूकावट  नहीं बनती  है.  
मजेदार  बात तो  यह है  कि  सुप्रीम कोर्ट में  नियुक्ति का  एक ऐसा मामला भी चर्चा में आता है जिसे स्वयं   सुप्रीम कोर्ट  की खंड पीठ ने  रद्द  करते समय  शर्मनाक तक  बता  दिया  था.
2017 में एन. सी.  श्रीवास्तव को  हाईकोर्ट  का  न्यायाधीश  बनाने का प्रस्ताव था. इस  पर   काॅलेजियम और केन्द्र सरकार  की सहमति के  बाद   राष्ट्रपति ने अधिसूचना तक जारी कर दी.  तभी एक  वकील ने हाईकोर्ट  में याचिका दायर  कर दी कि श्रीवास्तव तो इसके  लिये आवश्यक योग्यता ही पूरी  नहीं करते. चयनित व्यक्ति का हाईकोर्ट या सुप्रीम   कोर्ट में वकालत करने  का अनुभव  का  रिकाॅर्ड  होना  चाहिये. पर श्रीवास्ताव  ने लाॅ की डिग्री तो  ली पर वकालत नहीं  की. वे तो मिजोरम में विधि  सचिव  रहे  हैं.
तीन  सदस्यीय  खंडपीठ  ने तुरंत  सुनवाई  कर शपथ  पर  रोक लगाते  हुए केन्द्र सरकार  को  उचित कार्यवाही करने को  कहा. केन्द्र  ने अधिसूचना  रद्द करने की  सिफारिश  राष्ट्रपति से  की और  मामला इस  प्रकार से निपटाया गया.  

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