जल्दी ही नजर आएंगे कॉलेजियम में सुधार
जजों की नियुक्ति जज करें यह विचार किसी को पसंद नहीं आया. जजों की नियुक्ति सरकार करे यह विचार एक कमिटेड ज्यूडियशरी को जन्म दे सकता है जो एकदम गलत है. मोदी सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में आयोग का जो कानून बनाया उसे सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक बता कर ठुकरा चुका है.
तो फिर रास्ता क्या है. यह नया रास्ता तलाशने के पहले हमे यह स्वीकार करना होगा कि अभी तक न्यायाधीशों की नियुक्ति के जितने भी तरीके अपनाए गये हैं उन सभी ने काफी संख्या में अच्छे जज दिये हैं और कुछ खराब जज भी उन्हीं से निकले हैं. पर आज कोई समाधान नहीं निकलता दिखता हो पर इस बात पर काफी सारे लोग सहमत नजर आते हैं कि इन सबमें कॉलेजियम की पद्धति ही सबसे अच्छी है.
कॉलेजियम की पद्धति को अच्छी मानने और इससे अच्छे जज मिलने की बात स्वीकार करने के बाद यह भी स्वीकार करना होगा कि इससे कुछ कमियां हैं जिसके कारण इसे बदलने की बातों को दम मिलता है.
यह सही है कि पूरी दुनिया में कहीं भी जज ही जजों की नियुक्ति करें ऐसी पद्धति प्रचलन में नहीं हैं. सबकी अपनी अपनी पद्धति है तो हम भी कॉलेजियम में सुधार कर अच्छी पद्धति बना सकते हैं.
कॉलेजियम पद्धति की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि कॉलेजियम जिन नामों का चयन विचार करने के लिये चुनता है उसमें पारर्शिता का अभाव है. उसके ऐसे कायदे कानून नहीं है जिन पर चयनित लोगों को सिविल सोसायटी और ज्यूडिशरी के लोग ही उनकी योग्यता को परख सके. इसलिये चयन को सुधारने के लिये पारदर्शिता अपनाई जाने की जरूरत है. साथ ही अभी तक नाम चयन के लिये बार बार नियमों में सुधार लाया जाता रहा है इसे भी बंद करने या कम करने की जरूरत है.
दूसरी बात कॉलेजियम को और बड़ा बनाने की जरूरत है. चयन आयोग में जो सदस्यता की व्यवस्था थी उसमें कानून मंत्री दो ज्यूरिस्टों को स्थान दिया गया था. वहीं सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के साथ जो दो वरिष्ठ न्यायाधीशों को भी सदस्य बनाने की बात थी.
अब यह बेहतर लगता है कि नामों के चयन में पारदर्शिता लाकर तय नियमों के तहत ज्यादा नाम बुलाए जाएं. उन्हें पब्लिक डोमेन में लाया जाए. इन नामों को क्यों चुना गया है यह बात भी पब्लिक डोमेन में रहे. इस सूची में से ज्यादा सदस्यों वाला कॉलेजियम जिसमें न्यायाधीशों के अलावा सरकार, संसद, और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि हो विचार करे और नामों का चयन करे. उन नामों और चयन के आधार को पब्लिक डामेन में लाए. उसमें हुए विमर्श को ध्यान में रखकर नामों की सूची को संसद के दोनों सदनों में रखा जाए और एक एक नाम पर गुप्त मतदान करया जाए.
उस सूची को राष्ट्रपति को भेजा जाए. उनमें से जिन नामों पर राष्ट्रपति स्वीकृति दे दे उन्हें नियुक्त कर दिया जाए. इसी पद्धति से राज्यों के हाईकोर्ट जजों का चयन हो जहां राज्यपाल की सलाह भी शामिल करने के बाद पहले राज्य की विधान सभी और फिर लोकसभा और राज्य सभा में मतदान करवा कर राष्ट्रपति को सूची भेजी जाए.
यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुरूप तो होगी जिसमें ज्यूडिशरी, एक्जिक्यूटिव, संसद के दोनों सदनों, विधानसभा और आम जनता के विवेक का इस्तेमाल भी होगा.