बोस को बंगाल का राज्यपाल बनाकर मोदी ने चली लंबी चाल
सीवी आनंदरॉय बोस पश्चिम बंगाल के नये राज्यपाल बन गये हैं. केरल केडर के आईएएस अधिकारी रहे बोस का नाम कहीं चर्चा में नहीं था. चौकाने वाले फैसलों के लिये पहचान बना चुके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस चयन की व्याख्या में दिल्ली से लेकर बंगाल तक के नेता और राजनीति के पंडित जुटे हुए हैं पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं.
बोस ने उपराष्ट्रपति बन चुके जगदीप धनगड़ की जगह ली है जिन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाक में दम कर रखी थी. ममता का आरोप था कि धनगड़ ने राजभवन को भाजपा की राजनीति का केन्द्र बना दिया था. इस आरोप को सही ठहनाने वालों की संख्यां अच्छी खासी थी. पर राजनीति से दूर दूर का नामा नहीं रखने वाले बोस से मोदीजी की क्या अपेक्षा है इस बारे में भी कयास लगाए जा रहे हैं.
केन्द्र और भाजपा के सारे प्रयासों के बाद भी ममता बनर्जी ऐतिहासिक बहुमत से सत्ता में बैठी है. उन्होंने अपनी हिंसाभरी राजनीति की राह इसके बाद भी नहीं छोड़ी है. इसके चलते भाजपा की टिकट पर जीते एमएलए के ममता की शरण में जाने का तूफान भल ही थम गया हो पर यह दल बदल रूकने जा रही है इसका दावा कोई नहीं कर रहा है. बल्कि वह भय का माहौल आज भी बंगाल की हवा में समाया हुआ है.
राज्य में विधानसभा चुनाव दूर हैं पर 2024 के लोकसभा चुनाव की गूंज तो बंगाल में सबसे ज्यादा है क्योंकि ममता को मोदी के खिलाफ सबसे ताकतवर नेता माना जा रहा है. जबकि ईडी और सीबीआई का फंदा ममता के आस पास कसता जा रहा है जिससे ममता कम परेशान नहीं है.
इसके आलोक में यह कयास ज्यादा मजबूत लगता है कि मोदीजी समझ गये हैं कि बंगाल और कोलकाता के विकास के बगैर उनकी विकास की रेल को इस क्षेत्र में दौड़ाना कठिन है. इससे पूर्वोत्तर के विकास के लक्ष्य को पाने की राह भी जरा कठिन बनी हुई है.
इसलिये कहा यही जा रहा है कि मोदीजी अब बंगाल में ज्यादा प्रशासन पर ध्यान देने की रीति नीति अपना रहे हैं. इससे विकास को गति मिलेगी वहीं बंगाल के प्रशासन में जो राजनीति समा गई है उस पर भी लगाम लगाई जा सकेगी. इसके लिये बोस एक सही चयन है. बोस मोदीजी की कई लोकप्रिय योजनाओं के शिल्पकार रहे हैं वहीं नियम कायदों के पालन में निष्पक्षता के साथ सख्ती के लिये अलग ही पहचान रखते हैं.
ममता बनर्जी की राजनीति को समझें तो भ्रष्टाचार का टॉनिक तो सरकार में रहने के कारण मिलता ही है, प्रशासन में राजनीतिक पक्षपात से ममता केा अपने वोटरों को चुन चुन कर लाभ पहुंचाने में मदद मिलती है. वहीं पुलिस प्रशासन में राजनीतिक पक्षपात के ममता के क्लब कल्चर के माध्यम से जो गंुडागर्दी चलती है और गरीबों के वोटबैंक को लाभ पहुंचाने के साथ साथ डरा धमका कर साथ बांधे रखने में मदद मिलती है. क्योंकि तणमूल के नेताओं और कार्यकर्ताओं केे संरक्षण में चलने वाले क्लबों की सहमति के बगैर वहॉ सड़क पर बैठ कर सब्जी भाजी तक नहीं बेची जा सकती है न ठेलों पर फैरी लगा सकते हैं. न छोटे मोटे ठेके चल सकते हैं.
इसी प्रकार बड़े व्यवसाय और ठेके भी तृणमूल के नेताओं को कटमनी के बगैर चलाना संभव नहीं है. यानि छोटे बड़े सभी कामों में राजनीतिक पक्षपात हावी है और वह प्रशासनिक और पुलिस पक्षपात के बगैर संभव नहीं है.
यहीं बोस की भूमिका काम आएगी. वे निष्पक्षता और कठोरता से प्रशासन पर निगरानी रखेंगे. इससे विकास की रहा आसान होगी वहीं पुलिस और प्रशासन में निष्पक्षता और पादर्शिता आएगी. राजनीति में निष्पक्षता आएगी तो भाजपा को मदद मिलेगी. मतदाता दबाव से मुक्त होंगे तो भाजपा को स्वतः ताकत मिलेगी. कहा जाता है कि ममता बनर्जी के मोदी से समीकरण सुधर रहे हैं. ऐसा होता है तो बंगाल का विकास होगा. बस ममता को यही मलाल रहना तय है कि अगर उनके राजनीतिक साथियों या परिजनों ने कुछ गलत किया होगा तो मोदी और उनकी सरकार तथा भाजपा कानून से हटकर बचाव में कुछ भी मदद नहीं कर पाएंगे. सही होंगे तो सभी स्वतः आरोपों से बरी हो जाएंगे.