किस चालाकी से जेल से छुड़ा लिये राजीव गांधी के हत्यारे 14 nov
भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारोेेेेेेेेेेेेेेेेेे को कानूनी गलियों का सहारा लेकर जिस चालाकी से जेल से बाहर निकाला गया यह जानना जरूरी है. संदर्भ के तौर पर यह जान लें कि दक्षिण की सभी राजनीतिक पार्टियां श्रीलंका में बगावत कर रहे तमिलों के साथ थी और उनका संरक्षण कर रही थी. यहां तक कि राजीव गांधी से पहले की केन्द्र सरकार भी इसी पक्ष की थी. कहा जाता है कि उसी का नतीजा था कि लिट्टे के लड़ाके आतंकवादियों के लिये दक्षिण भारत के जंगलों में भारतीय खुफिया एजेंसियों के सहयोग से गुपचुप तरीकों से ट्रेनिंग केम्प तक चलाए गये. जबकि औपचारिक तौर पर श्रीलंका के साथ भारत के मित्रता पूर्ण संबंध थे. राजीव गांधी ने इस दोहरेपन को दूर किया और श्रीलंका में शांति स्थापना के लिये भारतीय सेना की टुकड़ियां तक शांतिसेना के नाम पर भेजी जो बाद में भारी नुकसान उठाने के बाद वापस बुलाई गई. इससे श्रीलंका में संघर्षरत तमिल टाइगर नाम का संगठन नाराज हो गया. बदले की कार्रवाही मे उसने राजीव गांधी की हत्या का षडयंत्र रचा जिसमें वह उनके सत्ता से हटने के बाद सफल हो गया.
राजीव हत्या के बाद जांच एजेंसियों ने नलिनी और अन्य को पकड़ा था और उनमें से नलिनी सहित कई को फांसी की सजा सुनाई थी. उसके बाद तमिलनाडु सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव तक पारित कर गर्भवती नलिनी को कई तर्क देकर हाईकोर्ट से पहले फांसी की सजा से मुक्त कर उसे आजन्म कारावास की सजा में बदलवा दिया. फिर समानता के अधिकार का उपयोग कर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगवा कर उन सभी की सजा को फांसी की सजा को आजन्म कारावास में बदलवा लिया. फिर एक सजायाप्ता को रिहा करवाने का प्रस्ताव राज्य सरकार ने केबिनेट में पारित करवा कर उसकी सिफारिश राज्यपाल को भेज दी. राज्यपाल ने कोई जवाब इस पर नहीं दिया तो कुछ साल इंतजार किया और एक याचिका रिहाई के लिये सुप्रीम कोर्ट में दायर करवा दी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकर के तहत संबंधित व्यक्ति की रिहाई का आदेश दे दिया. फिर उसी समानता के अधिकार का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट में नलिनी सहित सभी की रिहाई की याचिका लगाई गई. सुप्रीम कोर्ट में फिर सफलता मिली और इन सबको जेल से रिहाई मिल गई. अब ये सारे लोगों को श्रीलंका भिजवाने की कार्यवाही चल रही है. देर अबेर लिट्टे के ये आत्मघाती लड़ाके श्रीलंका पहुंच जाएंगे ऐसा मानने में संदेह की ज्यादा गुंजाईश नहीं है.
हिंदुस्तान का कानून इस बात की इजाजत नहीं देता कि अगर मृतक का परिवार हत्यारे को माफ कर दे तो उसे सजा मुक्त किया जा सकता है. इसलिये श्रीमती सोनिया गांधी व परिवार के दूसरे सदस्यों ने हत्यारों को माफ भी कर दिया हो तो उसका कानूनीतौर पर कोई महत्व नहीं है.
विचारणीय यही है कि हमने गांधीजी के हत्यारे को फांसी दी. इंदिराजी के हत्यारों को फांसी दी लेकिन राजीव जी के हत्यारे को जेल से रिहा कर रहे हैं जबकि उन्हें तो कुछ को फांसी तो बाकी को मृत्युपर्यन्त जेल में रखा जाना चाहिये था.
इस प्रकार की संवैधानिक बाध्यताएं यह सोचने को विवश करती है कि देश के शीर्ष नेताओं और देश के खिलाफ काम करने वालों को संविधान के प्रावधानों और कानूनों की खामियों की आड़ लेकर किस सीमा तक अप्रत्यक्ष तरीके से मदद पहुंचाई जा सकती है. कम से भारत सरीखे लोकतांत्रिक देशों को संविधान और कानून की आड़ में छिपे देशद्रोहियों से सतर्क रहने की जरूरत है.