मध्य प्रदेश भाजपा में गिरावट का जो दौर दस साल पहले महसूस होना शुरू हुआ था अब उसकी कर्कशता बहरों को सुनाई और नेत्रहीनों को भी दिखाई देने लगी है. कभी गुटबाजी जात - पांत, क्षेत्रवाद, व्यक्तिपूजा के जो महारोग कांग्रेस में थे अब उन्होंने भाजपा को शिखर तक जकड़ लिया है. इससे भाजपा का सामान्य सा कार्यकर्ता तक चिंतित है और नगरीय चुनावों में करारी हार को वह प्रमाण के तौर पर देख रहा है. उच्च स्तर पर गुटबाजी के कारण हर महीने संगठन व सरकार में बदलाव की हवाएं पंख लगाए उड़ रही हैं. खास बात ये है कि अस्थिरता फैलाने वाली खबरों को रोकने के लिए भोपाल से दिल्ली तक कोई आगे नही आ रहा है. बल्कि नेताओं की गतिविधियां, मेलजोल, बॉडी लेंग्वेज तो अफवाहों को हवा देती दिख रही हैं. कोई देखने वाला, न सुनने वाला और न रोकने वाला. सब मजे लेते दिख रहे हैं. पहले यह सब कांग्रेस में होते देखा है. नतीजा यह हुआ कि 2003 से 15 साल 2018 तक जनता और कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस को मजे लेने लायक भी नही छोड़ा था.
भाजपा अपने संगठन की समरसता और अनुशासन की शक्ति को विस्मृत कर जात पांत के जंजाल में गले तक उलझती जा रही है. केंद्रीय नेतृत्व आदिवासी और ओबीसी को साधने के लिए गम्भीर है. तो दूसरी तरफ प्रदेश में भाजपा प्रीतम लोधी निष्कासन विवाद के बाद ब्राह्मण विरुद्ध ओबीसी के जाल में फंसती दिख रही है. सम्हाला नही गया तो इसके दूरगामी नतीजे आएंगे. कांग्रेस और उनके नेता दिग्विजयसिंह पहले भी ठाकरे - पटवा , कैलाश जोशी काल में बीजेपी को ब्राह्मण - जैन पार्टी कह चुके हैं. इस टिप्पणी को गलत साबित करने में टीम कुशाभाऊ ठाकरे को बहुत सतर्क होकर निर्णय करने पड़े थे.
सिंधिया के उपकार तले भाजपा...
ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराज की बगावत की बदौलत सत्ता में आई भाजपा उनके उपकार तले दबी हुई है. इसलिए उनके समर्थकों के प्रति उदारता ज्यादा है. वे सब संगठन के प्रति कम सिंधिया के हवाले ज्यादा हैं. कृतज्ञ भाजपा अपने केडर व संस्कार को ही भूलती सी लगती है. नगर निगम चुनाव में भाजपा की ग्वालियर पराजय ने साबित कर दिया है कि कार्यकर्ता इससे खुश नहीं है. भाजपा संगठन के पत्रों में भी सिंधिया गुट जैसे शब्दों का इस्तेमाल होने लगा है. ऐसा तो कांग्रेस में भी नहीं होता है. सिंधिया समर्थक मंत्री और नेता संगठन और सरकार के बजाय सिंधिया कोई महत्व देते हैं हालत यह है कि किसी मंत्री को कोई शिकायत है तो वह इस संबंध में मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष को पत्र लिखने के बजाय सिंधिया महाराज को शिकायत करते हैं. सिंधिया समर्थक मंत्रियों की कार्यशैली और मुख्य सचिव को लेकर उनके बयान भाजपा और सरकार दोनों पर सवाल खड़े कर रहे हैं. विंध्य महाकौशल के साथ बुंदेलखंड में भी भाजपा कमजोर हो रही है. जाति और वर्ग के साथ से वोटों की गणना करने के बजाए विंध्य क्षेत्र के रहे गांव में 31 साल बाद कांग्रेस ने भाजपा को हरा दिया है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां 30 सीटों में से 24 पर जीत हासिल की थी. लेकिन संगठन और सरकार में इस क्षेत्र की उपेक्षा से अब हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.
पार्टी और सत्ता में समन्वय, सन्तुलन और संवाद के अभाव की लंबी कहानी ने 2018 पार्टी को सत्ता से बाहर किया. फिर बहुमत जुटा कर बनी कमलनाथ सरकार सम्वाद हीनता और मंत्रियों से लेकर कार्यकार्ताओं की उपेक्षा व अनदेखी ने कांग्रेस को सड़क पर ला दिया है. कमजोर मानी जाने वाली कांग्रेस अब बहुत गंभीरता से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की अगुवाई में आगे बढ़ रही है. जो कुछ हो रहा है उसमें कांग्रेस को बहुत मेहनत करने की जरूरत नहीं है क्योंकि भाजपा में ही जो काम हो रहे हैं उससे कांग्रेस के आगे निकलने के आसार बढ़ गए हैं नगर निगम चुनाव में 16 में से 07 सीटों पर भाजपा की हार साफ संकेत करती है कि भविष्य चिंताजनक है.
साभार - नया इंडिया/भोपाल
000000000000