देश की सरकार और राज्य सरकारों को कभी इतिहास के पन्ने भी पलट कर देखना चाहिए, भारत विश्व में ज्ञान का केंद्र रहा है. कई विदेशी विद्वानों ने भारत में ज्ञानार्जन किया और भारत की उत्कृष्टता से विश्व को अवगत कराया. दुर्भाग्य आज परिदृश्य बदल गया है और बदलता जा रहा है. भारत में विश्वविद्यालय जैसे शिक्षा के बड़े संसथान तक फर्जी खड़े किये जा रहे हैं.
भारत के नौ राज्यों में संचालित हो रहे 21 विश्वविद्यालयों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने फर्जी करार दिया हैद्य ये संस्थान न तो छात्रों को कोई डिग्री दे सकते हैं और न ही इनके द्वारा दी गयी कोई भी डिग्री मान्य होगी. फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी करते हुए यूजीसी ने अभिभावकों, छात्रों और लोगों को चेतावनी भी दी है कि इन स्वयंभू संस्थानों में प्रवेश लेने से छात्रों का जीवन बर्बाद हो सकता है. अब यहाँ यह सवाल पैदा होता है इस गोरखधंधे के पीछे कौन है ? और सरकार की आँखे मुन्दी क्यों थी ? इस सारे धंधे को राजनीति का प्रश्रय प्राप्त है द्य देश की राजनीति में मौजूद कुछ बड़े नामों की शिक्षा पर भी पहले सवाल उठे हैं. ऐसे ही लोगों के गठबंधन ऐसे संस्थान खड़े करते हैं.
वैसे हमारे देश भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कानून, 1956 के प्रावधानों के तहत की जाती है. इसमें स्पष्ट उल्लिखित है कि केंद्रीय और प्रांतीय कानूनों के तहत स्थापित बने विश्वविद्यालय और इन कानूनों के तहत विश्वविद्यालय समकक्ष की मान्यता प्राप्त निजी संस्थान ही डिग्रियां प्रदान कर सकते हैं. ऐसे संस्थानों को समय समय पर यूजीसी और सरकार द्वारा जारी निर्देशों एवं नियमों का पालन करना होता है तथा उनका नियमित परीक्षण भी किया जाता है.
भारत में इसके उलट फर्जी विश्वविद्यालय भ्रामक नाम और दावों के सहारे छात्रों को धोखे में रखकर शिक्षा का कारोबार होता रहा हैं. पहले भी यूजीसी की ओर से इस तरह की संस्थाओं की सूची जारी होती रही है. जानकारों का कहना है कि इन फर्जी संस्थानों की संख्या 21 से कहीं अधिक हो सकती है. रोजगार के लिए डिग्री की जरूरत तथा कई कारणों से आधिकारिक संस्थाओं में दाखिला न मिलने के चलते छात्र और अभिभावक भी डिग्री खरीदने का विकल्प चुनते हैं.
देश के अखबारों और मीडिया में ऐसे विज्ञापन खुले आम छपते हैं, जिनमें आसानी से घर बैठे डिग्री दिलाने की बात कही जाती है. यह विडंबना ही है कि ये कारोबार शासन-प्रशासन के सामने खुलेआम चलता रहता है. यूजीसी की सूचियां आती रहती हैं और फर्जी संस्थान भी चलते रहते हैं. प्रशासनिक लापरवाही की स्थिति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि आठ फर्जी विश्वविद्यालय देश की राजधानी दिल्ली में ही चल रहे थे.
आज जरूरत इन फर्जी संस्थाओं के बारे में जागरूकता फैलाने की है. साथ ही, इन्हें बंद कर ठगी, भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी जैसे अपराधों के लिए इनके संचालकों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए. ऐसी कार्रवाई ही इस तरह के शिक्षा माफिया को रोक सकेगी. इसके साथ ही सरकार को इस बात पर ध्यान देना होगा कि हमारे देश में जितनी सालाना मांग होती है, उस अनुपात में कॉलेजों में सीटें क्यों नहीं हैं? कई संस्थानों में शुल्क भी बहुत अधिक है.. इन समस्याओं का कुछ समाधान ही पत्राचार एवं ओपेन स्कूल और विश्वविद्यालयों के माध्यम से होता है. ऐसे में डिग्री चाहने वाले या आधिकारिक संस्थानों की परीक्षा में असफल छात्रों की स्थिति का लाभ फर्जी संस्थान उठाते हैं. समाज में जागरूकता और कानून के कठोर होने की जरूरत है .