बड़ा शोर था पेगासस का. मोदी और भाजपा विरोधियों को इस से भारी उम्मीदें थी. उन्हें लगता था कि इसके साबित होते ही मोदी की कुर्सी गई. सरकार किसी की भी बने पर वापस आ जाएगा भ्रष्टाचार और मनमानी का कांग्रेसी संस्करण.
अंतर्राट्रीय स्तर पर पूरा षडयंत्र रच कर खेला गया. निशाने पर भारत था इसलिये संसद के मानसून सत्र के पहले घमाका किया गया. मोदी और भाजपा विरोध के लिये पहचान बनाए गये इंटरनेट आधारित न्यूज पोर्टल को माध्यम बनाया गया. मोदी विरोध की पहचान रखने वाले आला पत्रकार ध्वज वाहक बने. विपक्ष ने पूरा मानसून सत्र धो दिया. लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई. वह उतना ही कहने सुनने को तैयार थी जितना उसकी नजर में जरूरी था.
मामले को सुप्रीम कोर्ट में पहुंचाया. विपक्ष और मीडिया के हमलों से बेहाल सुप्रीम कोर्ट भी अपनी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता के लिये परेशान था. उसे भी यह सुनहरा मौका लगा कि जरा ज्यादा सख्त रूख अपनाएगा तो सही संदेश जाएगा. सरकार वहां भी टस से मस नहीं हुई. उसने कहा कि नागरिकों, पत्रकारों, मीडिया, नेताओं, सांसदों या जजों के खिलाफ ऐसे किसी साफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं किया है जो उनकी जासूसी करे. उसने प्रस्ताव रखा कि वह विशेषज्ञों की कमेटी बनाने के लिये तैयार है वह जांच कर ले और उसकी नजर में जो सही हो वह जनता को बता दे. पर सुरक्षा एजेंसियां देश की सुरक्षा के लिये कौन से जासूसी साफ्टवेयर इस्तेमाल करती है वह किसी भी कीमत पर किसी को नहीं बताएंगी कोर्ट को भी नहीं. न इस बारे में पेगासस को लेकर कोई टिप्पणी करेगी.
अदालत को भी लगा कि बात तो बनानी है इसलिये उसने खुद एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई और उसकी निगरानी के लिये सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज रविन्द्रन को मनोनीत किया. कमेटी ने जांच में सहयोग के लिये अपील की. पर जो ज्यादा जोर जोर से शोर कर रहे थे उनमें से कोई भी जांच में सहयोग के लिये आगे नहीं आया. जैसे तैसे कुछ को राजी किया गया. कमेटी ने जांच की और जज रविन्द्रन ने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी. अपेक्षा तो यह थी कि अदालत रिपोर्ट को सार्वजनिक करेगी पर ऐसा नहीं किया गया और अदालत ने खुद पढ़ा और दुबारा सीलबंद कर रिापोर्ट को सुरक्षित रखने के लिये अदालत के रजिस्ट्रार जरनल को सौप दिया. साथ ही आगे की तारीख लगा दी. यानि अदालत की वही कैंसर जैसी बीमारी तारीख पर तारीख. हां अपनी लाज बचाने के लिये रिपोर्ट के हवाले से यह जरूर कह दिया कि पेगासस का कोई प्रमाण नहीं मिला है. हां कुछ फोन में संदिग्ध मेलवेयर मिले हैं. जज साहिबान यह कहने भी नहीं चूके कि रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने सहयोग नहीं किया. इस प्रकार अपना कॉलर उंचा रखा और आचल को बेदाग बनाये रखने की एक और चेष्टा की.
जांच का काम नई पीठ जारी रखेगी. चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी. पर अभी तक तो मिला है उसको लेकर यही कहा जा सकता है कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया.
अब एक सामान्य व्यक्ति भी जानता है कि मेलवेयर भी एक साफ्टवेयर ही होता है. वे सभी फोन या कम्प्यूटर में सारे सुरक्षा के इंतजामों के बाद भी घुसपैठ कर आ जाते हैं. वे फोन और कम्प्यूटर की जानकारियां उन अज्ञात लोगों को भेजते रहते हैं जिन्होंने इसे बनाया होता है. दुनिया में ऐसा कोई फोन या कम्प्यूटर नहीं होता जिसमें मेलवेयर न होते हों. बेहद खास सुरक्षा वाले सुरक्षा से जुड़े और उच्चस्तरीय सरकारी व निजी कामों से जुड़े कम्प्यूटरों को इनसे मुक्त रखने के लिये पैसा पानी की तरह बहाने के बाद भी उनका हमला जारी रहता है. अमेरिका और रूस की सरकारें और सुरक्षा तथा खुफिया एजेंसियां तक इनके निशाने पर रहती हैं. कई बार सीमित ही सही पर इन्हें रोकने के प्रयास निष्फल हो जाते हैं.
इसी आधार पर कहा गया है कि मोदी और भाजपा विरोधियों के हाथ फिलहाल तो निराशा ही हाथ लगी है. आगे क्या होगा यह कौन बता सकता है.