गुलाम नबी आजाद एक सुयोग्य कुशल विद्वान और सज्जन राजनेता रहे हैं. वे जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी कुछ समय रहे थे. पर उन्हें न जम्मू कश्मीर ने अपना नेता माना न उस समाज में जिसकी नुमायंदगी करने का दावा कांग्रेस उनको लेकर करती रही. इस पर चिंता ही जताई जा सकती है कि उस समाज की खासकर राजनीति कट्टरपंथियों के कब्जे में ही रहती है. उन्हीं को उस समाज का अधिकांश तबका अपना नेता मानता है. इसलिये इस नजरिये से गुलाम नबी आजाद अकेले अपवाद नहीं हैं उस लाइन में और भी कई योग्य प्रभावशाली नेता हैं.
यही कारण रहा कि सारी योग्यताओं के बाद भी गुलाम नबी आजाद के साथ जनाधार विहीन नेता का चस्पा करने की कोशिशें कभी भी प्रभावशाली तरीके से नकारी नहीं जा सकी. लेकिन समय के साथ कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ा तो उनके लिये जगह कम से कमतर होती गई. इसे आजाद पचा नहीं पा रहे थे. इस व्याधि के भी कांग्रेस में वह अकेले शिकार नहीं हैं. जैसे गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और भी कई नेता ऐसा कर चुके हैं.
विश्लेषकों की जमात अपने अपने नजरिये से गुलाम नबी आजाद पर टिप्पणी कर सक सकते हैं. उसी तरह मैं यह मानता हूं की भारतीय राजनीति योग्य और ईमानदार तथा निष्पक्ष लोगों की इज्जत करने के मामले में बेहद निराश करती है. आजाद उसी का शिकार बने हैं.
मुझे पूरा यकीन है कि आजाद भाजपा में नहीं जाएंगे. न नई पार्टी बनाएंगे. क्योंकि आज के विवादास्पद राजनीतिक समाज में उन्हें जगह बनाने असंभव न सही लेकिन काफी कठिन जरूर रहेगा. उन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में जाना चाहिये. वह भी अगर संभव हो तो अल्पसंख्यक समाज की सेवा में. उनके लिये शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि बेहतर क्षेत्र हो सकते हैं. इस प्रकार से वह समाज के साथ साथ देश की बहुमुल्य सेवा भी कर सकते हैं.