अपने समय के बड़े बड़े पत्रकार आजकल यूट्यूबर हैं. वे मैन स्ट्रीम मीडिया को टक्कर दे रहे हैं. एनडीटीवी की सौदेबाजी को लेकर फिर कुछ नामों की यूट्यूब पर शरण लेने की चर्चा है. वे पत्रकारिता का खुदा होने का दम भी भरते हैं. उसी संदर्भ में यह मेरी निजी राय है. इससे सब सहमत हों यह कतई जरूरी नहीं है. सभी सहमत असहमत लोगों का स्वागत है.
पूंजीवादी पत्रकारिता का कोई धर्म ईमान नहीं होता. फायदा ही उसका भगवान है. उसके लिये वह उन सबका स्वागत करती है जो उन्हें ज्यादा से ज्यादा और उनकी अपेक्षा के अनुरूप फायदा दिलवा सके. रबीशकुमार हों या कोई और अपने को खुदा समझने वाला पत्रकार, धनपशु मालिकों को कोई फर्क नहीं पड़ता. अब यह पत्रकार को तय करना है कि उसे क्या करना है. यहां याद दिला दे जो अपने को मैनस्ट्रीम यूट्यूबर बताते हैं या माने जाते हैं वे दूध के धुले नहेीं है. उन्हें जो पर्दे के पीछे से समर्थन देते हैं वे भी पूंजीपति हैं जिनके लिये वे पर्दे के पीछे रहकर काम करते हैं. यह काम लाइजनिंग से लेकर देशद्रोहियों के समर्थन तक में कुछ भी हो सकता है.