बहुत से पाठक सत्याग्रह, नेशनल हेराल्ड और कांग्रेस को समझाने का आग्रह कर रहे हैं. इन दिनों भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस देश में जहाँ-तहाँ सत्याग्रह कर रहा है. मामला सब जानते हैं, नेशनल हेराल्ड की पूंजी में हेरफेर. पहले नेशनल हेराल्ड. फिर सत्याग्रह का खुलासा.
नेशनल हेराल्ड को शुरू करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू है. नेहरू ने आजादी की लड़ाई को धार देने के लिए लखनऊ में इस अखबार को शुरू किया था. जिसका ध्येय वाक्य “स्वतंत्रता संकट में है, अपनी पूरी ताकत से इसकी रक्षा करें” था.
कोर्ट में भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अर्जी दाखिल कर आरोप लगाया था कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी से लोन देने के नाम पर नेशनल हेराल्ड की दो हजार करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर ली है. कांग्रेस ने पहले नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को 26 फरवरी, 2011 को 90 करोड़ रुपये का ऋण दिया. इसके बाद पांच लाख रुपये से यंग इंडिया कंपनी बनाई, जिसमें सोनिया और राहुल की 38-38 कुल 76 प्रतिशत हिस्सेदारी है. शेष हिस्सेदारी कांग्रेस नेता स्व. मोतीलाल वोरा और स्व. ऑस्कर फर्नांडिस के पास रही. इन दिनों राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी से प्रवर्तन निदेशालय पूछताछ कर रहा है. 10-10 रुपये के नौ करोड़ शेयर एक नई कम्पनी यंग इंडिया को दिए गए और इसके बदले यंग इंडिया को कांग्रेस का ऋण चुकाना था. नौ करोड़ शेयर के साथ यंग इंडिया को एसोसिएट जर्नल लिमिटेड के 99 प्रतिशत शेयर हासिल हो गए. इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने 90 करोड़ का ऋण भी माफ कर दिया. यानी यंग इंडिया को मुफ्त में एजेएल का स्वामित्व मिल गया. अब राहुल गाँधी और श्रीमती सोनिया गाँधी सारा गड़बड़झाला स्व. मोतीलाल वोरा के मत्थे मढ रहे हैं. चूँकि प्रवर्तन निदेशालय पूछताछ कर रहा है और जिनसे कर रहा है, वे कांग्रेस के बड़े नेता है, इस कारण कांग्रेस ‘सत्याग्रह’ का सहारा ले रही है.
सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ है- सत्य के लिये आग्रह करना. दूसरे शब्दों में, “अहिंसा के माध्यम से असत्य पर आधारित बुराई का विरोध करना ही सत्याग्रह है.” सत्याग्रह का संचालन आत्मिक शक्ति के आधार पर किया जाता है. सत्याग्रह के सम्पूर्ण दर्शन का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि, ‘सत्य की ही जीत होती है.’ गांधी जी ने लार्ड इंटर के सामने सत्याग्रह की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार की थी- यह ऐसा आंदोलन है जो पूरी तरह सच्चाई पर कायम है और हिंसा के उपायों के एवज में चलाया जाता है. सत्य तक पहुँचने और उन पर टिके रहने का एकमात्र उपाय अहिंसा ही है. सत्याग्रह में स्वयं कष्ट उठाने की बात है. सत्य का पालन करते हुए मृत्यु के वरण की बात है. सत्य, अहिंसा और उपवास सबसे शक्तिशाली शस्त्र हैं. मृत्युपर्यंत कष्ट सहन और इसलिए मृत्यु पर्यत उपवास भी, सत्याग्रही का अंतिम अस्त्र है. परंतु अगर उपवास दूसरों को मजबूर करने के लिए आत्मपीड़न का रूप ग्रहण करे तो वह त्याज्य है. आचार्य विनोबा जिसे सौम्य, सौम्यतर, सौम्यतम सत्याग्रह कहते हैं, उस भूमिका में उपवास का स्थान अंतिम है.
कांग्रेस अध्यक्ष से तीन बार पूछताछ हो चुकी है. इससे पहले राहुल गांधी को भी कई दिन तक ईडी के सवालों की बौछार झेलनी पड़ी थी. विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार, ने जांच एजेंसियों को एक खास मकसद से उनके पीछे छोड़ रखी है.यह भी आरोप है विरोधी दलों के नेताओं को निशाने पर लेना, यह जांच एजेंसियों का काम है. याद कीजिये पी. चिदंबरम ने ही यूपीए सरकार के कार्यकाल में ईडी को ऐसी शक्तियां दी थीं. अब कांग्रेस पार्टी के नेता ईडी में फंस चुके हैं.
दूसरी तरफ भाजपा ने अपने एक दांव से कांग्रेस पार्टी को अपनी रणनीति बदलने के लिए बाध्य कर दिया. कांग्रेस नेता, राहुल और सोनिया की पेशी को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे थे. भाजपा ने कहा, ये सब एक परिवार को बचाने के लिए हो रहा है. इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रदर्शन में महंगाई, जीएसटी, सदन में बोलने न देना आदि मुद्दों को भी जोड़ लिया. इस सबसे संसद ठप्प है.
राहुल गांधी को जब ईडी दफ्तर में जाना पड़ा, तब भी कांग्रेस के सभी सांसद, मुख्यमंत्री और वरिष्ठ पदाधिकारी दिल्ली की सड़कों पर उतरे थे. कांग्रेस का कहना था कि ईडी, सरकार के कहने पर काम कर रही है. नेताओं को जानबूझकर परेशान किया जा रहा है. सोनिया गांधी से जब ईडी ने पूछताछ शुरू की तो कांग्रेस पार्टी, दोबारा से सड़कों पर प्रदर्शन करने लगी. इधर सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए एक्ट के प्रावधानों को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. इसके साथ ही ईडी के सभी अधिकारों को भी बरकरार रखा है. हकीकत में कांग्रेस का ये विरोध सत्याग्रह नहीं, बल्कि सच्चाई छिपाने की कोशिश है. बेहतर होता कांग्रेस सत्याग्रह करने की जगह सत्य को उजागर करती. इस कथा का एक और पहलु भी है, इस संस्थान के प्रकाशनों में काम कर चुके और काम कर रहे लोगों के वेतन और अन्य देयकों का भुगतान न होना. जिस पर किसी की नजर नहीं है.