चुनावी रैवड़ियां बांट कर वोट बटोरना या एक तरह से खरीदने पर अंकुश लगाना राष्ट्रहित में जरूरी है. क्योंकि इससे देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर को बनाने के के लिये जरूरी संसाधान सौदागरों के हाथों लुटाकर देश के विकास की जड़ों को गहरी चोट पहुंचाई जाती है. इस और प्रधानमंत्री मोदी संकेत कर चुके हैं जिसका सबसे बड़े वोट व्यापारी अरविंद केजरीवाल ने अपने तरीके से पुरजोर विरोध किया है. उन्होंने इस सौदेबाजी को गरीबों के हित में भगवान का प्रसाद बता कर सरकारी खजाने को लुटकर गरीबों को बांटने वाले की अपनी छवि बनाने की कुचेष्ठा की है. वे खालिस्तानियों के समर्थन का विवाद खड़ा होने पर खुद को स्वीट आतंकवादी बताने का चमत्कारी करतब बता चुके हैं.
रेवड़ियों को बांटने पर कानूनी पहल का मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिये आया था तब केन्द्र सरकार ने चुनाव आयोग के पाले में गेंद डालने की कोशिश की थी जो एक गलत चाल थी. चुनाव आयोग ने बिना देर किये इसमें असमर्थता जता दी और कहा कि इस बारे में आदर्श चुनाव सहिंता में उल्लेख है. लेकिन यह कितना कम प्रभावी है यह सब जानते हैं. तब कानून के चतुर खिलाड़ी कपिल सिब्बल ने वित्त आयोग के पाले में गेंद डालने की कोशिश की.
बात अगली सुनवाई के लिये टल गई.
जबकि सरकार को अवसर का लाभ उठाने के लिये एक मार्गदर्शिका जारी करने की पहल करनी चाहिये थी. उस पर अदालत की मुहर लग जाती तो यह कानून की तरह ही समस्या का प्रभावी समाधान हो सकता था.
वैसे यह काम अगली सुनवाई के समय भी नोटिसों का जवाब देते समय किया जा सकता है.
चुनाव के लिये समयावधि पूरी होने से पहले का कम से कम एक साल का समय ऐसा होना चाहिये जब कोई भी राजनीतिक पार्टी, केन्द्र और राज्य सरकारें मतदाता को प्रभावित करने वाली घोषणाएं नहीं कर पाएं. इसमें अन्य संगठनों को भी जोड़ा जा सकता है.