राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने पहले भाषण में ही कहा कि ‘‘मैं आदिवासी क्षेत्र से जनजातीय समाज से आती हूं’’.
यह अंग्रेजों से लेकर आजतक के साम्यवादियों और टुकड़े टुकड़े गैंग के षडयंत्रपूर्वक बनाए गये ईको सिस्टम को मुंहतोड़ जवाब है जो कहता है कि आर्य तो बाहर से आये थे. देश में आर्य और अनार्य दो आदि मानवीय नस्लें हैं. एक आर्य और दूसरी द्रविड़ है.
इसे सबसे पहले विवेकानंद ने पहचाना और कहा था ‘‘ हम इसी धरती के पुत्र हैं. हम बाहर से नहीं आए हैं’’. उन्होंने आर्य और अनार्य की थ्योरी को ठुकरा दिया.
आजादी के बाद कहा गया यहां आदिवासी हैं जो जनजातीय हैं. ये जंगलों में रहते हैं. ये इस धरती के मूल निवासी हैं. हिंदू सहित सभी बाहर से आये हैं. संविधान में उनके लिये एक शिड्यूल ट्राइव्स सूची का प्रावधान किया. आरक्षण दिया. कहा गया इनके देवी देवता अलग हैं. इनकी पूजा पद्धति अलग है इसलिये ये हिंदू नहीं हैं. इन्हें हिंदू समाज से काटने की कुचेष्टा की गई.
श्रीमती द्रौपदी मुर्र्मूू ने अपने को पूजा पाठ कर हिंदू समाज से जोड़ा. अपने को आदिवासी क्षेत्र का बताया और जनजातीय कह कर हिंदू समाज से गर्भनाल के रिश्ते का उद्घोष किया.