इस देश का नाम हिंदुस्तान है. इसे भारत भी कहा गया है. और भी नाम इसके प्राचीन काल में प्रचलित रहे हैं. लेकिन यहां हिंदू बहुसंख्यक हैं इसलिये इसे हिंदुस्तान कहा गया. यह तथ्य है. हिंदुस्तान ही ज्यादा प्रचलन देश विदेश में रहा. संविधान निर्माताओं ने यह जरूर भारत शब्द को प्राथमिकता दी और इंडिया का पर्यायवाची भारत को बताया गया.
यहां सवाल कौन अल्पसंख्यक और कौन बहुसंख्यक का है. यही सवाल हाल ही में फिर सुप्रीम कोर्ट में उठा. इस सवाल के जवाब में एक अन्य मामले में भारत सरकार ने कहा था कि नोटिफिकेशन में हिंदू को अल्पसंख्यक नहीं बताया गया है. कुछ धर्मावलंबियों को अल्पसंख्यक बताया गया है. बाद में अल्पसंख्यक आयोग बनाया गया. साथ ही यह संविधान संशोधन किया गया कि अल्पसंख्यक तय करने का अधिकार केन्द्र और राज्य सरकार दोनों कोे है. किसी राज्य में अगर संख्या के हिसाब से हिंदू कम हैं तो वहां की सरकारें इस बारे में फैसला कर सकती है. यानि हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं.
इस बारे में एक हलफनामा केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक मामले में दिया भी था लेकिन बाद में यह कह कर वापस ले लिया कि इस पर सभी के साथ विचार विमर्श कर केन्द्र सरकार बाद संशोधित हलफनामें के माध्यम से अपनी राय रखेगी.
देर से ही सही केन्द्र सरकार को समझ में आ गया कि यह समाधान तो समस्या को और उलझा देगा. इसलिये हलफनामा वापस लिया.
सवाल का जवाब क्या हो सकता है. यह तो सबको लगता है कि संख्या के आधार पर अल्पसंख्यक का दावा करना कोई गलत नहीं है लेकिन इसकी एक सीमा होनी चाहिये. संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी एक संख्या की सीमा तय कर रखी है. और भी देशों में अपने अपने हिसाब से सीमा रेखा तय है. सबका अध्ययन कर हिंदुस्तान में भी इसे तय किया जाए. यह दो, पांच, सात, दस प्रतिशत तक तो हो सकती है पर उससे ज्यादा कदापि उचित नहीं है.
यह भी समझ में आ रहा है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी को अल्पयंख्यक कैसे कहा जा सकता है. हिंदुस्तान जैसे विशाल देश में जनसंख्यां के अनुपात और प्रतिशत में बदलाव सामान्य बात है इसलिये यह समस्या पैदा हो रही है. इस कारण से आज नहीं तो कल इसे सुधार कर कोई सीमा रेखा जैसा आंकड़ा तय करना होगा ताकि सामाजिक न्याय की जरूरत पूरी हो सके.