6 जून. जम्मू कश्मीर में टारगेट किलिंग में कश्मीरी पंडितों के साथ वहां के इंडिया समर्थक भी निशाने पर हैं.
वह कैसे ?
जम्मू कश्मीर मैं टारगेट किलिंग को लेकर कहने और लिखने को तो बहुत इच्छा है पर छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों, टुकड़े टुकड़े गैंग, और जिहादियों का मिलाजुला ऐसा कानूनी और हिंसा समर्थक मकड़जाल है कि वह रोक देता है. क्योंकि वह भी टारगेट किलिंग करता है. उसके निशाने पर लिखने पढ़ने और बोलने वाले ऐसे लोग होते हैं जिन्हें वो ये लोग पसंद नहीं करते हैं. जबकि ये लोग बेधड़क कुछ भी उल्टा सीधा बोलते हैं पर उनके विरोध में लोग कुछ बोलने या करने की बजाय उनकी अनदेखी को महत्च देते हैं इसलिये उनका दुस्साहस बहुत बढ़ा हुआ है.
जरा सोचिये तो सही जब कोई बिहार से तमिलनाडु जाता है तो वह कहता है मैं बिहार से तमिलनाडु आया हूं.
लेकिन कोई जम्मू कश्मीर से बिहार आता है तो कहता है मैं जम्मू कश्मीर से इंडिया आया हूं. वह बिहार का उल्लेख नहीं करता न ही बिहार के लोग इस बात को रेखांकित करते हैं.
इसी प्रकार जब कोई बिहार से जम्मू कश्मीर जाता है तो वह तो कहता है कि मैं बिहार से जम्मू कश्मीर आया हूं.
लेकिन वहां के लोग पूछते हैं कहां से आये हो तो जवाब में कहे गये बिहार शब्द को अनसुना करके कहते हैं अच्छा इंडिया से आये हो.
यह है वह अलगाववाद की भावना जिसे धारा 370 ने पालापोसा और बड़ा किया है.
इस भावना के खिलाफ जो नहीं बोलते हैं हम उन्हें देशद्रोही क्यों नहीं कहते हैं. क्योंकि डरते हैं कि कहीं हमें कानूनू जाल में कोई नहीं फंसा दे.
कोई कौन वही जिनका उल्लेख हम टुकड़े टुकड़े गैंग व अन्य शब्दों में कर चुके हैं.
इस गैंग को देशद्रोही कब कहा जाएगा. इस गैंग को मिल रहा विदेशी समर्थन और संरक्षण कब रूकेगा.
इस गैंग को प्राकृतिक न्याय और संवैधानिक तथा कानूनी संरक्षण और बचाव तथा के रास्ते कब बंद होंगे.
मोदी जी के आने से कुछ तो बदला है लेकिन बहुत कुछ बदलना अभी बाकी है.
सत्तर साल में बुना जाल को टूटने में समय तो लगेगा ही, पर कितना ?