जैसी की संभावना थी या कहें चर्चाएं थी उसी के अनुरूप कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर के नतीजे निकले. उसे फ्लाप शो कहा जा सकता है. क्योंकि उसके कोई नये ठोस परिणाम नहीं निकले हैं. इसका भी वही हश्र होगा जो कांग्रेस के पचमढ़ी चिंतन शिविर का हुआ था.
शिविर में प्रारंभ में ही कह दिया गया था कि इसके नतीजे गांधी परिवार पर लागू नहीं होंगे. पर जो फैसले हैं क्या वे बाकी पर लागू होंगे. जरा देखिये कि राज्यसभा में भेजे जाने या संगठन में पदाधिकारी होने की समय सीमा तय की गई है. पर क्या वह तत्काल प्रभाव से लागू की जा सकेगी. अगर ऐसा हुआ तो जी 23 समूह का तो बैंड बज जाएगा. यही नहीं आज जिनकी तूती बोल रही है ऐसे भी कई लोगों पर भी वज्रपात होगा.
पर इसके पहले ही कुछ हो रास्ते तलाश लिये गये हैं और कहा जा रहा है कि फैसले तो फैसला होने की तिथि के बाद से ही लागू होंगे यानि कोई कोई पहले की नियुक्तियों से आज बाधित हो रहा है तो उसे अपवाद मान लिया जाएगा और समय कि गणना नये सिरे से होगी.
तो फिर बदला क्या ?
राहुल गांधी को कमान सौपी जानी है. अब जब उनके पास कमान नहीं है तो भी तो व्यवहारिक तौर पर वही संभाल रहे हैं. बैठक में भी तत्काल कमान सौंपने की बात से बच कर अगले चुनाव तक या उपयुक्त समय तक रूकने की बातें कही गई है. उनकी पर्यटन राजनीति पर तो कोई चर्चा हुई ही नहीं जो उन्हें अकसर नोन सीरियस पोलीटिशियन का तमगा दे देती रही है. वे फुलटाइम अध्यक्ष रहेंगे, सैर सपाटे से बचेंगे इस बारे में कुछ कहा गया है इसकी कोई भनक नहीं लगी.
यह सही है कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. उसको राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर अपना रूख रखना चाहिये. उसे देश विदेश की समस्याओं पर विचार कर अपना रवैया पेश करना चाहिये पर चिंतन शिविर तो कांग्रेस की समस्याओं को लेकर था. देश की समस्याओं को लेकर नहीं. पर शिविर में कांग्रेस की समस्याओं पर सरसरी तौर पर बात की गई और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर गहनता और विस्तार के साथ. यह बात प्रेस के सामने कही गई बातों से साफ होता है.
यह दावा कुछ हद तक ही सही है कि क्षेत्रीय दलों की अपनी कोई विचारधारा नहीं है. वे देश की समस्याएं हल नहीं कर सकते. यह काम कांग्रेस ही कर सकती है. पर इस बात पर कौन यकीन करेगा कि भाजपा को सिर्फ कांग्रेस ही टक्कर दे सकती है. कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन यूपी में सपा का रहा है. बिहार में कांग्रेस से बेहतर नतीजे राजद ने दिये हैं. बंगाल में तृणमूल ने कांग्रेस का तो सफाया कर शून्य पर पहुंचा दिया है. उड़ीसा हो या आन्ध्र, तेलंगाना हो या झारखंड, दिल्ली हो या असम सब और कांग्रेस का प्रदर्शन बद से बदतर होता जा रहा है.
इसलिये यह कहा जाए कि कांग्रेस का उदयपुर चिंतन शिविर फ्लाप शो रहा तो कोई गलत नहीं है. 18 मई. बार बार कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने नेताओं को काफी दिया अब कांग्रेस की जरूरत है तो उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिये. यानि वे पैसे कोड़ी से मदद करें, अपनी गांठ ठीली करें. पर क्या गांधी परिवार के पास कमी है. समय समय पर स्विस बैंक एकाउंट्स की चर्चाएं होती रहती हैं. उसका कुछ हिस्सा कब काम आएगा.
मेरा तो दृढ विश्वास है कि कांग्रेस में मलाई चाट रहे या चाट चूके नेताओं में से इस ग्रांड ओल्ड पार्टी के लिये कोई कुछ नहीं करेगा. कांग्रेस एक प्लेटफार्म होने के साथ साथ विचारधारा भी है. मलाई चाट रहे लोग प्लेटफार्म का उपयोग कर रहे हैं और विचारधारा से उनका गंभीरता के साथ कहें तो कुछ लेना देना नहीं है. पर अभी भी कई लोग हैं जिनका विचारधारा से ही संबंध है, प्लेटफार्म पर जाकर मलाई चाटने में उनकी रुचि जरा कम है. ये लोग ही कांग्रेस को उबारेंगे. समय के साथ उनकी ताकत बढ़ेगी. ये संगठन को मजबूत करेंगे और गांधी परिवार का विकल्प भी धीरे धीरे बनाने में कामयाब हो जाएंगे.
फिलहाल तो यही सत्य है कि गांधी परिवार इज कांग्रेस एण्ड कांग्रेस इज गांधी परिवार. गांधी परिवार सहारा नहीं देगा तो वर्तमान कांग्रेस बिखर जाएगी. गांधी परिवार का सहारा और समर्थन रहेगा तो कांग्रेस कमजोर भले ही होती जाए पर उसकी ताकत के क्षीण होने की गति यथा संभव धीमी बनी रहेगी. मैं आशावादी हूं इसलिये कहता हूं कि कोई न कोई विकल्प उभर जाएगा. उसके लिये किसी चिंतन शिविर की जरूरत नहीं है. चिंतन शिवरों का नाटक वर्तमान कांग्रेस को ही मुबारक हो.