कांग्रेस को लाभ की प्रत्याशा छोड़ निस्वार्थ भाव से काम करने वाले ही कांग्रेस को उबार सकते हैं. सत्तर साल तक भ्रष्टाचार के परनाले में डुबकियां लगा रहे कांग्रेसियों से यह अपेक्षा वैसी ही है जैसे बकरे से दूध की अपेक्षा.
तो क्या करें? आशा छोड़ दें?
जी नहीं आशाओं पर ही तो आसमान टिका है. उम्मीद रखिये, हर चीज का अपवाद होता है. तो कांग्रेस में भी अपवाद स्वरूप ही सही कुछ ईमानदार कांग्रेसियों का समूह निकलेगा जो निस्वार्थ भाव से कांग्रेस के लिये काम करेगा. वही उबारेगा. सत्तर साल से मलाई मार रहे कांग्रेसियों में से उनमें से कोई नहीं होगा. सोनिया जी भले ही कहती रहें कि कर्ज उतारने का वक्त आ गया है. पर कांग्रेसी बिना प्रत्याशा के गांठ ठीली नहीं करने वाले. सब जगह उम्मीद है. इसलिये वहां गांठ ठीली करने वाले कांग्रेसी मिल जाएंगे. कुछ अपने लिये पैसा लगाएंगे तो कुछ पैसा अपना गुट मजबूत करने में भी लगाएंगे. ज्योतिरादित्य में ताकत थी वे अपनी अकूत संपत्ति में से अपने साथ साथ पच्चीस पचास लोगों पर पैसा लगाते थे. कुछ जीतते थे तो कुछ हार जाते थे. पर साथ नहीं छोड़ते थे. अब कांग्रेस में ज्योतिरादित्य तो हैं नहीं पर दिग्विजयसिंहख् कमलनाथ तो हैं. कमलनाथ भी कई हैं छुपे रुस्तम. अपने पर पैसा लगाने वाले तो काफी हैं इसलिये मध्यप्रदेश में साठ सीटें तो पक्की होती हैं. उसमें दस सीटों की घटबढ़ जोड़ लें. बाकी अन्य राज्यों में भी मध्यप्रदेश जैसा ही परिदृश्य है. पर इन सबसे कांग्रेस संकट से उबरेगी नहीं. मरणासन्न स्थिति में सांस लेती रहेगी. कहीं कहीं, राजस्थान, छत्तीसगढ़ या कहें तो मध्यप्रदेश जैसा चमत्कार होता रहेगा.
संकट से तो निस्वार्थ कांग्रेसियों का गुट निकालेगा. उसमें समय लगेगा. उसे न सोनिया जी जानती हैं न कोई और. यह समय ही तय करेगा कि कांग्रेस संकट से निकलेगी या बिखरकर डूब जाएगी.