कांग्रेस कैसे आगे बढ़े इस पर चिंतन शिविर जारी है. पचमढ़ी शिविर का हश्र सब देख चुके हैं और ढ़ेर सारे जानकार इस उदयपुर शिविर का हश्र भी इससे बेहतर नहीं मान रहे हैं. अब एक और सवाल यही है कि दुनिया से जैसे डायनासोन खत्म हो गये. वैसे ही हिंदुस्तान के राजनीतिक परिदृश्य से कांग्रेस खत्म होकर रहेगी. उसे कोई चिंतन मनन नहीं बचा सकता. कारण है गांधी परिवार. बिना गांधी परिवार के कांग्रेस बिखर जाएगी. बंट जाएगी और धीरे धीरे अपना असर और अस्तित्व खो देगी. कांग्रेस गांधी परिवार की गिरफ्त में रहेगी जैसी अब है तो भी यही स्थिति देर अबेर बनने वाली है. यह तो सभी मान रहे हैं. दूसरी फिलहाल काल्पनिक है. अब कौन सी हायपोथिसिस काम करेगी यह तो समय बताएगा.
प्रशांतकिशोर से लेकर कई राजनीतिक विश्लेषक और नेता कांग्रेस की अहमियत को रेखांकित कर चुके हैं. कांग्रेस भी मानती है. बागी कांग्रेसी भी मानते हैं और गांधी परिवार और उनके भक्त भी मानते हैं. यही नहीं बागी क ांग्रेसी भी गांधी परिवार की अनिवार्यता से इंकार नहीं करते हैं. वह वास्तविक रहे या प्रतीकात्मक इस पर विभाजित हैं.
अब वापस मूल सवाल पर लौटें. दिक्कत यहीं है कि गांधी परिवार की अगुआई के साथ कांग्रेस या गांधी परिवार के प्रतीकात्मक नेतृत्व के साथ कांग्रेस. अगुआई वाल कांग्रेस का हाल तो आजकल सब देख रहे हैं. प्रतीकात्मक नेतृत्व का परीक्षण बाकी है. होगा या नहीं यह समय बताएगा.