देश में देशद्रोह रोकने का एक कानून है. उसे खत्म करने की बात की जा रही है. उसका तात्कालिक कारण है उसका बार बार हो रहा दुरुपयोग. पर उसे खत्म करने की मांग को बल देने के लिये कहा जा रहा हे कि यह अंग्रेजों का बनाया कानून है जिसमें आजादी की लड़ाई के दौरान अनेकों देशभक्तों को सजाएं दी गईं. आजाद भारत में इसे कतई नहीं होना चाहिये. मामला सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ के सामने विचाराधीन है. भारत सरकार ने इसे खत्म करने का विरोध किया है और कहा है कि इसे खत्म करने की जगह इसके दुरुपयोग को रोकने के लिये प्रावधान किये जाने की जरूरत है. सरकार ने यह भी कहा है कि इसे पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने सभी प्रकार के मूल अधिकारों के अनुरूप बताते हुए संवैधानिक आधारों पर सही माना है. यही नहीं अदालत ने यह भी कहा है कि किसी सरकार की कटुतम आलोचना हो तो भी इसे लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि वह आलोचना हिंसा और अराजकता को नहीं उकसाती हो या उसे उकसाने के लिये अपील या आव्हान नहीं करती हो. इतना ही नहीं कई बार अदालतों में यह दावा किया गया है कि है कि देशद्रोह का कानून लागू करने के लिये हिंसा को उकसाने की अपील ही काफी नहीं है, उसके साथ हथियारों की संलिप्तता भी जरूरी है ताकि हिंसा की संभावना को पुष्ट किया जा सके. पर इस बारे में शायद अदालती फैसले कमजोर हैं इसलिये सरकारें दुरुपयोग करने की गुंजाइश निकाल लेती हैं. पर दुरूपयोग की बात इसे खत्म करने या इसको विचार के लिये इसे बड़ी पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेजने की जरूरत साबित नहीं कर देती है. संवैधानिक आधार पर तो यह सही है यह पहले ही पांच सदस्यीय संविधान पीठ कह चुकी है इसीलिये सरकार ने नये दिशानिर्देशों की बात सरकार ने की है ताकि दुरुपयोग को रोका जा सके.
अब इस पर विचार करें कि इसके विरोधी क्या सोचते हैं और वे इसको खत्म करने या इसमे बड़ी पीठ को भेजने की मांग पर जोर क्यों दे रहे हैं ?
देखिये देशद्रोह है तभी तो देशभक्ति है. देशद्रोही नहीं होंगे तो देशभक्ति की बात ही कहां से उठेगी. देशद्रोही चाहे देश के अंदर हों या शत्रु देश या देश के बाहर के उनको रोकने के लिये ही तो देशभक्ति की जरूरत पड़ेगी और देशद्रोह को रोकने, देशद्रोहियों को खत्म करने के लिये कानून की जरूरत पड़ेगी. इसलिये इस कानून को बनाए रखने की जरूरत है. इसके अंग्रेजों के बनाए होने से ही दिक्कत है या देशभक्तों के खिलाफ पहले इसके उपयोग की बात है तो भले ही उस आधार पर इसे खत्म कर दीजिये. पर इसे खत्म करने के पहले नया देशद्रोह संबंधी कानून लागू कर दीजिये. ताकि देशद्रोहियों को खुला मैदान न मिल जाए. जो इसे बड़ी पीठ को भेजने की बात कह रहे हैं वे देश की अदालतों में न्याय की कछुआ जैसी गति से अच्छी तरह से परिचित हैं. जैसे ही बड़ी पीठ में जाएगा वर्तमान कानून को फैसला होने तक स्थगित करने की मांग करने लगेंगे. देश की अदालते स्थगन देने में इतनी ज्यादा उदार है कि इसे अच्छाई से ज्यादा जनता की नजरों में बुराई कहा जाने लगा है. इसीलिये जब आंख के बदले आंख का जंगली कानून कहीं लागू हो जाता है तो जनता में खुशी देखी जाती है. जो अच्छा लक्षण नहीं है.
जो विद्वान, बु़िद्धजीवी, कानूनों के जानकार, सामाजिक कार्यकर्ता, एक्टिविस्ट देशद्रोह के कानून को खत्म करने की मांग कर रहे हैं उन्हें देशद्रोही तो कदापि नहीं कहा जा सकता. सभी देशभक्त हैं पर उनकी मांग जब तक बिना विकल्पों के बनी रहती है तब तक यह तो कहा जा सकता है कि वे देशभक्तों को कमजोर कर रहे हैं.