यहां वहां प्रकरण दर्ज कर मामला चलाने पर रोक लगनी चाहिये. इस पर सुप्रीम कोर्ट को मापदंड तय करने चाहिये क्योंकि इसका लाभ नेता उठाते हैं तो वे तो कुछ करने से रहे. कम से कम वहां ही मुकदमा चले जहां का कथित तौर पर कानून तोड़ने वाला है. इससे इसका दुरुपयोग एक हद तक रूकेगा. तेजेन्दरसिंह बग्गा, जिग्नेश मेवाणी और नवनीत राणा के मामले में ऐसा देखा जा चुका है. देशद्रोह के मामले में भी कुछ ऐसी ही मांग की जा रही है. कि कुछ मापदंड तय हो ताकि देशद्रोह के कानून का दुरुपयोग बंद हो. यह कहना कि यह अंग्रेजों का बनाया कानून है. इसमें देश के आला नेताओं को आजादी के दौरान सजाएं दी गई थी इसलिये यह खत्म हो यह बात गले नहीं उतरती है क्योंकि अभी तो ऐसे सैकड़ों कानून हैं जो अंग्रेजों ने बनाए थे और जस के तस चल रहे हैं. हां बेहतर हो कि अंग्रेजों के बनाए कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ही पहल करें और उनके सुधार को लेकर मार्गदर्शक निर्देश जारी करें. जब उनकी जगह कानून बनेंगे तब बनेंगे वह देखा जाएगा. अभी तो निर्देशों से ही काम चलाओ. संसद हो या विधानसभा राजनीति के ऐसे अखाड़े बन चुके हैं जहां निहित राजनीतिक स्वार्थो के चलते कानून बनाने का सबसे अहम काम प्राथमिकता से एक दम बाहर हो चुका है.