जम्मू-कश्मीर में भाजपा वापस आ रही है सत्ता में ? 6 मई.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-05-06 06:45:27


जम्मू-कश्मीर में भाजपा वापस आ रही है सत्ता में ? 6 मई.

जम्मू कश्मीर में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट आ जाने और उसकी अधिसूचना 5 मई को जारी हो जाने के बाद यह चर्चा गरम हो चली है कि अब वहां  भी भाजपा का मुख्यमंत्री बनने वाला है.  हालांकि भाजपा की वहां पहली बार सत्ता नहीं आने वाली है. जब विधानसभा भंग हुई उससे पहले भी भाजपा और पीडीपी गठबंधन सरकार थी. तब मुख्यमंत्री पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री थी और भाजपा सहयोगी पार्टी. भाजपा ने समर्थन वापस लिया और राष्ट्रपति शासन लगाया. उसके बाद धारा 370 खत्म की और राज्य का विभाजन कर दो केन्द्र शासित प्रदेश बना दिये. एक जममू कश्मीर और दूसरा लद्दाख. जम्मू कश्मीर को विधानसभा दी और कहा कि वहां जल्दी ही चुनाव करवाए जाएंगे. यह भी कहा कि हालात सुधरने पर उचित समय पर जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा भी दिया जाएगा. चुनाव के लिये पहले राज्य नवगठित राज्य के विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का पुनगर्ठन जरूरी था. उसी के बाद चुनाव हो सकते थे. उसके आलोक में कहा कि जैसे ही सीटों का पुनर्गठन पूरा होगा जल्दी से जल्दी चुनाव करवा लिये जाएंगे. वह पूरा हो चुका है. अब चुनाव आयोग को मतदाता सूचियों का संशोधन कर चुनाव करवाना है. इसके दिसंबर से पहले होने की संभावना है. इसलिये यह अटकलें लगना स्वाभाविक है कि वहां किसकी सरकार बनेगी. तो राजनीतिक दल भाजपा की संभावना ज्यादा बता रहे हैं.
इन अटकलों का आधार है जम्मू कश्मीर के गैर भाजपाई और क्षेत्रीय दलों के ये आरोप हैं कि आयोग ने भाजपा की मंशा के अनुरूप सीटों का पुनर्गठन किया है. इसमें सच्चाई की संभावना लगभग शून्य है क्योंकि आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के पास थी और केन्द्रीय चुनाव आयोग के अध्यक्ष सुशील चन्द्रा और राज्य चुनाव आयोग के अध्यक्ष के के शर्मा  एक्स आफिशियो सदस्य थे. ऐसोसिएटेड सदस्य के तौर पर पांचों लोकसभा के सदस्य हैं. इनकी नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष ने की थी. इनमें नेशनल कांफ्रेंस के तीन सांसद फारुख अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हुसैनन मसुदी  तथा भाजपा के सांसद जितेन्द्र सिंह और जुगलकिशोर शर्मा शामिल हैं. इसलिये आरोपों को राजनीतिक छींटाकसी से ज्यादा अहमियत नहीं  दी जा रही है.
पर हम जरा उन बातों को समझने की कोशिश करें जिनके चलते राजनीतिक असर जम्मू कश्मीर की राजनीति पर गहरा होगा जिससे अब तक चल रही राजनीति में जमीन आसमान का बदलाव नजर आ सकता है.
पहली बात तो सीटों की संख्या की है. लंबे समय से आरोप था कि सीटों को लेकर जम्मू के साथ भारी भेदभाव किया गया है. तब 83 सदस्यीय विधानसभा में जम्मू की 37 सीटें थी और कश्मीर की 46. अब सीटें बढ़ा कर 90 कर दी गई हैं. कुल 7 सीटें बढ़ाई हैं. इनमें जम्मू की 6 और कश्मीर की एक सीट बढी हैं. इससे जम्मू की 43 और कश्मीर की 47 हो गई हैं.
इस आधार पर कहा जा रहा है कि कश्मीर घाटी की राजनीतिक ताकत को घटा दिया गया है. उसकी तुलना में जम्मू की ताकत बढी है. पहले 9 सीटों का अंतर था जो अब घटकर 4 सीटों का अंतर रह गया है.
इस और भी इंगित किया जा रहा है कि 2011 की जनगणना के हिसाब से कश्मीर की आबादी ज्यादा है. करीब 56 प्रतिशत और जम्मू की 44 प्रतिशत है. उसके बाद भी सीटों के हिसाब से कश्मीर को 52 प्रतिशत सीटें मिली हैं और जम्मू को 48 प्रतिशत सीटें मिल गई हैं.
जबकि पुनर्गठन से पहले सीटों के लिहाज से कश्मीर की भागीदारी 55.4 प्रतिशत थी और जम्मू की 45.4 प्रतिशत. यानि दो प्रतिशत का फर्क जम्मू के पक्ष में आ गया है.
पर आयोग इससे सहमत नहीं है. उसने बदलते समय के साथ बदले मापदंडों के हिसाब से सीटों का पुनर्गठन किया है. पहले जनसंख्या को एकमात्र आधार बनाया या था और जम्मू और कश्मीर को अलग करके दो इकाई माना था. आयोग ने एक ही इकाई जम्मू और कश्मीर माना है. फिर जनसंख्या  के साथ जनसंख्या का घनत्व, पहाडी़ इलाकों की दुर्गमता, सीमा से निकटता, आवागमन और पहुंच की समस्या को भी आधार माना है. इस प्रकार आधार के मापदंड कई होने से उनका वजन भी बदला है उसके आधार पर सीटों का गठन किया गया है. आयोग ने यह भी रेखांकित किया है कि इस बार एक लोकसभा क्षेत्र अनंतनाग-राजोरी ऐसा है जिसका कुछ भाग कश्मीर और कुछ भाग जम्मू में आता है. जम्मू के दो विधानसभा क्षेत्र पूंछ और राजोरी को कश्मीर के साथ जोड़ा है. सभी 5 संसदीय क्षेत्रों में 18-18 विधानसभा सीटें रखी गई हैं जबकि पहले असमानता थी.
दूसरा अहम बिंदु आरक्षण का है. आयोग ने नौ सीटों का आरक्षण जनजातियों के लिये किया है. यह आरक्षण जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म होने के कारण संभव हो पाया है. वह धारा खत्म नही होती तो इसके लिये प्रावधान तक संभव नहीं था.
नौ आरक्षित सीटों में भी छह जम्मू में और तीन कश्मीर में हैं. कहा यह जा रहा है कि इस आरक्षण का लाभ भी भाजपा को मिलेगा. छह जम्मू की सीटों पर लाभ की उम्मीद तो नई नहीं है पर माना जा रहा कि कश्मीर की तीन सीटें अगर भाजपा के खाते में गई तो राजनीतिक समीकरण बदल जाएंगे.  
अंत में फिर बात सीटों की संख्या के विभाजन की. राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि पिछली बार की तरह अगर भाजपा ने जम्मू में शानदार प्रदर्शन किया तो जम्मू और कश्मीर की सीटों के अंतर में आई कमी से समीकरण बदल सकते हैं. पुराने गणित को मानने वाले कह रहे हैं कि भाजपा के वोट तो भाजपा की झोली में हैं ही पर गैर भाजपाई वोट नेशनल कांफ्रेंस, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस में बंट जाएंे. वोटों का विभाजन भाजपा को सत्ता में ले आएगा. बची खुची कमी चुनाव बाद बनने वाले समीकरण पूरी कर देंगे. पर मेरा मानना है कि यह आसान नहीं है. दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है. गुफकार एलाइंस नहीं बंटेगा और कांग्रेस भी एलाइंस को समर्थन देती रहेगी.
एक और पाइंट काफी गंभीर है वह यह  कि धारा 370 खत्म होने के बाद केन्द्र ने काफी तेजी से विकास कार्य किये हैं. पर ज्यादा वोट जोड़े हैं इसकी संभावना कम ही है. जबकि धारा 370 हटने के पहले गुफकार एलाइंस के सदस्य दलों  ने जिस प्रकार से लोगों को लाभ पहुंचा पहुंचाकर वोट बैंक बनाया है वह एलाइंस की झोली वोटों से भर सकता है. इससे एलाइंस सरकार बना सकता है.
इसलिये मेरी नजर में टक्कर कांटे की रहने वाली है. कहना कठिन है कि ऊंठ किस करवट  बैठेगा.

Contact:
Editor
ओमप्रकाश गौड़ (वरिष्ठ पत्रकार)
Mobile: +91 9926453700
Whatsapp: +91 7999619895
Email:gaur.omprakash@gmail.com
प्रकाशन
Latest Videos
जम्मू कश्मीर में भाजपा की वापसी

बातचीत अभी बाकी है कांग्रेस और प्रशांत किशोर की, अभी इंटरवल है, फिल्म अभी बाकी है.

Search
Recent News
Leave a Comment: