चुनावी रणनीति के जानेमाने जानकार प्रशांतकिशोर राजनीति में हाथ आजमाने की महत्वाकांक्षा रखते हैं. पर जमीन पर काम करने में उनकी जरा कम ही रूचि है. राज्यसभा में जाने मात्र से वे संतुष्ट नहीं होंगे बल्कि शीर्ष पर रहकर अपने तरीके से सबको हांकना चाहते हैं. पर ऐसा न भाजपा ने करने दिया, न नीतीशकुमार ने और न ममता बनर्जी ने. कांग्रेस पर जाल फेंका पर वहां भी दिग्विजयसिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल जैसों ने उनकी दाल नहीं गलने दी.
तो वे क्या करें, खुद की पार्टी बनाएंगे और बिहारी हैं तो सबसे पहले बिहार पर हाथ आजमाएंगे. प्रशांत किशोर हैं तो बिहारी ना इसलिये उनकी योग्यता पर कितना भी संदेह कर लो पर खून में घुली गुरूघंटाल राजनीति असर बता ही जाती है. वे कह तो रहे थे कि खुद की पार्टी बनाएंगे पर अभी पार्टी न बनाकर एक तरह का अभियान चलाएंगे. वह बिहार में चंपारन से दो अक्टूबर से तीन हजार किलोमीटर की सुराज यात्रा निकालेंगे और करीब 17 हजार ऐसे लोगों से मुलाकात करेंगे जो उनकी राजनीति में सहायता कर सकें. वे राजनीतिक एक्टिविस्ट की तरह काम करेंगे. जरूरत लगेगी तभी पार्टी बनाएंगे. इस काम में दो तीन साल या उससे भी ज्यादा लग सकते हैं.
प्रशांतकिशोर ये दो तीन साल बचाने के चक्कर में ही बने बनाए ढ़ांचे वाली कांग्रेस पर जाल फेंक रहे थे. कांग्रेस का ढ़ांचा भले ही जर्जर हो पर है तो उसे ठीक किया जा सकता है. पर जैसा की पहले मैं कह चुका हूं कि प्रशांतकिशोर ने कांग्रेस पर से नजरें हटाई नहीं हैं. वे 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सही वक्त पर फिर कोशिश करेंगे. इस बीच वे अपनी पार्टी के ढ़ांचे के लिये काम करेंगे. उनकी कंपनी दूसरे गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों को रणनीति बनाने में सहयोग करती रहेगी. वह उन लोगों का मार्गदर्शन करते रहेंगे ताकि पैसे की आवक बनी रहे.
तो चलिये यह तय हो गया कि प्रशांतकिशोर चर्चा में बने रहने के लिये शिगुफे छोड़ते रहेंगे जिसमें वे निष्णांत हैं.