29 अप्रैल. फेसबुक में एक पोस्ट है कि अब सोया हुआ हिंदू जाग चुका है. वह अब डॉक्टर, इंजीनियर नहीं बनेगा वह सड़क पर हनुमान चालीसा पढ़ेगा, भजन कीर्तन करेगा.
यह पोस्ट रिएक्शन में है. पर इसमें किसी धर्म पर आक्षेप नहीं है. यह पोस्ट हिंदू जागने को लेकर की गई पोस्ट के जवाब में है. उसमें भी किसाी और धर्म का उल्लेख नहीं था.
बात धर्म और पढ़ाई से जुड़ी है. मेरा मानना है कि सबके लिये फिर वह किसी भी धर्म का हो इन दोनों को समान महत्व देना चाहिये. यह व्यक्ति विशेष का मामला बन जाता है. पर मेरी नजर में ऐसा नहीं है यहां व्यक्ति तो अहम है की परिवार और समाज भी महत्वपूर्ण है. धर्म की भी भूमिका है. हिंदू अपने धर्म को लेकर जरा ज्यादा दूरी बनाने लगा था. वह स्थिति बदल रही है. इसलिये बदले माहौल को इंगित कर पोस्ट बनी.
पर प्रतिक्रिया जरा तीखापन लिये हुए है. शीध्र होने वाली नीट और जेईई की परीक्षा के आवेदनकर्ताओं के आंकड़े एक अखबार में छपे हैं. जरा उनका धर्म, जाति, आर्थिक स्थिति के आधार पर विश्लेषण करें तो पाएंगे कि अभी भी हालात बदले नहीं हैं. अभी भी हिंदुओं की संख्या इसमें ज्यादा निकलेगी. क्यों? क्योंकि पढ़ाई केवल व्यक्ति यानि बालक बालिका विशेष के सोच का मामला नहीं है. उसमें परिवार की सोच भी निर्भर करती है. परिवार की सोच का असर बालक बालिका पर पड़ता है. परिवार जिस समाज से आता है उसका भी असर परिवार और ब्यक्ति की सोच पर पड़ता है. यही स्थिति धर्म की भी है. धर्म का असर भी बालक बालिका, परिवार और समाज पर होता है.
इस प्रकार जो इको सिस्टम बनता है उसी से शिक्षा जुड़ी है. वकील डॉक्टर इंजीनियर बनना जुडा़ है. उसी से भजन कीर्तन जुड़ा है. दोनों का साथ चलना जरूरी है. पोस्ट बदलते इको सिस्टम की ओर इंगित करती है.
हम अगर चाहते हैं कि सभी परिवारों, समाजों और धर्मो से बड़ी संख्या में ऐसे डॉक्टर इंजीनियर और वकील निकलें जो धार्मिक कार्यों को भी महत्व देते हों तो हमें इसके लिये इको सिस्टम बदलना होगा.
इसके लिये सभी को प्रयास करना होगा. यही देशहित में है. यह पोस्ट उन लोगों के लिये खासतौर पर है जो मानते हैं कि पढ़ाई लिखाई बढ़ाने में सिर्फ बालक बालिकाओं की भूमिका है. सरकार उन पर खर्च बढ़ाती रहे तो डॉक्टर इंजीनियर और वकील निकलने लगेंगे. जी नहीं इसके लिये इको सिस्टम बनाना होगा.