जैसा की हम कह रहे थे कि कांग्रेस की समस्या जर्जर संगठन है. कांग्रेस की समस्या नेतृत्व है. वही प्रशांत किशोर कह कर कांग्रेस को टाटा बाय बाय कह रहे हैं. कांग्रेस को प्रशांत किशोर की रिपोर्टिंग और कार्यप्रणाली में मनमाने बदलाव की जिद पसंद नहीं आई और उसने बातचीत को तोड़ने की घोषणा कर दी. पहले कांग्रेस ने इस बारे में ट्वीट किया और उसके बाद प्रशांत किशोर ने. हमने कहा था कि सोनिया गांधी तय कर लें कि कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा? वह स्वयं, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा. इनमें से किसी एक के सिर ताज रख दो और मैदान से हट जाएं. नेता संगठन बनाए, पाटी चलाए. उसी का चेहरा आगे हो. उसी का कांग्रेस का तिया पांचा करने दिया जाए कोई आड़े नहीं आये. जो होगा वो देखा जाएगा. प्रशांत भी चाहते थे कि कांग्रेस का एक नेतृत्व हो जिसे वह रिपोर्ट करें पर साथ ही एक और नेता भी हो जो गांधी परिवार से बाहर का हो. यानि सांझा नेतृत्व जैसा. सामूहिक नहीं जिसमें पांच, दस, बीस, पच्चीस नेता हों. कांग्रेस के वही पसंद आता है. उसने हाई पावर इम्पावर्ड कमेटी बनाई तो प्रशांतकिशोर दुम दबा कर निकल भागे.
प्रशांतकिशोर की अपनी महत्वाकांक्षा भी एक बड़ी समस्या थी. ऐसा लगता था कि वे कांग्रेस पर कब्जा करना चाह रहे हैं. सब उनकी इच्छा से चले, उनसे पूछ कर सब काम हो, हर काम में उनकी सलाह ही ली ही नहीं जाए बल्कि मानी भी जाए. हमने कहा था प्रशांतकिशोर का राजनीतिक रणनीतिकार का रिकार्ड कितना भी चमकीला क्यों न हो पर राजनीति नेता के तौर पर तो वे शून्य हैं. पार्षद का चुनाव तक नहीं जीते कभी. कई चुनाव लड़वा चुके और जीत चुके दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल क्या मान जाएंगे की उनके प्रभाव क्षेत्र में संगठन की कमान किसके हाथ में रहे या चुनाव में टिकट किसे दिया जाए? कभी नहीं इसलिये सबने मिलकर जाल बुना और प्रशांतकिशोर ने निकल भागने में ही भलाई समझी. इस जाल को बुनने में तेलंगाना में प्रशांतकिशोर की कंपनी की गतिविधियों को आधार बनाया गया. यह कहा गया कि प्रशांतकिशोर इस कंपनी से संबंध खत्म करने की जो बात कह रहे हैं उसमें सच्चाई नहीं है.
कहा जा रहा है कि अब प्रशांतकिशोर और कांग्रेस की वार्ता टूट गई है. पर ऐसा नहीं है. मेरी नजर में यह फिल्म में हुआ इंटरवल है. फिल्म अभी बाकी है.
अभी गुजरात और हिमाचल का चुनाव सिर पर है. केजरीवाल की आप के प्रवेश से कांग्रेस की हार तय हो गई है और भाजपा की जीत सुनिश्चित. इससे कांग्रेस बैचेन होगी. क्योंकि उसने कुछ खोया नहीं है. कुछ सीटें भाजपा की कम होंगी और कांग्रेस की बढ़ेगी. हो सकता है आप के हाथ भी कुछ लग जाए. जब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश का चुनाव होगा उसके नतीजे कांग्रेस की हिम्मत तोड़ देंगे. क्योंकि मध्यप्रदेश में जहां भाजपा की वापसी होगी वहीं कांग्रेस इन दोनो राज्यों को खो देगी. तब वह फिर प्रशांतकिशोर के सामने आत्मसमर्पण की मुद्रा में जाएगी. और प्रेमालाप वाली फिल्म का इंटरवल खत्म होगा और फिल्म शुरू होगी. यहां भी जानकार विपक्ष के बीच चल रही खींचतान के चलते अभी तो 2024 में मोदी की वापसी तय मान रहे हैं लेकिन उसमें काफी समय है इसलिये इस फिल्म के अंत की चर्चा फिर कभी.