मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 22 अप्रैल 2022 से काफी राहत महसूस कर रहे होंगे. उनके विरोधी खेमे में सियासी तौर पर सत्ता को लेकर चिंता का सूरज तप रहा होगा. चौहान अपने चौथे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद भोपाल यात्रा पर आए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की प्रशंसा पाने में भी कामयाब हो गए. पिछले 6 महीने में गृहमंत्री शाह की मध्यप्रदेश में यह दूसरी यात्रा थी. जिसमें वह शिवराज के मैनेजमेंट को देखते हुए सरकार की तारीफ किए बिना नहीं रहे.
गृह मंत्री अमित शाह ने भोपाल के जंबूरी मैदान में कहा कि प्रदेश की जबलपुर यात्रा में आदिवासी वनवासी कल्याण लिए 17 सूत्री एलान किया था. तब मैंने शिवराज जी से कहा था जनता हिसाब मांगेगी. आज जब मैंने हेलीकॉप्टर में शिवराज जी से जब 17 सूत्री घोषणाओं के बारे में रिपोर्ट ली तो मुझे खुशी है कि सब पर काम शुरू हो गया है. इसके लिए शिवराज जी और उनकी पूरी टीम के लिए बधाई. शिवराज जी ने अपने काम से प्रदेश पर बीमारू होने का जो टप्पा लगा था राज्य को उससे बाहर निकाल कर विकसित राज्य बना दिया है. यहां आदिवासी कल्याण के जो काम हुए हैं वह दूसरे राज्यों के लिए भी अनुकरणीय है.
बस यहीं से लगता है चौथी पारी के मुख्यमंत्री शिवराज निष्कंटक हो गए. इससे 2023 के विधानसभा चुनाव तक सरकार में कोई परिवर्तन होता नही दिखता है. इस तरह के संकेतों से शिवराज के मुकाबले अगले चुनाव को देखते हुए कांग्रेस को भी परिश्रम की पराकाष्ठा करने वाले नेता की दरकार होगी. जिसके पैर में चक्कर, मुंह में शक्कर, सीने में आग और माथे पर बर्फ हो. सीएम शिवराज अक्सर कार्यकर्ताओं के बीच अपने भाषणों में सफल संगठक के जिन गुणों का बखान करते रहते हैं यही बातें पब्लिक लाइफ में कामयाबी के लिए नेताओं की पूंजी भी होती है. इसी के बूते शिवराज सिंह तीन बार भाजपा को सरकार में लाने का जादू और विरोध के बावजूद चार बार सीएम बनने का हुनर हासिल किए हुए हैं.
मोदी - शाह की सुपर-डुपर जोड़ी...
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी टीम भाजपा में कप्तान, कोच और मैनेजर की संयुक्त भूमिका में हैं. कौन प्लेयर टीम में आएगा- कौन बाहर बैठेगा से लेकर किसको कब और कैसे खिलाना है यह भी मोदी शाह की जोड़ी तय करती है. कह सकते हैं कि मोदी-शाह की जोड़ी का रसूख सातवें आसमान पर है. ये दोनो भाजपा में नेताओं की सुपर -डुपर हिट लीडरशिप में शुमार हैं. पहले कभी यह रुतबा अटल-आडवाणी की जोड़ी को हासिल था. भाजपा से लेकर सरकार तक में मोदी-शाह, निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक सब कुछ हैं. यह दोनों दिग्गज, आम भाषा में कहें तो ऑल इन वन हैं. यह सब पार्टी लाइन को मजबूती से पकड़े रहने के कारण भी हुआ.
सूबे में हैं चौहान और तोमर...
मध्यप्रदेश के नेताओं में ऐसी जोड़ी 2005 के बाद से शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर की बनी हुई है. चौहान जनता के बीच तो तोमर बतौर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कार्यकर्ताओं के बीच सक्रिय रहते आए हैं. श्री तोमर के केंद्र में मंत्री बनने के बाद सूबे की सियासत में थोड़े समीकरण बदले हैं लेकिन संगठन और निर्णय करने वाले चौहान - तोमर की जोड़ी की राय को तव्वजो देते आए हैं. प्रयोगों को छोड़ जब भी कभी गम्भीर विकल्प की बात आती है तो तोमर का नाम जरूर सुनाई पड़ता है. कहा जाता है पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश भाजपा संगठन की कमान तोमर के हाथ होती तो सरकार भाजपा की ही बनती.
पीएम मोदी की मुख्यमंत्री चौहान पर तीसरे कार्यकाल तक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी वक्र दृष्टि रहा करती थी. उनकी तिरछी नजर और गम्भीर मुख मुद्रा या यूं कहिए पीएम की बॉडी लैंग्वेज यह संदेश देती थी कि सब कुछ ठीक नही है. एमपी में मोदी के गम्भीर रहने पर कहा जाता था ‘‘मुस्कुराइए आप मध्यप्रदेश में हैं...’’ लेकिन मानना होगा कि मामा शिवराज ने पीएम मोदी को भी मना लिया और गृह मंत्री शाह को भी अपने काम से खुश कर लिया.
सोनिया की किचिन केबिनेट दिग्विजय सिंह...
लगभग पांच साल बाद महात्मा गांधी की प्रबल अनुयायी वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह एक बार फिर सोनिया गांधी किचन कैबिनेट में किए गए हैं. वे अल्पसंख्यकों के पक्ष और भाजपा के साथ संघ परिवार के खिलाफ टीका टिप्पणी करने के कारण अक्सर सुर्खियों में बने रहते हैं. दिनरात कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क के कारण वे फील्ड मार्शल भी कहे जाते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में आने के पीछे उन्हें बड़ी वजह माना जाता है.
कांग्रेस की दिग्विजय सिंह की केंद्रीय राजनीति में वापसी एक बड़ा निर्णय है. प्रशांत किशोर के कांग्रेसमें राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होने के बाद हुआ है इसका मतलब यह भी है कि आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश कांग्रेस में भले ही कोई बदलाव ना हो लेकिन विधानसभा में कांग्रेस को पीसीसी चीफ कमलनाथ की जगह कोई नया नेता प्रतिपक्ष मिल जाए हालांकि ऐसा कमलनाथ की इच्छा के बगैर संभव नहीं है क्योंकि नाथ का गांधी परिवार से वर्षों पुराना पारिवारिक और आत्मीय रिश्ता है हालांकि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी गांधी परिवार खासतौर से स्वर्गीय राजीव गांधी और सोनिया जी के बहुत गहरे रिश्ते थे लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले कैप्टन अमरिंदर मुख्यमंत्री पद से विदा कर दिए गए थे. नतीजतन बाद में कैप्टन ने कांग्रेस छोड़ दी थी. इसलिए देखना होगा कि बदली हुई परिस्थितियों में यह पुराने रिश्ते पार्टी हित में कितनी अहमियत रखेंगे.
साभार - नया इंडिया/ भोपाल