लगता है नीतीशकुमार ने पीएम मटेरियल को विस्तार देने का मन बना लिया है. इसके लिये उन्होंने बिहार छोड़कर केन्द्र की राजनीति में जाने का मन भी बना लिया है. अब वे नई पार्टी में मुख्यमंत्री के नये अवतार से लेकर उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक में जो कुछ बनाया जाए सबके लिये किस्मत आजमाने को तैयार हैं. लालू जी बाहर आ ही गये हैं. नीतीशजी केन्द्र में तकदीर आजमाएं और लालूजी मार्गदर्शन करें और तेजस्वी बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालें इसके लिये स्टेज सज गया है बस शुभ घड़ी का इंतजार है क्योंकि नीतिश के महागठबंधन में जाते ही बहुमत की समस्या तो हल हो ही जाएगी. भाजपा के साथ कोई नहीं जाएगा. भाजपा विपक्ष में बैठकर अकेली संघर्ष कर अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी में लग जाएगी. सैयद शाहनवाज हुसैन जो बिहार में फिलहाल मंत्री हैं वह उसके मुख्यमंत्री फेस हैं ही.
हां, ईडी, सीबीआई, के दावों से लालू परिवार कैसे मुकाबला करेगा यह जरूर सोचने की बात है. यह लालू जी का सिरदर्द है नीतीश का नहीं.
इसी के साथ लगे हाथ बिहार में तेजस्वी की इफ्तार पाटर्ी्र की राजनीति के मायने भी समझ लेते हैं.
तेजस्वी यादव द्वारा हाल ही में पटना में दी गई इफ्तार पार्टी को राजनीतिक रंग न दें. यह तो मेलमिलाप और भाईचारे के लिये साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये आयोजन था. ऐसा कहने में कुछ भी गलत नहीं है. पर राजनीति में रचने बसने वालों के लिये यह सब वैसा नहीं है जैसा दिखया जा रहा है. यह तय हो गया है कि जैसे जैसे, जहां जहां भाजपा कमजोर होगी, इफ्तार पार्टी की राजनीति वापस रंग बताती जाएगी. तेजस्वी यादव की पटना में हुई इफ्तार पार्टी से तो मेरी नजर में यही संदेश जा रहा है. नीतीश जी पैदल ही पहुंचे. खूब खिलखिलाए, मन लगाया. साफ संदेशा दिया कि आज भी राजनीति के पत्ते उन्हीं के हाथ में हैं. वे जिसे चाहेंगे वही मुख्यमंत्री बनेगा. पहले वह भाजपा के दबाव में आए अब अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनवाकर वह भाजपा पर दबाव बनाना चाह रहे हैं. वह पसंद सुशील मोदी हैं जबकि उन पर लांछन सा था कि उन्होंने बिहार में भाजपा को नीतीश की पिछलग्गू पार्टी बना दिया. इसे दूर करने के लिये ही अमित शाह उन्हें दिल्ली ले गये और राज्यसभा में फिट करवा दिया. सुशील मोदी के बनने से सत्ता की चाबी भाजपा के साथ साथ नीतीश के हाथ में भी रहेगी. यह चाबी ही नहीं सत्ता की मजबूती की डोर भी उनके ही हाथ में रहेगी. जब चाहेंगे वह मुख्यमंत्री को धूल धूसरित कर देंगे. पर मुझे लगता नहीं है कि भाजपा इस चाल में फंसेगी. लेकिन क्या कह सकते हैं राजनीति तो संभावनाओं का खेल है. भाजपा ने जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार बनाई थी या नहीं. हो सकता है अभी वह नीतीश की बात मान जाए और जब ठीक समझे, विधानसभा भंग कर राज्यपाल के पास जाकर राष्ट्रपति शासन लगवा दे. फिर छह माह तक शासन प्रशासन ठीक कर ले. यदि कमी दिखे तो छाह माह राष्ट्रपति शासन और बढ़वा लें. फिर मध्यावधि चुनाव की चाल चल दे. मध्यावधि चुनाव के समय मुख्यमंत्री उनका ही रहेगा ना. इसका भी लाभ मिलेगा.
ये सब तो अटकलें हैं बाते हैं बातों का क्या. होता क्या है होत ाक्या है इसके लिये तो बस इंतजार ही करना पड़ेगा.