22 अप्रैल. कभी कभी खीज तो कभी कभी गुस्सा आता है हल्ला मचाने वालों पर. राजस्थान में तीन सौ साल पुराना बताया जाने वाला मंदिर वहां की कांग्रेस के गहलोत साहब की सरकार ने गिरवा दिया. हल्ला कर न्याय पालिका से सवाल पूछ रहे हैं कि वह जहांगीरपुरी में बोली पर मंदिर पर चुप क्यों है.
अरे भाई न्यायपालिका जहांगीरपुरी वाले मामले में भी अपने आप कहां बोली थी. पहले एक याचिका जमायत ए इस्लामी नाम के संगठन ने लगाई थी. उसने लाखों रूपये फीस लेने वाले कपिल सिब्बल साहब की सेवाएं लेने का अनुबंध किया था. जब अदालत की कार्यवाही चल रही थी तो सिब्बल साहब जैसे ही लाखों की फीस लेने वाले एक वकील साहब ने मेंशनिंग की. कपिल सिब्बल साहब ने सहयोग किया तब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की अगले दिन होे वाली सुनवाई तब तक के लिये स्थगित की थी.
क्या मंदिर का हल्ला मचाने वालों के पास अपने समाज के प्रति सजग प्रतिबद्ध संगठन है जो मंदिरों के साथ होने वाले दोयम दर्जे के बर्ताव पर याचिका बनवाता. कोई ऐसा दानवीर होता जो कपिल सिब्बल साहब जैसे भारी भरकम फीस लेने वाले वकील की सेवाएं लेने का खर्च उठाने की दरियादिली बताता. कहा जाता है कि मेंशनिंग करने वाले वकील साहब को भी कहीं से संतोषजनक लाभ का संकेत मिला होगा तभी उन्होंने मेंशनिंग की जहमत उठाई अन्यथा उनके सामने तो ऐसे अनेक संवेदनशील मामले आते ही रहते हैं. वे ऐसा नहीं करते हैं.
जब मंदिर के पक्ष में यह सब होता तो निश्चित ही सुप्रीम कोर्ट वैसा ही कदम उठाता जैसा अपेक्षा की जा रही है.
अब वैसे लोग या संगठन नहीं है तो उसमें सुप्रीम कोर्ट का क्या दोष है.
सुप्रीम कोर्ट ने देश के कानून के हिसाब से कदम उठाया. देश कानून से चलता है. इसलिये सुप्रीम कोर्ट ने उसी के हिसाब से अपने विवेक का उपयोग कर सही कदम उठाया.
वह अस्थाई था. स्थाई व्यवस्था तो बहस के बाद कानूनों की व्याख्या के बाद होगी.
देश में कानून है कि जिस जगह पर कोई मकान या दूकान है वह स्थाई हो या अस्थाई, उसे कानून की प्रक्रिया से ही हटा सकते हैं. जमीन सरकारी है तो पहले कम से कम पांच दिन का नोटिस तो दो. क्या नोटिस दिया यही तो सुप्रीम कोर्ट सरकार से और कार्यवाहीं का विरोध करने वालों से पूछ रहा है. उसके लिये हलफनामें मांग रहा है.
जमीन प्रायवेट हो और उस पर किसी ने कच्चा पक्का निमार्ण कर लिया हो तो भी जमीन का स्वामी मनमाने तरीके से नहीं हटा सकता. उसे पुलिस कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा कर कानून का पालन करना ही होगा. निर्माण करने वाले का पक्ष भारी होगा तो निर्माण नहीं हटेगा. दबंगई और भ्रष्टाचार के ब्रम्हास्त्र और अचूक हथियार दोनों में से किसी के पास हो तो बात और है.
अगर दोनों के पास हों तो जिसके अस्त्र शस्त्र ज्यादा ताकतवर होंगे उसकी चलेगी.
जहांगीरपुरी में भी तो यही हो रहा है. जब तक बुलडोजर चल रहा था तब तक हवा बुलडोजर वालों के पक्ष में थी. अदालत के आने के बाद हवा बुलडोजरों के खिलाफ बह रही है. जिसकी किस्मत में सिर पीटना लिखा था वह सिर पीट रहा है. जिसकी किस्मत में जोश के साथ नारे लगाना लिखा था वह नारे लगा रहा है.
थोड़ा लिखा है जी ज्यादा समझना. बाकी आप खुद समझदार हो.