महेश पांडे जी याने हम जैसे कई पत्रकारों के काका सा 19 अप्रैल को नही रहे. वे जन्मे धार में थे और विदा बेंगलुरु में हुए. छिहत्तर साल के काका सा को उनकी दोनो बेटियों ने मुखाग्नि दी. इसके साथ ही पत्रकारिता के फलक पर चमकते सितारे का अवसान हो गया। वे सज्जनों के लिए चन्द्रमा की तरह शीतल तो चालाक, बेईमान अफसर और नेताओं के लिए बैशाख और जेठ में आग उगलते सूरज की तरह थे.
देश मे जब जनसत्ता और इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकारिता अपने शिखर पर थी तब वे धूमकेतु की तरह चमक रहे थे. सियासी और पत्रकारिता जगत में उनका खासा ख़ौफ़ (तेज) था. जनसत्ता में उनकी सीधी- सपाट और देशज भाषा में तीखी ख़बरो का जलजला इस कदर था कि उसमें अपने - पराए शायद ही बच पाते थे. जनसत्ता के बाद वे बीबीसी के मध्यप्रदेश संवादाता भी रहे.
श्री पांडे की तिलमिलाने वाली ख़बरें आम से लेकर खास पाठक वर्ग में खूब सुर्खियां बटोरती थी. एक बार तो उन्होंने पत्रकारों, मालिकान विशेषतौर पर साप्ताहिक और मासिक पत्र पत्रिकाओं पर उनकी खोल उतारने लेख लिखा. इसमें विज्ञापन मांगने से लेकर आवास आवंटन के आवेदनों का जिक्र था. फफोले उठाने वाले उनके लेख को लेकर उनके घर धरने प्रदर्शन तक ऐलान कर दिया गया. ऐसा पहली बार हो रहा था. हालात यह हुई कि उनके 45 बंगले के आवास के आसपास बड़ी तादात में पुलिस बन्दोवस्त करना पड़ा. किसी पत्रकार ने इसके पहले शायद ही पत्रकारों और पत्रकारिता पर इतना कड़वा लिखा हो. वे सच्ची और अच्छी पत्रकारिता के मानक बन गए थे. इस वजह से प्रदेश में वे आम पाठकों से लेकर व्यवस्था के खिलाफ लड़ने वालों और युवा पत्रकारों के हीरो बन गए थे. जनसत्ता की खबरों ने धूम मचा रखी थी. एक तरह खबरों और पत्रकारिता का वह स्वर्णिम दौर था. पत्रकारों में नई दुनिया, नवभारत टाइम्स के प्रख्यात संपादक राजेंद्र माथुर के बाद जनसत्ता में टीम प्रभाष जोशी की शैली में खबरें लिखने और हेडिंग लगाने का चलन चल पड़ा था.
वर्ष 1985-86 में जब हम पत्रकारिता बारहखड़ी सीख रहे थे उस दौर में महेश काका सा से हमारा संपर्क उनके भतीजे ऋषि पांडे की वजह से हुआ. ऋषि भाई और हम दैनिक जागरण में सिटी रिपोर्टिंग करते थे. इसके साथ ही महेश पांडे जी उस समय की युवा पत्रकार मंडली के काका सा हो गए थे. जाने अनजाने हम उनके व्यवहार और सादगी पूर्ण आचरण से ही पत्रकारिता सीखते रहे. पांडे जी पत्रकारिता में आने के पहले प्रोफेसर रहे थे शायद इसीलिए वे बातों से कम अपने आचरण से ज्यादा सिखाते थे. ख़बरों को लेकर वे जितने कठोर थे आम जीवन में उतने ही सहज और सरल थे. नब्बे के दशक में उनके ड्रॉइंग रूम में मशहूर गायक भीमसेन जोशी और कुमार गंधर्व को खूब सुनते देखा है. राजनेताओं में तत्कालीन मुख्यमंत्रियों में श्यामचरण शुक्ल, अर्जुन सिंह सुंदरलाल पटवा, मोतीलाल वोरा, दिग्विजय सिंह, उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह के साथ अजित जोगी, रमन सिंह, ब्रजमोहन अग्रवाल , प्रेम प्रकाश पांडे से उनके निकटतम संबंध रहे हैं.
साभार - नया इंडिया/भोपाल