केजरीवाल ने एक बात बहुत जल्दी पकड़ ली कि राजनीतिक पार्टियों में युवा एड़ियां घिस घिस कर बेहाल हो जाते हैं पर उनकी जनप्रतिनिधि बनने की राह नहीं खुलती है. कोई युवा हिम्मत कर भी ले कि वह अकेला ही जीत जाएगा क्योंकि वह ईमानदार है, समाजसेवा की भावना से भरापूरा है, उसमें समर्पण की भावना है आदि आदि तो धन की कमी, मार्गदर्शन की कमी उसकी महत्वाकांक्षाओं को दफनाने का माध्यम बन जाती हैं.
लेकिन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में ऐसा नहीं है. दूसरी पार्टियों की तुलना में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल सहित करीब पच्चीस फीसदी ही घाघ नेता हैं. बाकी जोश से लबरेज कार्यकर्ता हैं. उनमें ऊर्जा सहित वो सभी गुण हैं जो एक जनप्रतिनिधि में होने चाहिये. यहां जनप्रतिनिधि से आशय पंच और पार्षद से लेकर सांसद तक से है.
अरविंद केजरीवाल भी दूसरे जानेमाने स्थापित नेताओं की तरह एक छोटा सा गुट रखते हैं जिसे किचन केबिनेट जैसा कोई भी नाम दे सकते हैं. उस किचन केबिनेट के केजरीवाल सुप्रीमो सरीखे नेता है. उसमें जो उन्हें पसंद नहीं है उसके लिये कोई जगह नहीं है. उसकी मदद से केजरीवाल समय समय पर किचन घाघ नेताओं की छंटनी और भर्ती करते रहते हैं.
राजनीति के माध्यम से देेश की सेवा करने के लिये आतुर सभी आयुवर्ग के लोगों की कोई कमी नहीं है. केजरीवाल और उनकी किचन केबिनेट ऐसे लोगों को चिन्हित कर चुनाव लड़वा देते हैं. हारना जीतना अलग बात है.
आपने दिल्ली में देखा केजरीवाल जीते. आपने पंजाब में भी देखा वो जीते.
जो जीता और उनके प्रति समर्पित रहा वह उनका, जो जीता और समर्पित होने से इंकार कर गया उसे अगला मौका नहीं. पर कोई दुश्मनी भी नहीं. जो हारा उसे मात्र सांत्वना पर कोई वादा नहीं. अगली बार जब चयन का मौका आएगा तब की तब देखेंगे. आम आदमी पार्टी में टिका तो ठीक नहीं तो न सही. तू नहीं तो और सही. और नहीं तो और कोई सही. योग्य युवाओं की कौन कमी है.
केजरीवाल ने किसी भी व्यक्ति या पार्टी. धर्म या जाति के समर्थन और विरोध की राजनीति से अपने को दूर रखा है. यह काम उनके पर्दे के पीछे से मार्गदर्शन में चल रहे घाघ नेताओं की टोली करती है. इसलिये आम आदमी पार्टी धर्म की राजनीति भी करती है और जाति की राजनीति भी पर बिना कहे. वह बाकी पार्टियों की तरह जाति धर्म अगड़ा पिछड़ा का हिसाब नहीं बताती. सब कुछ पर्दे के पीछे सफलतापूर्वक छिपा जाती है.
यही कारण है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी से भाजपा भी परेशान है तो कांग्रेस भी. कम्युनिस्टों को तो इन सबसे लेना देना ही नहीं है. बस केरल में बचे हैं जब तक ईश्वर की कृपा है बने रहेंगे. जिस दिन कृपा हटी उस दिन लाल झंडा लेकर निकल जाएंगे देशाटन को.
भाजपा और कांग्रेस ही नहीं परिवार आधारित सपा भी परेशान हैं और राजद भी. देखा नहीं परिवार आधारित अकाली दल का कैसा बैंड बजाया पंजाब में. कांग्रेस तो खुद ही विदाई के लिये गाजा बाजा लेकर तैयार थी और भाजपा की औकात नहीं थी. अमरिंदर तो खैर थे ही पेपर टाइगर.
आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार मुक्त सरकार, मुफ्त या सस्ता बिजली पानी, मौहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों की दम पर चुनाव जीतने की राह पर बढ़ती रहेगी. केजरीवाल आशावादी हैं. उम्मीद नहीं छोड़ते कि इस बार न सही अगली बार देखेंगे. वे देख भी लेते हैं सबने पंजाब में देखा भी है.
पर केजरीवाल का जादू जमी जमाई जमीन पर ही चलता है. जहां पहले से ही सब कुछ होता है. नहीं होती है तो सुव्यवस्था और छाया होता है तो भ्रष्टाचार का अंधेरा. यही व्यवस्था तो उन्होंने दिल्ली में ठीक की और भ्रष्टाचार का अंधेरा छांटा. कोई नया अस्पताल नहीं बनाया, कोई नई सड़क नहीं बनाई, कोई नया स्कूल नहीं खोला.
इन सबसे केजरीवाल चुनाव तो जीत सकते हैं पर राज्य या देश का विकास नहीं कर सकते. देश तो खैर अभी तक उनकी नजर में है ऐसा अब नहीं लगता है. वह बनारस की हार का सबक भूले नहीं हैं. पर जनाब राज्य का विकास भी नहीं हो सकता यह बात देर अबेर पंजाब में साबित होने वाली है.
जब साबित होगी तब होगी. मुझे लगता है उसके पहले वह हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान, में जादुई असर बता चुके होंगे. मैं यह नहीं कह रहा कि वे जीत दर्ज करवा लेंगे. हो सकता है कहीं जीत जाएं तो कहीं जीत के करीब पहुंच जाएं. हो सकता है कहीं उत्तराखंड की तरह जीरो वाले हीरो ही रह जाएं
पर मेरा दावा है कि मोदीजी के बाद देश के अगले हीरो केजरीवाल ही होंगे. वे ही युवाओं की आशाओं का बड़ा केन्द्र बन कर उभरेंगे. वो भी बिना संगठन के बिना ज्यादा संसाधनों के. उनका मुकाबला कांग्रेस, भाजपा, तृणमूल, राजद जदयू, सपा आदि सभी से होगा जिनके पास संगठन और साधन होंगे. किसी के पास कम तो किसी के पास ज्यादा.