प्रशांत किशोर और कांग्रेस पर पर एक बार फिर विमर्श. 17 अप्रैल.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-04-17 02:01:25


प्रशांत  किशोर और कांग्रेस पर पर एक बार फिर विमर्श. 17 अप्रैल.

प्र्शांत किशोर चाहते हैं कि कांग्रेस 279 लोकसभा क्षेत्रों पर अपना ध्यान लगाए. वह गुजरात विधानसभा चुनाव में काम करने को ज्यादा इच्छुक नहीं हैं. वह अपना ध्यान 2024 के लोकसभा चुनावों पर लगाना चाहते हैं. वह केवल रणनीतिकार की भूमिका नहीं चाहते हैं बल्कि सक्रिय भूमिका में हाथ आजमाना चाहते हैं. कांग्रेस ने प्रशांतकिशार को सुनने के लिये सिर्फ गांधी परिवार के भक्तों को बुलाया. कांग्रेस में सभी गांधी परिवार के भक्त हैं. पर कुछ कम तो कुछ ज्यादा हैं यह फर्क तो साफ दिखता है. प्रशांतकिशोर के सुझावों पर एक कमेटी बनाई गई है. उसकी सिफारिशों के आधार पर उनके बारे मंे फैसला लिया जाएगा. पर बेहतर रहेगा कि जो जरा नाराज लोगों का गु्रप 23 है उसके समाने भी कमेटी की रिपोर्ट रखी जाए और उसे भी एक सप्ताह का समय अलग रिपोर्ट देने को कहा जाए. लेकिन जानकार कहते हैं कि प्रशांतकिशोर की राजनीति में सक्रिय काम करने की  महत्वाकांक्षा नई नहीं है. वह कांग्रेस के साथ काम  करने की कोशिश पहले भी कर चुके हैं लेकिन वह सारी कांग्रेस की कमान अपने हाथ में लेना चाहते थे जो न प्रियंका को पसंद आया न राहुल गांधी को. पर गोवा में एक्सपोज होने के बाद प्रशांतकिशोर को अपनी सीमाएं पता चल गई हैं. इसलिये फिर कांग्रेस की तरफ झुके हैं. यह उनकी मजबूरी है. क्योंकि ऐसी सर्वेसर्वा की हैसियत ममता बनर्जी उन्हें देने को तैयार नहीं हैं. जनता दल यू में नीतीशकुमार उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष तक बना चुकी हैं पर उनकी महत्वाकांक्षांएं देखते हुए बात नहीं बनी और प्रशांतकिशोर को जदयू छोड़नी पड़ी.
प्रशांत किशोर गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों के साथ भी बात चला चुके हैं. उन्हें समझा चुके हैं कि देश में 200 से ज्यादा संसदीय क्षेत्र ऐेसे हें जिनमें भाजपा की नहीं चलती है. वे वहां ताकत केन्द्रीत कर चुनाव लड़े तो  अच्छी खासी सीटें पा सकते हैं फिर बाकी  की कमी कांग्रेस आदि से पूरी हो जाएगी. इस प्रकार से 272 का जादूई आंकड़ा पाकर भाजपा को हटा कर खुद केन्द्र में सत्ता पा सकते हैं. पर अभी तक बात कहीं भी नहीं बनी है. वरिष्ठ  पत्रकार राहुल देव मानते हैं कि प्रशांतकिशोर कुशल राजनीतिक रणनीतिकार हो सकते हैं पर वे लोकप्रिय नेता कदापि नहीं बन पाए हैं. उन्होंने अपनी इस योग्यता को कहीं भी अभी तक परखा नहीं है. पत्रकार प्रिया सहगल कहती हैं कि प्रशांत किशोर कहते हैं कि कांग्रेस की इमारत तो पूरी तरह जर्जर हो चुकी है. इसलिये उसकी एक खिड़की या एक दरवाजा अथवा एक कमरा सुधार कर काम नहीं  चलने वाला है. वे पूरी इमारत का ही जीर्णोद्धार करना चाहते हैं. राहुल देव कहते हैं कि यह बात सही है कि कांग्रेस का पूरी तरह से जीर्णोद्धार होना चाहिये. पर यह काम के लिये तो नेता और कार्यकर्ता चाहिये. यह काम प्रशांतकिशोर नहीं कर सकते. क्योंकि यह अभी तक साबित नहीं हो सका है कि वे अच्छे नेता या कार्यकर्ता हैं भी या नहीं.
हम भी तो यही कह रहे हैं कि कांग्रेस की बीमारी अच्छे नेताओं और कार्यकर्ताओं का नहीं होना है. यह काम प्रियकां गांधी या राहुल गांधी बेहतर तरीके से कर सकते हैं. बस यह बताना संभव नहीं है कि यह कितने समय में हो पाएगा.
हमारी  नजर में तो कांग्रेस की सबसे बड़ी बीमारी ज्यादा लोकतंत्र और ज्यादा असहमति का होना है. यह बात उस आम धारणा के एकदम विपरीत है कि कांग्रेस में गांधी परिवार का कब्जा है वहां सिर्फ उन्हीं की चलती है. कांग्रेस गांधी परिवार की जागीर है. कांग्रेस नाम का भवन फिर वो चाहे कितनी भी जर्जर हो उसकी मिल्कियत सिर्फ और सिर्फ गांधी परिवार के पास है. गांधी परिवार के पास कांग्रेस का नेतृत्व करने का दैवीय अधिकार है. गांधी परिवार और किसी को कांग्रेस का नेतृत्व नहीं सौपना चाहता. सोनिया गांधी तो अभी नेतृत्व दे ही रही हैं. वे राहुल को यह नेतृत्व देना चाहती हैं. इससे प्रियंका गांधी भी तैयार हैं और वह राहुल इको चुनौती दिये बगैर शीर्ष पर सहयात्री बन कर सहयोग देने को तैयार है. राहुल पर बात नहीं बने और मजबूरी बन जाए तो प्रियंका नाम आता है. इसके अलावा और कोई नहीं.
चलो राहुल को ही दे दो पर मेरी राय में बहुत ज्यादा लोकतंत्र की बीमारी से कांग्रेस को मुक्त तो रखो. जो चाहे जब चाहे कुछ भी बोल दे, कुछ भी कर दे यह नहीं होना चाहिये. अनुशासन सख्त होना चाहिये. इसी प्रकार असहमति का अति सम्मान भी कांग्रेस की दूसरी बड़ी बीमारी है. लोकतंत्र है तो असहमति का सम्मान मजबूरी है. लेकिन इसकी सीमा होनी चाहिये. इसकी लक्ष्मण रेखा जो भी तोड़े उसक पर बिना ज्यादा सोचे विचारे सख्त  कार्यवाही होना चाहिये तभी संगठन चलेगा. ये दोनों काम तो बिना प्रशांत किशोर के हों सकते हैं. और करना पड़ेंगे. उसके बाद संगठन खड़ा किया जाए फिर प्रशांतकिशोर को बुलाया जाए तो परिणाम मिलेंगे. अन्यथा यह निठल्ला चिंतन 2024 में भी कांग्रेस सहित विपक्ष को कोई नतीजा नहीं  देगा. सत्ता में आना तो दूर ताकतवर विपक्ष भी मोदीजी और भाजपा को नहीं दे पाएगा.   

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बातचीत अभी बाकी है कांग्रेस और प्रशांत किशोर की, अभी इंटरवल है, फिल्म अभी बाकी है.

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